‘जख्म भरने वाले हाथ, प्रार्थना करने वाले होंठ से कहीं ज्यादा पवित्र हैं’- भारत रत्न मदर टेरेसा

मदर टेरेसा (Mother Teresa) को जितने पुरस्कार, धनराशियां अथवा जो भी सहायता प्राप्त हुई, वह सब दीन-दुखियों की सेवा कार्य के लिए ही उपयोग में लाई गईं। मदर उसमें से निजी उपयोग के लिए कुछ भी नहीं रखीं।

Mother Teresa मदर टेरेसा

Mother Teresa Birth Anniversary II मदर टेरेसा जयंती

Mother Teresa Birth Anniversary: कोलकाता के एक सिनेमा हाउस के सामने कूड़े-कचरे से भरी एक नाली थी उसमें पत्ते, दोने, चिथड़े और जुठन और कीचड़ भरी थी। सूअर और कुत्ते उसे कुरेद कर उसमें खाने की चीजें ढूंढ रहे थे। एकाएक कुछ पत्ते हिले और पास खड़े आदमियों ने देखा कि एक बच्चा हाथ-पांव हिला रहा है। उन्होंने बच्चे को लावारिस समझ अस्पताल या अनाथालय में दाखिल करने की सोची। एक आदमी उसे उठाकर चला ही था कि एक भिखारिन भागती हुई आई और चिल्ला कर उस आदमी से बोली,

“तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरे बच्चे को उठाने की ?”

“तुम्हारा है यह बच्चा?”

 “हां।”

“तो तुमने यहां नाली में क्यों डाल रखा था?”

भिखारिन ने बताया कि, “मेरे पास कुल डेढ़ गज की धोती है, यदि उसमें से कपड़ा फाड़ती हूं तो मेरा शरीर नंगा होता है, जिसे मैं पहले ही पूरी तरह से नहीं ढांप पाती इसलिए बच्चे को नाली में सुला कर भीख मांग रही थी।”

 भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार और राष्ट्रसेवी थे हरिभाऊ उपाध्याय 

यह तो एक उदाहरण है। मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने कोलकाता के लारेटो कान्वेंट में काम करते हुए कोलकाता की गरीबी के ऐसे अनेक उदाहरण देखे, तो उनके मन में आया कि क्यों न वे अपनी एक अलग संस्था बनाकर इस प्रकार के असहाय और रोगी पुरुषों की सेवा करें। आज मदर टेरेसा का नाम सारे संसार में प्रसिद्ध है। आज वे किसी एक देश की न होकर सार्वभौम हस्ती बन चुकी हैं। 

26 अगस्त, 1910 में अल्बानिया के एक कृषक परिवार में इस छोटी-सी बच्ची का जन्म हुआ था। उसका नाम रखा गया एग्नेस। माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे, इसलिए उसके दिल में भी धार्मिक भावनाएं जागृत होती रहीं।

वह बचपन में अपने माता-पिता के साथ अपने नगर के गिरजाघर में जाती तो उसे ऐसा प्रतीत होता कि कोई अज्ञात शक्ति उसे किसी महान् कार्य के लिए बुला रही है। क्रिश्चियन संस्थाओं से अनेक युवक-युवतियां विभिन्न देशों में सेवा कार्य के लिए अक्सर जाते रहते थे। एग्नेस के घर के आस-पास के कुछ लोग सेवा कार्य के लिए भारत में आए थे। उनके पत्र व्यवहार से इस बालिका एग्नेस को भी पता लगता रहता था कि वे लोग अच्छा काम कर रहे हैं और उस कार्य से उन्हें संतोष प्राप्त हो रहा है।

बालिका एग्नेस ने अपने माता-पिता से कहकर आयरलैण्ड के लारेटो संघ में एक वर्ष तक शिक्षा ग्रहण की, और उसके बाद उन्हें कोलकाता में सेवा कार्य के लिए लारेटो संघ के लिए चुन लिया गया। जितने ईसाई मिशनरी, नर्स अथवा समाज सेविकाओं के रूप में भारत अथवा किसी भी अन्य देश में जाते हैं, उन्हें अपने संघ के कुछ नियमों का पालन करना होता है। उदाहरण के लिए- वे किसी बस अथवा प्राइवेट टैक्सी आदि से सफर नहीं कर सकते। उन्हें संघ के एक निश्चित स्थान पर ही रहना पड़ता है और वहां के अधिकारियों के आदेश के अनुरूप सेवा कार्यों में भाग लेना पड़ता है।

एग्नेस अन्य लड़कियों के साथ लारेटो संघ की कार में आती-जाती थी और संघ के नियमों के अनुरूप शिक्षा आदि का कार्य करना पड़ता था। लेकिन यह कोलकाता के विभिन्न मार्गों से गुजरते हुए फुटपाथों, पुलों अथवा विभिन्न पार्कों में पड़े हुए अपाहिजों, रोगियों तथा अन्य कष्टों में भरे हुए लोगों को देखती तो उसके मन में संघ की सीमाएं पार करके उनकी सेवा करने की इच्छा होती।

कोलकाता में दो वर्ष तो इस बालिका ने लारेटो संघ के अदब-कायदे के अनुसार बिता दिए लेकिन उसके मन में हर समय कुछ अलग हटकर कष्टों से घिरे उन्हीं लोगों के जीवन के समान अपना जीवन बिताते हुए सेवा करने की बात आती रही।

कोलकाता के लारेटो संघ में कार्य करते हुए उन्हें दो वर्ष हो चुके थे और अब उनका नाम एग्नेस के बजाय टेरेसा पड़ चुका था। इसके बाद वे कुछ समय आराम करने के लिए दार्जिलिंग चली गईं। लेकिन रास्ते भर वह कोलकाता के दीन-दुखियों के प्रति द्रवित होकर उनकी सेवा से संबंधित कार्यों के विषय में ही सोचती रहीं।

दार्जिलिंग से लौटने पर आर्क बिशप ने उन्हें बताया कि उन्हें उनकी इच्छा अनुसार कार्य करने की आज्ञा मिल गई है। लेकिन आर्क विशप का कहना था कि वे सेवा कार्य तो भले ही करें लेकिन उनका रहन-सहन और कपड़े आदि संघ के नियमों के अनुरूप ही होने चाहिए, लेकिन टेरेसा को यह मंजूर न था।

अगले दिन वह बाजार गईं और अपने पहनने के लिए एक सफेद धोती जिसमें किनारे पर तीन नीली धारियां थीं, खरीद लाईं। उन्होंने संघ के वस्त्रों का परित्याग कर दिया और वह धोती पहन कर जब विशप से मुलाकात करने गईं तो विशप उन्हें पहचान भी न सके।

Mother Teresa मदर टेरेसा
मदर टेरेसा की 110वीं जयंती

उस समय भी उन्हें समझाया गया कि वे सेवा का कार्य संघ के नियमों का पालन करते हुए भी कर सकती हैं। लेकिन टेरेसा ने निश्चय कर लिया था कि वह दुखियों-दरिद्रों और कष्ट से पीड़ित लोगों की सेवा उन्हीं के बीच रहकर करेंगी। अब कठिनाई यही थी कि उन्होंने अभी तक शिक्षा के क्षेत्र में कार्य किया था, उपचार और नर्सिंग आदि का उन्हें अनुभव न था। इसलिए फादर ने उन्हें पटना में अमेरिकन मैडिकल मिशनरी सिस्टर्स नामक संस्था में ट्रेनिंग के लिए भेज दिया। उन्होंने दिन-रात वहां काम करके तीन महीने में ही सामान्यतया सभी प्रकार के रोगों के उपचार की ट्रेनिंग ले ली, जबकि पूर्ण जानकारी के लिए बहुत अधिक समय लगता है। उसके बाद वह फिर कोलकाता लौट आईं।

कोलकाता में उनके सामने अब समस्या यह थी कि कहीं कोई स्थान उन्हें अपने कार्य के लिए प्राप्त हो। आखिर उन्हें एक झोंपड़ी मिली और उन्होंने उसी में कार्य प्रारंभ कर दिया। पहले-पहल वह कुछ निर्धन बच्चों को शिक्षा देने लगीं धीरे-धीरे उनकी सेवा का क्षेत्र व्यापक होता गया उन्हें एक मकान काली के मंदिर के पास मिला। वह मंदिर की धर्मशाला का एक कमरा ही था जिसमें वह कुछ रोगियों का उपचार किया करती थीं। प्रारंभ में लोगों ने इनका बहुत विरोध किया और वे नगर निगम के अधिकारियों के पास भी पहुंचे। ताकि इस ईसाई महिला को वहां से निकाल कर लोगों को धर्म भ्रष्ट होने से बचाया जाए। लेकिन जब निगम का अधिकारी वहां पहुंचा तो उसने देखा कि वे तो निर्धन, गरीब, बीमार लोगों की सेवा में लगी हुई हैं- किसी के घाव साफ करने में, किसी को पट्टी बांधने में और किसी को स्वस्थ हो जाने की सांत्वना देने के काम में लगी हैं। अपने हाथ से किसी रोगी को कुछ खिला रही हैं। ऐसी स्थिति में उन्हें निकालना असंभव था। उस अधिकारी ने उन्हें निकालने वाली भीड़ से कहा कि यदि आप माताएं और पत्नियां उसी प्रकार का कार्य करें तो क्या मैं उन्हें यहां से निकाल सकता हूं?

इसी प्रकार एक बार काली के मंदिर का पुजारी बहुत बीमार हुआ। वह मदर टेरेसा (Mother Teresa) के पास जाने में झिझक रहा था क्योंकि उसने धर्मशाला के कमरे से उन्हें निकालने के लिए बहुत हो-हल्ला मचाया था। जब मदर टेरेसा को पता चला तो स्वयं उन्होंने उसकी सेवा कर उसे स्वस्थ कर दिया। उसे क्या मालूम था कि ईसा में विश्वास करने वाली महिला सेवा कार्य में उससे भी अधिक विश्वास करती है। उसी से प्रेरणा लेकर वह इस सेवा कार्य में लगीं हैं। पुजारी के मुख से अनायास निकल पड़ा कि मैंने काली की सेवा में इतने वर्ष रहकर भी मां के साक्षात दर्शन आज किये हैं।

अब तक लोग उन्हें मदर टेरेसा (Mother Teresa) के नाम से पुकारने लगे थे। दिनों-दिन उनकी सेवा के कार्य क्षेत्र का विस्तार हो रहा था। इसलिए उन्हें स्थान की कमी थी। लेकिन फादर और मि. माइकेल के सहयोग से उनकी समस्या का कुछ हल निकला। मि. माइकेल ने अपने घर की एक मंजिल मदर टेरेसा को काम के लिए दे दी। धीरे-धीरे वहां इतने बच्चे और उनके साथ काम करने वाली स्वयं सेविकाएं आ जुटीं कि उन्हें वह स्थान भी कम पड़ने लगा। लेकिन मदर के मन में पूर्ण विश्वास था कि ये सभी समस्याएं कार्य के साथ-साथ स्वयं सुलझती जाएंगी।

मदर ने लारेटो संघ से अलग होकर जो कार्य प्रारंभ किया था तो उनके पास धन के नाम पर केवल पांच रुपये थे। आज संसार के बड़े-बड़े राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति उनकी सहायता करने में अपने आपको गर्वित अनुभव करते हैं। यह सब मदर के निःस्वार्थ मेवा और प्रभु में अटूट विश्वास का ही फल है। आज उनकी संस्था को सेवा कार्य के लिए न तो धन की कमी है और न उनके साथ स्वयंसेवक के रूप में कार्य करने वाली महिलाओं की। आज हजारों लड़कियां उनकी संस्था के साथ सेवा कार्य में लगी हैं।

यहां यह बता देना आवश्यक है कि मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने इस सेवा कार्य के लिए अपनी संस्था का नाम ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ रखा। उनके साथ काम करने वाली युवतियों के लिए एक नियम बनाया गया कि वे आजीवन अविवाहित रहेंगी। आज कोलकाता के ‘निर्मल हृदय’ तथा अन्य अनेक आश्रमों, सेवा संस्थानों का जाल भारत में ही नहीं संसार के अनेक नगरों में भी फैला हुआ है। जहां तीन-चार हजार से अधिक स्वयं सेविकाएं मदर टेरेसा  के कार्यों को आगे बढ़ा रही हैं। जिनमें सभी क्षेत्रों, वर्गों और श्रेणियों की लड़कियां शामिल हैं।

मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने प्रारंभ में शिक्षा के कार्य के साथ-साथ रोगियों की सेवा का कार्य भी अपने हाथ में लिया जिसमें कुष्ठ रोगी भी सम्मिलित थे। धीरे-धीरे यह कार्य इतना विस्तृत हुआ कि इस कार्य के लिए उन्हें जगह-जगह केन्द्र खोलने पड़े।

Mother Teresa मदर टेरेसा
Mother Teresa Birth Anniversary

मदर टेरेसा (Mother Teresa) ने राजनीतिक अथवा औद्योगिक रूप से लोगों की समस्या और कष्ट दूर करने की बजाय उनके शारीरिक और मानसिक कष्टों को दूर करना प्रथम कर्तव्य समझा। उन्होंने अनाथ बच्चों और विधवाओं तथा रोगियों के लिए अनेक स्थानों पर केन्द्र खोले। पहले-पहल जहां उनके मन में केवल कोलकाता में कार्य करने की इच्छा थी, वह धीरे-धीरे बढ़कर सारे विश्व में फैल गई। नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, यूगोस्लाविया, मालटा, इंगलैंड और दक्षिण अमेरिका में भी मदर टेरेसा ने अपने सेवा केन्द्र खोल दिये।

मदर टेरेसा (Mother Teresa) की निःस्वार्थ सेवाओं से प्रभावित होकर अनेक सरकार ने उन्हें सम्मान के साथ-साथ धन से भी सहयोग किया है। भारत सरकार ने पहले पहल उन्हें 1962 में ‘पद्मश्री’ से विभूषित किया, लेकिन उनके महान् कार्य को देखते हुए 1980 में ‘भारत-रत्न’ के सर्वोच्च सम्मान से विभूषित किया गया। 1979 में उन्हें संसार का सर्वोच्च ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ प्रदान किया गया, जिसके अंतर्गत एक लाख अस्सी हजार रुपया उन्हें भेंट किया गया। 1962 में मैगासेसे पुरस्कार और 1971 में ‘अनजान शांति पुरस्कार’ और 1971 में कैनेडियन ‘राष्ट्रीय पुरस्कार’ तथा इसी प्रकार अन्य कई पुरस्कारों से दुनिया के देशों, सरकारों, शिक्षण संस्थानों आदि ने मदर को सम्मानित करने का प्रयत्न किया। इसके अलावा मदर टेरेसा को कार्य में सुविधा देने के लिए भारत सरकार ने रेल और वायु सेवा से निःशुल्क यात्रा करने का भी प्रबंध किया।

मदर टेरेसा (Mother Teresa) को जितने पुरस्कार, धनराशियां अथवा जो भी सहायता प्राप्त हुई, वह सब दीन-दुखियों की सेवा कार्य के लिए ही उपयोग में लाई गईं। मदर उसमें से निजी उपयोग के लिए कुछ भी नहीं रखीं। सचमुच ‘सेवाधर्म परम गहनो योगिनामप्यगम्य’- सेवा धर्म बहुत कठिन कार्य है। लेकिन जो निरभिमान होकर इस कार्य में जुट जाता है, संसार उसके लिए पलकें बिछा देता है। विश्व भर से सम्मान प्राप्त मदर टेरेसा ने कोलकाता में वर्षों पूर्व नीले किनारे की जो सादी-सी धोती अपनाई थी, आज भी वही वेश इस तपस्विनी मां की पहचान है।

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सन् 1983 में मदर टेरेसा (Mother Teresa) को प्रथम हृदय आघात हुआ जब वह रोम की यात्रा पर थीं। सन् 1989 में दूसरी बार दिल का दौरा पड़ा। सन् 1991 में जब वे मेक्सिको में थीं तो वे निमोनिया की शिकार हो गईं। सन् 1996 में जब वह टहल रही थीं तो फर्श पर गिर गईं और उनकी कॉलर बोन टूट गई। लेकिन उसके बाद भी उन्होंने प्रतिदिन के सेवा कार्य में कोई अवरोध उत्पन्न नहीं होने दिया। अगस्त 1996 में वे मलेरिया से पीड़ित हो गईं। मार्च 1997 में मिशनरीज के अध्यक्षा पद से हट गईं क्योंकि उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं रहा।

5 सितम्बर 1997 को मदर टेरेसा (Mother Teresa) की स्वाभाविक मृत्यु हो गई। जब उनकी मृत्यु हुई, तब मिशनरीज में 400 सिस्टर व 300 ब्रदर्स कार्यरत थे और करीब एक लाख सेवक थे। 123 देशों में 610 मिशनरीज के केन्द्र संचालित थे।

शायद संसार में मदर टेरेसा (Mother Teresa) प्रथम महिला थीं कि जहां वह रहती थीं उसी मदर हाऊस में उन्हें दफना दिया गया यही उनकी आखिरी इच्छा थी।

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