सरकार के सामने फ्लोर टेस्ट का संकट, NCP-कांग्रेस-शिवसेना दिखाएंगे ताकत

Politics

Maharashtra CM and Deputy CM greeting hands after ferming the new govt. । Photo Credit- ANI

महाराष्ट्र में तेजी से बदली राजनीतिक (Politics) परिस्थितियों में कांग्रेस, एनसीपी व शिवसेना के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने-अपने विधायकों को बचाए रखने की है। राज्य की राजनीति का भविष्य इसी रणनीति पर आगे तय होगा।

 

बीजेपी बहुमत साबित करने के लिए इन दलों में सेंध लगाने की पूरी कोशिश करेगी। राज्य की राजनीति (Politics) का ऊंट किस करवट बैठेगा इसकी असली राजनीतिक (Politics) परीक्षा अब शुरू होगी। राज्य में तेजी से बदले घटनाक्रम से सबसे ज्यादा सकते में कांग्रेस है। वह अपने को ठगा सा महसूस कर रही है। इतना ही नहीं उसे अपनी पार्टी में टूट का सबसे ज्यादा डर सता रहा है। और आने वाले दिनों में पार्टी को एकजुट बनाए रखना पार्टी आलाकमान के लिए बड़ी चुनौती होगी।

स्पीकर के चुनाव में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस दिखाएंगे ताकत

मोदी और शाह के रणनीतिक कौशल से वाकिफ कांग्रेस की अब पहली प्राथमिकता फ्लोर टेस्ट से पहले विधानसभा अध्यक्ष का चुनाव है। पार्टी सूत्रों के अनुसार यदि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव में बीजेपी को पराजित नहीं किया गया तो येन-केन प्रकाणोन बीजेपी अपना बहुमत साबित करने में सफल हो जाएगी। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने शरद पवार से विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव की रणनीति (Politics) पर चर्चा की है। कांग्रेस की कोशिश है कि स्पीकर के चुनाव में बीजेपी को हरा कर उसके मंसूबों को ध्वस्त किया जा सकता है।

विधायकों को बचाना तीनों दलों के लिए बड़ी चुनौती

शिवसेना, कांग्रेस व एनसीपी के बीच अब स्पीकर चुनाव को लेकर रणनीति पर काम हो रहा है। इस चुनाव से पहले तक तीनों दलों की कोशिश अपने विधायको को सुरक्षित बचाए रखने की है। कांग्रेस नेताओं का मानना है कि एनसीपी को टूटने से तभी बचाया जा सकता है जब कि स्पीकर इन तीनों दलों का हो। दरअसल कांग्रेस अपने इस राजनीतिक (Politics) र्थमामीटर के द्वारा शरद पवार की रणनीति का तापमान भी नापना चाहती है। कारण कल देर रात से राज्य में जिस तरह से राजनीतिक (Politics) घटनाक्रम चला उसके बाद से पार्टी के अंदर एनसीपी नेता शरद पवार की भूमिका को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।

इससे पहले पवार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मिलने की टाइमिंग को लेकर भी पार्टी के अंदर नाराजगी थी। लेकिन गठबंधन के खातिर ऊपरी तौर पर ज्यादा कुछ नहीं कहा गया, लेकिन शनिवार सुबह जिस तरह से अप्रत्याशित रूप से शरद पवार के भतीजे अजीत पवार ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार गठन का रास्ता साफ किया और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली उससे शरद पवार की भूमिका को लेकर सवाल उठना शुरू हो गए। फिलहाल कांग्रेस नेतृत्व का इन सब बातों में उलझने की बजाए पूरा फोकस इस बात पर है कि पार्टी का एक भी विधायक टूट न पाए ।

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