जनरल मिन ऑन्‍ग ह्लेनिंग ने अपने हाथों में ली म्‍यांमार की सत्ता, तख्‍तापलट को सही ठहराया

म्‍यांमार (Myanmar) में लोकतंत्रिक सरकार का तख्‍ता पलट करने वाले कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विस सीनियर जनरल मिन ऑन्‍ग ह्लेनिंग ने इस कार्रवाई को जरूरी बताया है।

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विशेषज्ञों की राय में साल 2016-2020 तक म्‍यांमार (Myanmar) की सरकार को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ये समय सभी की आंखें खोलने वाला था।

म्‍यांमार (Myanmar) में 3 फरवरी को नई स्‍टेट एडमिनिस्‍ट्रेटिव काउंसिल के गठन के साथ ही जनरल मिन ऑन्‍ग ह्लेनिंग ने देश की सत्‍ता अपने हाथों में ले ली। लोकतंत्रिक सरकार का तख्‍ता पलट करने वाले कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विस सीनियर जनरल मिन ऑन्‍ग ह्लेनिंग ने इस कार्रवाई को जरूरी बताया है।

सत्‍ता संभालने के बाद उन्‍होंने कहा है कि देश में आपातकाल लगाना इसलिए जरूरी था क्‍योंकि 8 नवंबर के चुनाव में बड़े पैमाने पर धांधली हुई थी। लेकिन बहुत लोगों का मानते हैं कि सेना दोबारा चुनाव कराने का ऐलान करती है तो वो ऑन्‍ग सान्‍ग सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी से हार जाएगी।

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ह्लेनिंग के ऑफिस की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि सेना द्वारा प्रायोजित साल 2008 के संविधान के अनुच्‍छेद 419 के मुताबिक इस काउंसिल का गठन किया गया है। इसके तहत कमांडर इन चीफ ऑफ डिफेंस सर्विस के हाथों में सर्वोच्‍च शक्ति है। इस काउंसिल में ह्लेंनिंग समेत 11 सदस्‍य हैं, जिनमें सारे सेना के बड़े अधिकारी हैं। बता दें कि स्‍टेट एडमिनिस्‍ट्रेटिव काउंसिल ही हर तरह का फैसला लेने का अधिकार रखती है।

ब्रसेल्‍स के इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के विशेषज्ञ मानते हैं कि सेना के तख्‍तापलट के बाद लोकतंत्र को बड़ा झटका लगा है। विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि यदि इसको दुरुस्‍त नहीं किया गया तो ये न सिर्फ लोकतंत्र के लिए गलत होगा बल्कि इसकी वजह से देश जबरदस्‍त हिंसा की तरफ भी जा सकता है।

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वहीं, म्‍यांमार टाइम्‍स ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा है कि तातमदेव (म्‍यांमार सेना का आधिकारिक नाम) ने सत्‍ता अपने हाथों में लेकर बड़ा जुआ खेला है। इनका कहना है कि साल 2011 में सेना के पूर्व जनरल और राष्‍ट्रपति यू थिन सेन ने देश में राज‍नीतिक और आर्थिक सुधारों की शुरुआत करने का काम किया था।

इसके बाद भी साल 2015 के चुनाव में उन्‍हें ऑन्‍ग सान्‍ग सू की की पार्टी एनएलडी के हाथों जबरदस्‍त हार का सामना करना पड़ा था। इसके बावजूद उन्‍होंने बेहद शांतिपूर्ण तरीके से सत्‍ता का हस्‍तांतरण कर दिया था और म्‍यांमार (Myanmar) में पहली बार एक सिविलियन गवर्मेंट बनी थी। लेकिन 1 फरवरी को जो कुछ दुनिया ने देखा उसके बाद सेना ने जो भरोसा हासिल किया था उसको खो दिया।

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विशेषज्ञों की राय में साल 2016-2020 तक देश की सरकार को कई तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा। ये समय सभी की आंखें खोलने वाला था। इस दौरान उन्‍होंने सीखा कि सरकार चलाना आंदोलन करने से अधिक कठिन है। इस दौरान म्‍यांमार (Myanmar) के लोगों ने भी महसूस किया कि अंत‍रराष्‍ट्रीय समर्थन आसानी से हासिल नहीं होता है बल्कि इसके लिए राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय इंट्रेस्‍ट जरूरी होता है।

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