पुण्यतिथि विशेष: किसी भाषा और संस्कृति के दायरे में बंधी हुई नहीं थीं महाश्वेता देवी की रचनाएं

महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) की रचनाओं को पढ़ते हुए जमीनी हकीकत और कड़वे सच इस कदर महसूस होने लगते हैं, जो सीधे-सीधे पाठकों के दिलो-दिमाग में उतर जाते हैं।

Mahashweta Devi महाश्वेता देवी

Mahashweta Devi Death Anniversary II महाश्वेता देवी एक महान सामाजिक कार्यकर्ता और लेखिका थीं।

महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) का नाम ध्यान में आते ही उनकी कई-कई छवियां आंखों के सामने प्रकट हो जाती हैं। दरअसल उन्होंने मेहनत व ईमानदारी के बलबूते अपने व्यक्तित्व को निखारा। एक पत्रकार, लेखक, साहित्यकार और आंदोलनधर्मी के तौर पर पहचान बनाने वाली महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी को बांग्लादेश के ढाका में हुआ था। ढाका में एक मध्यवर्गीय परिवार में 1926 को जन्मीं महाश्वेता के पिता मनीष घटक एक सुविख्यात कवि और चाचा रित्विक घटक प्रख्यात फिल्मकार थे। घटक को भारत में समानांतर सिनेमा का स्तंभ माना जाता है।

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महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) ने रविंद्रनाथ ठाकुर के शिक्षण संस्थान शांतिनिकेतन में शिक्षा प्राप्त की और प्रसिद्ध नाटककार बिजोन भट्टाचार्य से उनका विवाह हुआ। बिजोन इंडियन पीपल्स थियेटर एसोसिएशन (इप्टा) के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। महाश्वेता देवी की पारिवारिक जिंदगी बहुत स्थिर नहीं रही। उनकी शादी बहुत लंबी नहीं टिक सकी। पहले बिजोन भट्टाचार्य और बाद में असीत गुप्त के साथ उनकी शादीशुदा जिंदगी बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चली। ढलती उम्र में ही उनके बेटे का भी निधन हो गया था, लेकिन घर-परिवार और निजी जिंदगी की तकलीफों का उनकी रचनाओं पर बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता था।

वास्तविकता में महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) हर परिस्थिति को सहज भाव से स्वीकार करती थीं। वह बहुत कम उम्र से ही साहित्य और लेखन जगत से जुड़ गई थीं। उन्होंने अपनी पहली रचना ‘झांसी की रानी’ को जिस ढंग से लिखा था, उसमें इतिहास के साथ-साथ नाटकीयता की भी झलक मिलती थी। एक रोचक बात यह कि महाश्वेता देवी ने लोकगीत, लोककथा और आम लोगों के गानों को भी अपने साहित्य में स्थान दिया था।

महाश्वेता (Mahashweta Devi) ने अपने जीवन का लंबा समय आदिवासियों के जल, जंगल और जमीन की लड़ाई के संघर्ष में खर्च कर दिया। उन्होंने पश्चिम बंगाल की दो जनजातियों ‘लोधास’ और ‘शबर’ विशेष पर बहुत काम किया है। इन संघर्षों के दौरान पीड़ा के स्वर को महाश्वेता ने बहुत करीब से सुना और महसूस किया है। पीड़ा के ये स्वर उनकी रचनाओं में साफ-साफ सुनाई पड़ते हैं। उनकी कुछ महत्वपूर्ण कृतियों में ‘अग्निगर्भ’ ‘जंगल के दावेदार’ और ‘1084 की मां’ हैं। उन्हें महत्वपूर्ण पुरुस्कार पद्म विभूषण, रैमन मैग्सेसे, भारतीय ज्ञानपीठ सहित कई अन्य पुरस्कार मिले हैं।

23 जुलाई 2016 को मेजर हार्ट अटैक के बाद कोलकाता के अस्पताल में उनका निधन हो गया। उनका जाना साहित्‍य लिखने से पहले जमीन पर बदलाव करने के बारे में सोचने वाले लेखकों की पीढ़ी का खत्‍म हो जाना है। महाश्वेता देवी (Mahashweta Devi) की रचनाओं को पढ़ते हुए जमीनी हकीकत और कड़वे सच इस कदर महसूस होने लगते हैं, जो सीधे-सीधे पाठकों के दिलो-दिमाग में उतर जाते हैं और उन्हें गहराई तक प्रभावित करते हैं। महाश्वेता देवी जब तक जिंदा रहीं, शोषितों, विद्रोह करने वालों और समाज के पिछड़े वर्ग के लिए काम करती रहीं। उनकी रचनाएं किसी भाषा और संस्कृति के दायरे में बंधी हुई नहीं थीं, बल्कि राज्य की सीमाओं को लांघ कर वे हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज कराती दिखीं।

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