कुलदीप नैयर पुण्यतिथि: प्रेस की आजादी के लिए हमेशा संघर्षरत रहने वाले पत्रकार, जिन्होंने खूब की भारत-पाक के बीच शांति व सौहार्द की पैरवी

नैयर (Kuldip Nayar) भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई साल तक कार्य करने के बाद समाचार एजेंसी यूएनआई, पीआईबी, ‘द स्टैट्समैन’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे।

Kuldip Nayar कुलदीप नैयर

Kuldip Nayar Death Anniversary II वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर की पुण्यतिथि

Remembering Kuldip Nayar: पत्रकारिता जगत में धुव्र तारे की तरह हैं कुलदीप नैयर। आज इनकी पुण्यतिथि है। पत्रकारिता की दुनिया में वे सदा मुखर आवाज रहे। कुलदीप नैयर सरकार की नींद उड़ाने वाले पत्रकार थे। नैयर कद्दावर शख्स थे और कद्दावर पत्रकार भी। इनका जन्म 14 अगस्त 1924 को बंटवारे से पहले सियालकोट में हुआ। इनकी स्कूली शिक्षा सियालकोट में ही हुई और लाहौर से कानून की डिग्री ली। अमेरिका से इन्होंने पत्रकारिता की डिग्री और दर्शनशास्त्र में डॉक्टरेट की उपाधी ली।

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आज ऐसे पत्रकार उंगलियों पर गिने जा सकते हैं, जिनसे सत्ताधारी इस कदर घबराते हों। नैयर (Kuldip Nayar) 1996 में संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। 1990 में उन्हें ग्रेट ब्रिटेन में उच्चायुक्त नियुक्त किया गया। अगस्त, 1997 में उन्हें राज्यसभा में नामांकित किया गया था। कुलदीप नैयर ने कई किताबों का भी लेखन किया, जिसमें बिटवीन द लाइन्स, डिस्टेंट नेवर: ए टेल ऑफ द सब कॉन्टीनेंट, वॉल एट वाघा, इंडिया पाकिस्तान रिलेशनशिप आदि शामिल हैं। इसके साथ ही वे 80 से अधिक समाचार पत्रों के लिए 14 भाषाओं में कॉलम लिखते रहे।

नैयर (Kuldip Nayar) भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई साल तक कार्य करने के बाद समाचार एजेंसी यूएनआई, पीआईबी, ‘द स्टैट्समैन’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के साथ लंबे समय तक जुड़े रहे। वे पच्चीस सालों तक ‘द टाइम्स’ लंदन के संवाददाता भी रहे। उन्हें नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी की ओर से ‘एल्यूमिनी मेरिट अवार्ड’ (1999), रामनाथ गोयनका लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड, सिविक पत्रकारिता के लिए प्रकाश कार्डले मेमोरियल अवार्ड (2014), और सिविक पत्रकारिता के लिए प्रकाश कार्डले मेमोरियल अवार्ड (2013) से भी सम्मानित किया गया था। 1923 में सियालकोट में जन्मे कुलदीप नैयर विभाजन के बाद भारत आए।

पुरानी दिल्ली के बल्लीमारां इलाके से निकलने वाले उर्दू अख़बार ‘अंजाम’ से उन्होंने अपने पत्रकारिता के लंबे सफर की शुरुआत की। इसलिए वे मजाकिया अंदाज में कहा भी करते थे कि ‘मेरा आगाज ही अंजाम से हुआ।’ उर्दू और फारसी के जानकार कुलदीप नैयर ने इसी दौरान 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या की खबर को भी कवर किया था, जिसका मर्मस्पर्शी विवरण उन्होंने अपनी किताब ‘स्कूप’ में दिया है। आगे चलकर कुलदीप नैयर (Kuldip Nayar) ‘द स्टेट्समैन’ और ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संपादक भी बने। आपातकाल के दौरान उन्होंने लोकतंत्र का गला घोटने के विरुद्ध आवाज उठाई और वे उन पहले पत्रकारों में थे, जिन्हें मीसा के अंतर्गत गिरफ्तार कर जेल भेजा गया।

कुलदीप नैयर ने (Kuldip Nayar) मानवाधिकार के पक्ष में  लगातार आवाज उठाई और भारत-पाक के बीच शांति व मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों के लिए भी वे हमेशा प्रयासरत रहे। अपनी चर्चित आत्मकथा ‘बियोंड द लाइंस’ के अलावा कुलदीप नैयर ने ‘इंडिया आफ्टर नेहरू’, ‘इमरजेंसी रिटोल्ड’ और ‘स्कूप’ सरीखी किताबें लिखीं। लाहौर में भगत सिंह पर चले मुकदमे पर कुलदीप नैयर ने एक किताब लिखी, ‘विदाउट फीयर : द लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह’। 23 अगस्त, 2018 को 95 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। कुलदीप नैयर पत्रकारिता जगत में अपने अनमोल योगदान के लिए हमेशा पूजनीय रहेंगे।

 

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