मोतीलाल नेहरू के पिता के तौर पर गियासुद्दीन गाजी के नाम के वायरल सच की पड़ताल

सवाल उठता है कि गियासुद्दीन गाजी कौन है, जिसका रिश्ता नेहरू परिवार से जोड़ा जाता रहा है। आपको सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर ही नहीं इंटरनेट की दुनिया में भी गूगल करेंगे तो सैकड़ों वेबसाइट्स पर ये नाम मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) के पिता के नाम पर लिखा मिलता है। आखिर इसकी वजह क्या है?

Motilal Nehru

जब भी नेहरू परिवार के बारे में आप इंटरनेट पर सर्च करेंगे तो सैकड़ों लेखों में इंदिरा के परदादा और मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) के पिता का नाम गियासुद्दीन गाजी लिखा मिलेगा। सोशल मीडिया पर भी अक्सर इस तरह के मैसेज आप सभी को मिले होंगे। नेहरू परिवार के मुस्लिम धर्म से धर्मांतरण की कहानियां तमाम लोग कहते आए हैं, आखिर इसकी वजह क्या है? इसको जानने के लिए आपको नेहरू-इंदिरा परिवार की जड़ में जाना होगा।

ये अलग बात है कि नेहरू परिवार की जड़ों में जाने के लिए आपको पूरी तरह पं. नेहरू की बायोग्राफी पर ही निर्भर रहना पड़ेगा, क्योंकि बाकी सभी जितने भी इतिहासकारों या लेखकों ने उनके परिवार के बारे में लिखा है तो वे उनकी बायोग्राफी में से ही लिया है। उनकी बायोग्राफी के चैप्टर ‘Descent From Kashmir’ में उन्होंने अपने परिवार की जड़ों के बारे में लिखा है। सबसे पुराने सदस्य के बारे पं. नेहरू ने लिखा है, वो नाम है-राज कौल। जवाहर लाल नेहरू की किताबों में ही नहीं इंदिरा की बायोग्राफी में भी उन्हीं का नाम मिलता है। नेहरू के मुताबिक वो कश्मीरी पंडित थे, कश्मीर में ही रहते थे और वहां संस्कृत और फारसी के जाने माने विद्वान् थे। परिवार का दावा है कि जब मुगल बादशाह फर्रुखसियर कश्मीर दौरे पर आया तो वो राज कौल की प्रतिभा से काफी खुश हुआ, और उन्हें दिल्ली में रहने के लिए आमंत्रित किया। राज कौल को दिल्ली में किसी नहर के पास एक घर बादशाह की तरफ से रहने के लिए दिया गया, एक जागीर भी दी गई। नहर किनारे रहने की वजह से उन्हें नेहरू कहा जाने लगा, धीरे-धीरे कौल उन लोगों ने अपने नाम से हटा लिया और नेहरू नाम उनके परिवार का नाम हो गया।

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चूंकि मुगल बादशाह फर्रुखसियर 1713 से लेकर 1719 तक केवल 6 साल ही दिल्ली का बादशाह रहा, नेहरू जी ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है कि वे 1716 में दिल्ली आए। इधर तीन साल के अंदर फर्रुखसियर को गद्दी से हटाकर अंधा कर दिया गया, बाद में मार दिया गया।

उसके बाद राज कौल के ठीक 140 साल बाद वो अपने खानदान के एक व्यक्ति का नाम लेते हैं, जो थे-लक्ष्मी नारायण नेहरू, जो भारत के शुरुआती वकीलों में से थे। उनको पं. नेहरू ने ईस्ट इंडिया कंपनी के वकील के रूप में बताया है, जबकि उनके बेटे गंगाधर नेहरू मुगल सेवा में थे। उस वक्त दिल्ली के कोतवाल की कमिश्नर जैसी ही हैसियत होती थी, वैसी ही हैसियत उनकी थी। परिवार का दावा है कि ये 1857 में दिल्ली के कोतवाल थे। इनकी एक ही तस्वीर मिलती है, जो एक मिनिएचर पेंटिंग के तौर पर है, जिसमें उनके घनी लंबी दाढ़ी मूंछे हैं, और सिर पर एक मुस्लिम टोपी लगाए हुए हैं। नेहरू की बायोग्राफी में ही नहीं, आपको इंदिरा गांधी के सफदरजंग मेमोरियल और तीन मूर्ति भवन में भी उनकी ये मिनिएचर पेंटिंग दीवार पर लगी हुई मिल जाएगी।

हालांकि परिवार के पास राज कौल या लक्ष्मी नारायण नेहरू की कोई तस्वीर या पेंटिंग नहीं है, केवल गंगाधर नेहरू की ही है। गंगाधर नेहरू के वक्त ही 1857 की क्रांति हुई, चूंकि वे मुगल सेना में कोतवाल थे। ऐसे में जाहिर है मुगल बादशाह के विद्रोही सिपाहियों से हाथ मिला लेने के बाद अंग्रेजों के विरोधी हो गए होंगे, हालाँकि बहुत जल्द ब्रिटिश फौज ने वापस दिल्ली पर कब्जा कर लिया, दोनों मुगल शहजादों को गोली मार दी गई और बहादुर शाह जफर को रंगून ले जाकर नजरबंद कर दिया गया।

ऐसे में पं. नेहरू लिखते हैं कि वे ऐसे प्रतिकूल हालात में परिवार सहित यानी दो बेटों और पत्नी को लेकर जान बचाकर आगरा भाग गए। ये 1858 की बात रही होगी, हालाँकि पं. नेहरू गंगाधर नेहरू के पिता का 1857 की क्रांति में क्या हुआ, ये नहीं बताते, जबकि वे ईस्ट इंडिया कंपनी के वकील थे, तो उनकी ब्रिटिश प्रशासन में पैठ रही होगी।

दूसरे जैसा कि पं. नेहरू लिखते हैं कि गंगाधर नेहरू की मौत 34 साल की उम्र में ही हो गई थी, तो 1857 में वे मुश्किल से 30 साल के ही रहे होंगे। पं. नेहरू ये भी नहीं बताते कि अगले तीन साल परिवार ने, खास तौर पर उनके परिवार के मुखिया ने क्या किया? परिवार का खर्च कैसे चलाया। शायद उन्हें खुद जानकारी न रही हो। उस वक्त गंगाधर नेहरू के दो बेटे थे- बंशीधर और नंदलाल।

तीन साल बाद यानी 1961 में ही अचानक गंगाधर नेहरू की मौत हो गई, जबकि उनकी पत्नी जियोरानी या इंदिरा रानी गर्भ से थीं, गंगाधर नेहरू की मौत के तीन महीने बाद 6 मई 1861 को आगरा में एक बच्चा पैदा हुआ, उसका नाम रखा गया मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru)। बाद में अपनी माँ इंदिरा रानी के नाम पर ही मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) ने अपनी नातिन इंदिरा का ये नाम रखा था। जबकि उनके जवाहर लाल ने प्रियदर्शिनी कहा, ऐसे इंदिरा का नाम बना था- इंदिरा प्रियदर्शिनी नेहरू।

परिवार के मुताबिक गंगाधर नेहरू के बड़े बेटे बंशीधर नेहरू ब्रिटिश सरकार की न्यायिक सेवा में थे और एक शहर से दूसरे शहर उनका तबादला होता रहा। वे मुख्य परिवार के साथ नहीं रह पाए तो दूसरे नंदलाल नेहरू कभी राजस्थान की खेतड़ी रियासत के दीवान रहे, वकालत भी करते थे। उन्होंने ही मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) को पाला, पढ़ाया। लेकिन बहुत जल्द उनकी भी मौत हो जाने के बाद पूरे परिवार का बोझ युवा मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) के कंधों पर आ गया।

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद मोतीलाल पहले कानपुर में और फिर इलाहाबाद में वकालत करने लगे थे, आगरा से हाईकोर्ट को इलाहाबाद कर दिया गया था वहीं वे बड़े वकील बन गए, कांग्रेस से जुड़ गए, उसी शहर में जवाहर लाल और फिर इंदिरा पैदा हुए, पले-बढ़े।

अब सवाल उठता है कि गियासुद्दीन गाजी कौन है, जिसका रिश्ता नेहरू परिवार से जोड़ा जाता रहा है। आपको सोशल मीडिया यानी फेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर ही नहीं इंटरनेट की दुनिया में भी गूगल करेंगे तो सैकड़ों वेबसाइट्स पर ये नाम मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) के पिता के नाम पर लिखा मिलता है। आखिर इसकी वजह क्या है?

कई लोगों ने दावा किया कि कभी भी दिल्ली में हिंदू कोतवाल नहीं रहा है। कई लोगों ने पुराने रिकॉर्ड्स खंगाले, उस वक्त की किताबों में अलग-अलग कोतवालों के नाम मिलते हैं, वे सारे के सारे मुसलिम थे 29 अगस्त, 1997 को इंडियन एक्सप्रेस में के.एन. राव के कुछ और तथ्यों के साथ ये बताया कि 1857 में दिल्ली का कोतवाल गियासुद्दीन गाजी था, न कि गंगाधर नेहरू। उन्होंने 1857 में केवल दो हिंदू पुलिस अधिकारियों के नाम बताए, नायाब कोतवाल भाव सिंह और लाहौरी गेट थाने का थानेदार काशीनाथ। ये सारे तथ्य एम.के. अग्रवाल ने अपनी किताब ‘From Bharat to India: The Rape of Chrysee’ में शामिल किए हैं।

इस किताब में एक और दिलचस्प बात ये भी है कि के.एन. राव ने इस लेख में ये भी लिखा था कि दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर भी 1857 में दिल्ली के कोतवाल का नाम गियासुद्दीन गाजी मिलता है, जिसका अर्थ होता है- काफिर कातिल।

जाहिर है ये लेख अखबार में होगा, तो उन दिनों लोगों ने जांच भी की होगी, झूठ होता तो उसी वक्त सवाल उठते। यही सारे तथ्य एम.के. अग्रवाल ने उस लेख के हवाले से अपनी किताब में दिल्ली पुलिस की वेबसाइट की बात भी दर्ज की है। लेकिन जब दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर जाकर जांच की गई तो उस पर 1857 के कोतवाल के बारे में ये जानकारी दी हुई है, “The last Kotwal of Delhi, appointed just before the eruption of the first war of freedom, was Gangadhar Nehru, father of Pandit Motilal Nehru and grand father of Pandit Jawaharlal Nehru, India’s first Prime Minister.”

यानी अब ये और काफी मुश्किल हो जाता है, क्योंकि 1997 के लेख के मुताबिक दिल्ली पुलिस की वेबसाइट में इस 1857 विद्रोह के दौरान दिल्ली के कोतवाल का नाम गियासुद्दीन गाजी था और 25 मार्च, 2017 को जब ये लेख लिखा जा रहा है, यानी 20 साल बाद उसमें न केवल गंगाधर नेहरू का नाम लिखा आता है, वरन् उनके पूरे खानदान या बेटे मोतीलाल नेहरू (Motilal Nehru) और नाती यानी देश के पहले पी.एम. जवाहर लाल नेहरू का भी जिक्र है।

1997 में केंद्र और दिल्ली राज्य दोनों जगह कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकारें थीं। उसके बाद भी इन बीस सालों में कई बार केंद्र और राज्य सरकारें अरसे तक कांग्रेस की ही रही हैं। अगर उस लेख के लेखक के.एन. राव और इस किताब के लेखक एम.के. अग्रवाल का दावा सही है तो दिल्ली पुलिस की वेबसाइट पर इसी दौरान ये नाम बदला गया होगा। हालांकि के.एन. राव नेहरू परिवार की आलोचना में ऐसे कई दावे अपनी किताब ‘The Nehru Dynasty: Astro-political Portraits of Nehru, Indira, Sanjay & Rajiv’ कर चुके हैं।

दिल्ली पुलिस से कोई भी आर.टी.आई. डाल कर ये पूछकर उनके लिए दिक्कत पैदा कर सकता है कि आपने 1857 में कोतवाल के तौर पर गंगाधर नेहरू का नाम कब शामिल किया, किस आधार पर शामिल किया? क्योंकि किसी भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड में उनका नाम नहीं मिलता। अगर केवल पं. नेहरू की बायोग्राफी के आधार पर ही शामिल किया गया है तो उस पर सवाल उठने बनते हैं, जो कि बीच-बीच में सोशल मीडिया पर उठते भी रहे हैं। यानी नेहरू परिवार से जुड़ा ये सवाल जल्द खत्म होने वाला नहीं है।

 

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