जयंती विशेष: हिंदी भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार और कथाकार थे मनोहर श्याम जोशी

जोशीजी (Manohar Shyam Joshi) ऐसे संपादक थे जो अपने स्तंभों के लिए भी याद किए जाते हैं। ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी उन्होंने अनेक स्तंभ लिखे, जो पाठकों के बीच लोकप्रिय भी हुए।

Manohar Shyam Joshi मनोहर श्याम जोशी

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कुछ लोग ऐसा सोचते हैं कि जिसे लिखना आता है वह कुछ भी लिख सकता है लेकिन यह सच नहीं है। हर विधा की, हर माध्यम की अपनी अलग-अलग विशेषताएं होती हैं और उनके लिए लिख सकने के लिए अलग-अलग तरह की योग्यताएँ दरकार होती हैं। उदाहरण के लिए, पत्रकार से यह आशा की जाती है कि वह यथार्थ का कम-से कम शब्दों में ज्यों-का-त्यों वर्णन करेगा और अपनी कल्पना से कोई काम नहीं लेगा। दूसरी ओर कहानीकार से यह उम्मीद की जाती है कि वह अपनी कल्पना के सहारे यथार्थ को एक यादगार रंग देकर साहित्य के स्तर पर पहुंचा देगा। लेकिन विरले ही लोग ऐसे होते हैं जो दोनों विधाओं में पारंगत होते हैं। ऐसे ही प्रतिभाशाली पत्रकार, उपन्यासकार, कथाकार, पटकथा-लेखक हैं मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi)।

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मनोहर जोशी (Manohar Shyam Joshi) का जन्म 9 अगस्त, 1933 को अजमेर (राजस्थान) में हुआ। वे मूलत: कुमाऊंनी ब्राह्मण हैं। उनके पिता प्रेम बल्लभ जोशी वहां शिक्षा विभाग में उच्चाधिकारी थे। अपने जमाने में उनके पिता की ख्यात शिक्षाविद् संगीत विद आदि विविध रूपों में थी और शिक्षाविद् के बतौर उनको अंग्रेजों से रायसाहब’ की उपाधि भी मिली थी। डॉ. नगेंद्र संपादित ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ में श्री प्रेम बल्लभ जोशी का उल्लेख हिंदी में विज्ञान की आरंभिक पुस्तक ‘ताप’ के लेखक के रूप में आता है। अपनी एक भेंटवार्ता में जोशीजी ने विस्तार से बताया कि किस तरह उनके पिता की छवि एक हरफनमौला के रूप में बनी थी। यद्यपि उनका देहांत कम उम्र में ही हो गया था, लेकिन उन्होंने अनेक क्षेत्रों में ख्याति अर्जित की पिताजी के देहांत के समय इनकी आयु मात्र आठ वर्ष थी।

मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi) के प्रथम उपन्यास ‘कुरु कुरु स्वाहा’ में उनके परिचय में लिखा है कि वे एक ऐसे लेखक थे, जिन्होंने रचना और व्यक्ति दोनों स्तर पर अलग से पहचान बनाई। सचमुच हिंदी के लेखकों, पत्रकारों में उनका व्यक्तित्व सबसे अलग दिखाई देता है। पत्रकारिता में आने से पहले वो स्कूल में अध्यापक, सरकारी दफ्तर में क्लर्क की नौकरी कर चुके थे। भारत सरकार के सूचना विभाग में अधिकारी की हैसियत से उन्होंने फिल्म्स डिवीजन में काम किया। हिंदी के पहले समाचार साप्ताहिक ‘दिनमान’ में अज्ञेयजी के साथ सहायक संपादक के रूप में काम किया। बाद में करीब पंद्रह सालों तक हिंदुस्तान टाइम्स समूह की हिंदी पत्रिका ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ का संपादन किया। अपने संपादन में व्यावसायिक पत्रिका का उन्होंने एक ऐसा मानक तैयार किया, जिसमें गंभीरता के लिए भी पर्याप्त जगह थी।

जोशीजी (Manohar Shyam Joshi) ऐसे संपादक थे जो अपने स्तंभों के लिए भी याद किए जाते हैं। ‘साप्ताहिक हिंदुस्तान’ में भी उन्होंने अनेक स्तंभ लिखे, जो पाठकों के बीच लोकप्रिय भी हुए। इस संदर्भ में उनके अत्यंत लोकप्रिय स्तंभ ‘नेताजी कहिन का उल्लेख किया जा सकता है। अस्सी के दशक में लेखक के रूप में उन्होंने विशिष्ट पहचान बनाई। ‘कुरु कुरु स्वाहा’, ‘कसप’ जैसे उपन्यासों के प्रकाशन के साथ उनकी गणना हिंदी के आरंभिक उत्तर-आधुनिक उपन्यासकारों में की जाने लगी। उपन्यास और उनके लेखन का एक आयाम था, तो उनकी लेखकीय प्रतिभा को दूसरा आयाम टेलीविजन धारावाहिकों के लेखक के रूप में मिला ।

जोशीजी (Manohar Shyam Joshi) निर्विवाद रूप से टेलीविजन धारावाहिकों का आरंभिक पटकथाकार कहा जाता है। ‘हमलोग’ उनका लिखा पहला धारावाहिक था, जो संयोग से भारतीय टेलीविजन पर प्रसारित होने वाला पहला धारावाहिक बना। इसके बाद उन्होंने रमेश सिप्पी निर्देशित ‘बुनियाद’ की पटकथा लिखी। इन दोनों धारावाहिकों की लोकप्रियता ने उन्हें सफलता और प्रसिद्धि की बुलंदियों पर पहुंचा दिया।

मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi) ने अनेक फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद लेखन का काम किया। यहां उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली। इसका एक कारण शायद यह भी है कि सिनेमा में पूरी तरह निर्देशक ही माध्यम होता है और उसमें लेखक की कहानी को निर्देशक अपने किसी खास एंगल से सिनेमा में ढालता है और इस क्रम में लेखक का संदेश कई बार कहीं पीछे छूट जाता है। ‘हे राम’, ‘भ्रष्टाचार’, ‘पापा कहते हैं’ उनकी लिखी कुछ ऐसी फिल्में हैं, जिनकी चर्चा की जा सकती है।

इसके अलावा, सिनेमा की डबिंग या रूपांतरण के क्षेत्र में उनका अत्यंत महत्त्वपूर्ण योगदान है, जिसके बारे में लोगों को अधिक जानकारी नहीं है। एक भाषा से दूसरी भाषा में जब किसी फिल्म को डब किया जाता है तो उसमें लेखक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है । डबिंग में मूल रूप से ‘लिप सिंक’ सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। अगर तमिल भाषा में संवाद बोलने के लिए अभिनेताओं के होंठ खुले हैं तो हिंदी में डब करते समय लेखक को उन्हीं खुले होंठों पर हिंदी के शब्द रखने पड़ते हैं। वैसे शब्द जिनके वही मायने हों, जो तमिल में बोले गए शब्द के हों, इसे ही ‘लिप सिंक’ कहा जाता है।

प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता-निर्माता-निर्देशक कमल हासन के लिए जोशीजी ने अनेक फिल्मों को तमिल से हिंदी में डब किया। जिनको हिंदी-भाषी दर्शकों से पर्याप्त सराहना भी मिली। अप्पू राजा’, ‘मेयर साहब’, ‘अभय’ फिल्में मूल रूप से तमिल भाषा में बनाई गई थीं, जोशीजी ने उनको हिंदी में डब किया। गौरतलब है कि डबिंग के लिए लेखक का भाषा और भाषा-प्रयोगों का ज्ञान बहुत मायने रखता है। अस्सी-नब्बे के दशक में जब वे डबिंग का काम कर रहे थे तो इस विशिष्ट कार्य में भी उनकी गणना चोटी के लेखकों में की जाती थी।

मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi) का व्यक्तित्व बहुआयामी कहा जा सकता है। उनके इस बहुआयामी व्यक्तित्व का केंद्रीय आयात लेखन था। उनको एक ऐसे लेखक के रूप में याद किया जाएगा, जो अन्य माध्यमों में लेखन की कसौटी पर खरे उतरे। यही कारण है कि हिंदी पत्रकारों-लेखकों में उनका व्यक्तित्व सबसे अलग दिखाई देता है। वे एक ऐसे पत्रकार थे, जिनका पत्रकारिता और साहित्य से समान नाता रहा।

हिंदी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार, पत्रकार, और पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi) का निधन 30 मार्च 2006 नई दिल्ली में हो गया।

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