कथक क्‍वीन सितारा देवी, जिन्होंने पद्मभूषण सम्मान ठुकराया

Sitara Devi

Sitara Devi Death Anniversary:  सितारा देवी (Sitara Devi) ने शास्त्रीय नृत्य विधा को बॉलीवुड में लाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। खास बात यह है कि सितारा ने अपने पिता के संग्रहित विषयों, कविताओं और नृत्य शैली को अपने नृत्य में उकेरा था। चाहे कोई शहर हो या गांव, वे अपने आसपास के माहौल से प्रेरित थे।

Sitara Devi

मूल रूप से काशी नगर की रहने वाले सितारा देवी (Sitara Devi) का जन्म तब की कला फिल्म नगरी कोलकाता में हुआ था। उनके पिता सुखदेव महाराज विद्वान कथककार और विद्वान थे। काशी के मिश्र परिवार के साथ उनका नाता था और सितारा देवी (Sitara Devi) की मां मत्सय कुमारी नेपाल से थीं। सुखदेव महाराज ने नेपाल राजदरबार में रह कर अपनी प्रतिभा पर शान चढ़ाई और बाद में अपनी बेटियों को भी नृत्यांगना बनने के लिए प्रेरित किया। सुखदेव महाराज उस दौर में अपनी बड़ी बेटियों तारा और अलकनंदा को गायन-वादन में पारंगत बनाना चाहते थे, जब समाज में खासकर सनातनी ब्राह्मण वर्ग इस कला को लेकर काफी उग्र था। इसके बाद यह बंगाल की नीमत सिंह रियासत में चले गए और राज परिवार के बच्चों को नृत्य-संगीत की तालीम देने लगे।

बात 1920 के आसपास की बात है, इसी समय कोलकाता में सितारा देवी (Sitara Devi) का जन्म 8 नवंबर, 1920 को धनतेरस के दिन हुआ। कहीं-कहीं उनके जन्म का साल 1922 भी लिखा गया है। परंपरावादियों के विरोध के बावजूद सितारा को कथक की शुरुआती तालीम काशी की कला संपन्न गलियों में मिली। सुखदेव महाराज ने उन्हें कथक की बारीकियां सिखाई। यह बता दें कि सितारा देवी (Sitara Devi) की दोनों बहने अलकनंदा और तारादेवी भी कथक की नामी फनकार थी। 1931 में संभवतया सितारा देवी (Sitara Devi) ने अपना पहला कार्यक्रम दिया और इसके बाद वे नहीं रुकी। लेकिन उनकी मंजील माया नगरी थी, इसलिए सितारा देवी (Sitara Devi) किशोरावस्था में ही फिल्मों में काम करने लगी। उनकी बड़ी बहन तारा देवी पहले से ही फिल्मों में काम करती थी। कथक सम्राट गोपी कृष्ण जी तारा देवी के बेटे हैं।

सितारा देवी (Sitara Devi) नृत्य के अलावा अभिनय और गायन में निपुण थीं, इसलिए फिल्मों में उनका प्रवेश छोटी उम्र में हो गया। सितारा देवी (Sitara Devi) ने एक इंटरव्यू में कहा था कि ‘12 से 13 साल की उम्र में ही वो मुंबई आ गई थीं। 1933-34 की बात रही होगी। उस समय निर्देशक निरंजन शर्मा फिल्म ‘उपाहरण’ बना रहे थे। फिल्म के लिए उन्हें एक छोटी लड़की की तलाश थी जो नृत्य जानती हो। महान गायिका सिद्धेश्वरी देवी के कहने पर निरंजन सुखदेव महाराज से मिले और सितारा देवी (Sitara Devi) के लिए भूमिका की पेशकश की। इस तरह उनका फिल्मों में आना हुआ। हालांकि यह फिल्म 1940 में आई, तब तक सितारा युवा अदाकारा के तौर पर जम चुकी थीं और कई फिल्मों में गा चुकी थीं।

Sitara Devi

इस बीच में उन्हें ‘वसंतसेना, ‘अनोखी मोहब्बत’, ‘शहर का जादू’ जैसी फिल्मों में काम मिला। इसी समय उनकी दोनों बहने तारा देवी और अलकनंदा भी कई फिल्मों में काम कर चुकी थीं। बताते हैं कि सितारा देवी (Sitara Devi) ने पहली शादी अपने साथी कलाकार मारुति राव पहलवान से की थी और बाद में ये दोनों साथ में रहे भी। यह रिश्ता खत्म होने के बाद वह फिर फिल्मों में रम गई। लेकिन कथक से उनका लगाव चलता रहा और कई फिल्मों को उनके कथक का रंग देखने को मिला।

अभिनेत्री के तौर पर उन्हें पहला मौका सागर मूवीटोन के बैनर तले, महबूब खान निर्देशित फिल्म “जजमेंट ऑफ अल्लाह उर्फ अलहिलाल” में मिला था। अगले 15 सालों में उन्होंने 50 से ज्यादा फिल्मों में गाया और गायन में भी कमाल दिखाया। 1957 में चेतन आनंद की फिल्म ‘अंजली’ शायद उनकी आखिरी फिल्म थी। महबूब खान की “मदर इंडिया” में भी उन्होंने एक भूमिका निभाई थी। इसके बाद वे फिल्मों में नजर नहीं आईं और पूरी तरह कथक को समर्पित हो गईं।

इतिहास में आज का दिन – 08 नवंबर

बहरहाल सितारा देवी (Sitara Devi) ने शास्त्रीय नृत्य विधा को बॉलीवुड में लाने में अग्रणी भूमिका निभाई थी। खास बात यह है कि सितारा ने अपने पिता के संग्रहित विषयों, कविताओं और नृत्य शैली को अपने नृत्य में उकेरा था। चाहे कोई शहर हो या गांव, वे अपने आसपास के माहौल से प्रेरित थे। सितारा देवी (Sitara Devi) के आसपास के चरित्र उनके नृत्य में भी जीवंत हो उठते थे। वे अक्सर कहा करती थी- “मैं बस रियाज से कृष्ण लीला की एक कथाकार हूं। कथक का अर्थ ही होता है कथा। यह कृष्ण मंदिरों में विकसित हुआ और मुस्लिम राजाओं के दरबार में अपनी बुलंदियों पर पहुंचा”।

सितारा देवी (Sitara Devi) की जड़ें इन्हीं कथाकारों या आरंभिक कथक नर्तकों तक जाती है। असल में छुटपन में सितारा देवी (Sitara Devi) ने सबसे पहले “सावित्री-सत्यवान” की प्रस्तुति देकर अपने अध्यापकों और स्थानीय मीडिया का ध्यान खींचा था। तब उनके पिता ने उनकी प्रतिभा देखी तो उन्होंने उसका नाम सितारा रख दिया। सितारा ने अपनी बड़ी बहन तारा देवी की देखरेख में कथक का प्रशिक्षण पाया। जब सितारा देवी (Sitara Devi) 12 साल की थी तब उनका परिवार मुंबई आ गया। वहां उन्होंने एक बार 3 घंटे की एकल प्रस्तुति देकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर प्रभावित किया था। गुरुदेव ने उन्हें ₹50 और एक शॉल भेंट किया लेकिन सितारा ने उसे लेने से मना कर दिया और उनसे केवल आशीर्वाद मांगा। रविंद्रनाथ टैगोर ने सितारा का नृत्य देखने के बाद उन्हें नृत्य साम्राज्ञी की संज्ञा दी थी। इसके बाद यह विशेषण उनके नाम से जुड़ गया और उन्हें अब भी कथक  साम्राज्ञी कहा जाता है।

Sitara Devi

अगले 6 दशकों में यह कथा की बड़ी हस्ती बन गईं और शास्त्रीय नृत्य विधा को बॉलीवुड में प्रतिष्ठा दिलाई। फिल्मी दुनिया में अपने सुनहरे दिनों में सितारा देवी (Sitara Devi) ने मुग़ल-ए-आज़म के निर्देशक के आसिफ से दूसरा विवाह किया था। पर आसिफ की रंगीन मिजाजी के कारण उनका दिल टूट गया और कुछ सालों बाद अलग हो गई। 1958 के आसपास अफ्रीका में भी गायिका कमल बारोट के भाई प्रताप बारोट से मिलीं और कुछ मुलाकातों के बाद उनकी जीवनसंगिनी बन गईं, जिनसे उन्हें एक बेटा रंजीत हुआ। रंजीत बारोट आज एक नामी संगीतकार हैं। 40 के दशक के उत्तरार्ध में सितारा देवी (Sitara Devi) फिल्मी दुनिया से मुक्त हो गईं और पूरा जीवन कथक को दे दिया। कथक का रंग जमाने के लिए वो कई देशों में गईं। शास्त्रीय नृत्य विधा से जुड़े योगदान के लिए 2011 में सितारा को “लीजेंड्स ऑफ इंडिया लाइफ टाइम अचीवमेंट” अवार्ड से नवाजा गया। पद्मश्री समेत दर्जनों सम्मानों से नवाजी गईं सितारा देवी (Sitara Devi) आखिरी समय तक भारत रत्न की मांग करती रहीं और उन्होंने पद्मविभूषण को ठुकरा दिया था।

करीब 6 दशकों तक देश-दुनिया में कथक का पर्याय रहने के बाद नृत्य साम्राज्ञी सितारा देवी (Sitara Devi) 25 नवंबर 2014 को हम सभी से अलविदा लेकर स्वर्गलोक के सफर पर निकल गईं। तन्हा जिंदगी और गुमनामी के दौर से गुजर रही इस अद्वितीय नृत्यांगना ने 94 साल की अवस्था में मुंबई के जसलोक अस्पताल में आखिरी सांस ली।

 

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