अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंकने वाले पहले भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे मंगल पांडे

मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने तत्काल अपनी छाती पर नाल रखकर गोली चला दो । वे नहीं चाहते थे कि अंग्रेज उन्हें जीवित पकड़कर उनकी दुर्गति कर दें,

Mangal Pandey

8 अप्रैल, 1857 के दिन बैरकपुर छावनी की रेजिमेंट के सिपाही को फौजी अनुशासन भंग करने और हत्या के अपराध में फाँसी पर चढ़ाया गया। फाँसी देने के लिए कोई उस स्थान पर जब कोई जल्लाद नहीं मिला तो कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाकर इस फौजी को फांसी दी गई। यह फौजी था-भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रथम शहीद मंगल पांडे (Mangal Pandey)। अजीमुल्ला खाँ द्वारा तैयार की गई 31 मई, 1857 के गदर की योजना को नाना साहेब पेशवा ने क्रियान्वित किया, पर मातृभूमि की आजादी के लिए प्राण न्योछावर करने वाले प्रथम योद्धा बने मंगल पांडे।

Mangal Pandey

मंगल पाण्डेय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1857 में भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही थे। मंगल पाण्डेय का जन्म भारत में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा नामक गांव में 19 जुलाई 1827 को एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडे था। जमींदार ब्राह्मण को भूमिहार कहा जाता है। “भूमिहार ब्राह्मण” होने के बाद भी मंगल पाण्डेय सन् 1849 में 22 साल की उम्र में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हो गए।

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बैरकपुर की 19 नंबर रेजिमेंट में जब यह खबर फैली कि अंग्रेजों द्वारा गाय व सूअर की चर्बी के प्रयोग वाले कारतूस आए हैं, तो वहाँ असंतोष फैल गया। 31 मई, 1857 को गदर की तैयारी के लिए बैरकपुर में रेजिमेंट का मुखिया वजीर अली खाँ को बनाया गया था।

कारतूसों को इस्तेमाल करने से इनकार कर देने के कारण अंग्रेजों ने रेजिमेंट को नि:शस्त्र करने की योजना बनाई। इन परिस्थितियों ने मंगल पांडे (Mangal Pandey) को गुलामी की बेड़ियाँ काटने के लिए उद्वेलित कर दिया।

29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी के अपने कमरे में बैठे मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने अपनी बंदूक उठाकर उसे माथे से लगाकर चुमा भारत, माता की बारमबार मनुति करते हुए बंदूक में गोली भरी, फिर परेड ग्राउंड की तरफ चल पड़े। साथियों ने रोका, मंगल पांडे ने ललकारा-‘व्यर्थ प्रतीक्षा मत करो। चलो आज ही फैसला करो। आज ही फिरंगियों का सफाया करो।”

उन्होंने धर्म की सौंगध देते हुए ललकार- ” स्वतंत्रता की देवी तुम्हें पुकार रही है और कह रही है कि तुम्हें धोखेबाज व मक्कार शत्रुओं के खिलाफ फौरन आक्रमण बोल देना चाहिए। अब और रुकने की आवश्यकता नहीं है।”

Mangal Pandey

मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने सिंहनाद कर दिया, तभी वहाँ सार्जेंट मेजर स्यूसन आ गया। और उसने मंगल पांडे की गिरफ्तारी का आदेश दिया, पर सब ने उसकी अनसुनी कर दी। इतने में मंगल पांडे की बंदूक से गोली छूटी और सार्जेंट स्यूसन जमीन चाटने लगा। दूसरा अंग्रेज अफसर लेफ्टिनेंट बॉब घोड़े पर सवार होकर मंगल पांडे की तरफ झपटा। मंगल ने दूसरी गोली चला दी, जो घोड़े को लगी और वह बॉब को लिये-दिए गिर पड़ा, बॉब ने पिस्टल से मंगल पांडे पर फायर किया, मगर निशाना चूक गया। इतने में मंगल ने तलवार से बॉब को मौत के घाट उतार दिया। इसी समय एक अंग्रेज ने पीछे से मंगल पर हमला किया तभी एक भारतीय सिपाही ने जोर से बंदूक का कंदा उसके सिर पर दे मारा, जिससे अंग्रेज का सिर फट गया और वह धरती पर गिर पड़ा।

इतने में विद्रोह की खबर कर्नल ह्वीलर को मिली। परेड ग्राउंड में पहुंचकर उसने भारतीय सैनिकों को आज्ञा दी–पांडे को गिरफ्तार करो। जवाब में सिपाहियों के बीच से सिंहनाद हुआ-“खबरदार, कोई मंगल पांडे को हाथ न लगाए। हम उनका बाल भी बाँका न होने देंगे।”

कर्नल ह्वीलर ने अंग्रेजों की लाशें देखीं, मंगल पांडे (Mangal Pandey) का रक्त से सना शरीर देखा, विद्रोह के मुहाने पर खडी फौज को देखा और कुछ सोचता हआ लौट गया। उसने जनरल हियर्से को खबर की। अंग्रेज सेना के साथ हियर्स परेड ग्राउंड में आ धमका। मंगल पांडे ने अंग्रेज सेना को आते देखकर गर्जंना की- भाइयो, बगावत करो, बगावत करो। अब देर करना उचित नहीं। देश को तुम्हारा बलिदान चाहिए।” पर भारतीय सिपाही 31 मई को तय तारीख और क्रांतिकारी आंदोलन के अनुशासन के कारण शांत रहे।

मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने तत्काल अपनी छाती पर नाल रखकर गोली चला दो । वे नहीं चाहते थे कि अंग्रेज उन्हें जीवित पकड़कर उनकी दुर्गति कर दें, पर भाग्य से वे मरे नहीं। अंग्रेजों ने फौजी अस्पताल में उनका इलाज करवाया। ठीक होने पर उन पर फौजी अनुशासन भंग करने और हत्या का मुकदमा चला।

मंगल पांडे (Mangal Pandey) ने कहा, “जिन अंग्रेजों पर मैंने गोली चलाई, उनसे मेरा कोई झगड़ा नहीं था । झगड़ा व्यक्तियों का नहीं, दो देशों का है। हम नहीं चाहते कि दूसरों के गुलाम बनकर रहें। फिरंगियों को हम अपने देश से निकाल देना चाहते हैं।” अदालत ने मंगल पांडे को सजा-ए-मौत सुनाई। 8 अप्रैल, 1857 को मंगल पांडे को फांसी दे दी गई।

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