कलम के बेताज बादशाह मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि आज, साहित्य के जरिये समाज की कुरीतियों को दिखाया आईना

प्रेमचंद (Premchand) का साहित्यिक जीवन उर्दू में कहानियां लिखने से आरंभ हुआ। इनका पहला कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ उर्दू में धनपत राय के नाम से प्रकाशित हुआ था।

Munshi Premchand

Munshi Premchand Death Anniversary

Munshi Premchand Death Anniversary: हिन्दी के प्रसिद्ध कथाकार और उपन्यासकार प्रेमचंद (Premchand) का जन्म 31 जुलाई 1880 ई. में वाराणसी से पांच मील दूर लमही नामक गांव में हुआ था। उनके पिता मुंशी अजायबराय गांव के डाकखाने में काम करते थे। प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था। इनका आभिक जीवन बड़े आर्थिक संकट में बीता। ट्यूशन करके, अंधेरी कोठरी में तेल की कुप्पी में पढ़ते हुए इन्होंने किसी तरह इंटर की परीक्षा पास की। उन्हें 18 रुपये मासिक पर अध्यापकी करनी पड़ी। बी. ए. की परीक्षा बाद में दी।

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प्रेमचंद (Premchand) का विवाह बचपन में ही हो गया था। उस पत्नी से संतुष्ट न रहने के कारण उन्होंने उसे त्याग करके 1905 में बाल-विधवा शिवरानी देवी से विवाह कर लिया। अपने सरकारी सेवा के काल में उन्हें प्रदेश के अनेक स्थानों में रहना पड़ा। फिर गांधी जी के असहयोग आंदोलन के प्रभाव में उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी।

प्रेमचंद (Premchand) का साहित्यिक जीवन उर्दू में कहानियां लिखने से आरंभ हुआ। इनका पहला कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ उर्दू में धनपत राय के नाम से प्रकाशित हुआ था। उसके राष्ट्रीय विचारों के कारण अंग्रेज सरकार ने उसकी सब प्रतियां जब्त कर लीं। इसके बाद वे प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। जब हिन्दी भाषा में लिखना आरंभ किया तो पहले लिपि उर्दू की होती थी। बाद में देवनागरी अपनाई।

नौकरी छोड़ प्रेमचंद (Premchand) बने उपन्यास सम्राट

सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद (Premchand) ने कई प्रकाशकों और पत्रिकाओं में काम किया। फिर अपना पत्र ‘हंस’ निकाला। कुछ दिन तक साप्तहिक ‘जागरण’ का भी संपादन किया। बाद में पूरा समय साहित्य रचना में ही लगाते रहे। हिन्दी में प्रेमचन्द का पहला कहानी-संग्रह ‘सप्त सरोज’ 1917 में प्रकाशित हुआ। इनकी लिखी लगभग 300 कहानियों के 17 संग्रह निकले जो बाद में ‘मानसरोवर’ नाम से 8 खंडों में संग्रहीत हुई हैं।

उनके (Premchand) उपन्यास हैं- ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘गबन’, ‘कर्मभूमि’ और गोदान’। प्रेमचंद ने कुछ अनुवाद भी किए उनकी रचनाओं के पात्र साधारण जनजीवन से लिए गए हैं। साधारण लोगों और प्रतिदिन की घटनाओं का ताना-बाना बुनकर उन्होंने जो साहित्य रचा वह जीवन के निकट होने के कारण बहुत लोकप्रिय हुआ। हिन्दी के कहानी संसार में तो उन्हें क्रान्ति उत्पन्न करने वाला लेखक माना जाता है। 8 अक्टूबर 1936 ई. में वाराणसी में प्रेमचंद (Premchand) का देहांत हो गया।

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