लांस नायक करम सिंह जयंती: जिसने भारत पर पहले पाक हमले का किया सामना, अकेले दुश्मन के 8 हमलों को किया नाकाम

दो शत्रु करम सिंह (Karam Singh) की टोह लेते हुए उसके पास से गुजरने ही वाले थे कि आमना-सामना हो गया। लांस नायक करम सिंह फुर्ती दिखाते हुए उन पर टूट पड़े और उनके पेट में संगीन घोंप दी, वे शत्रु सैनिक वहीं ढेर हो गये।

Karam Singh

Karam Singh Birth Anniversary

‘परमवीर चक्र’ विजेता मानद कैप्टन करम सिंह (Karam Singh) का जन्म प्रथम महायुद्ध के समय 15 सितम्बर, 1915 को गांव सेहना, जनपद संगरूर, पंजाब में हुआ था। इनके पिता सरदार उत्तम सिंह एक सम्पन्न किसान थे और करम सिंह भी खेती में जुटा हुआ था। घर पर किसी वस्तु की कमी नहीं थी। पिताजी की अपने समाज में काफी इज्जत थी। इस गांव के अनेक लोग सेना में सैनिक थे। उनमें से कुछ ने प्रथम विश्वयुद्ध में इंग्लैंड की तरफ से भाग लिया था। वे सैनिक युद्ध-समाप्ति पर जब गांव आये तो उन्होंने सिख रेजीमेंट की बहादुरी के कारनामे, जो उन्होंने युद्ध में दिखाये थे, उन्हें एक कहानी के रूप में सुनाते। विश्व युद्ध (प्रथम) में सिख रेजीमेंट ने जो बहादुरी दिखाई उसे सुनकर करम सिंह (Karam Singh) बेचैन हो गया और उसने अपने मन में तय किया कि वह भी भारतीय सेना में शामिल होकर ऐसे ही वीरतापूर्वक कार्य कर सभी को आश्चर्यचकित करेगा।

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करम सिंह (Karam Singh) 15 सितम्बर, 1941 को सेना की 1 सिख रेजीमेंट में शामिल हो गया। अभी सेना में भर्ती हुए 2 वर्ष 6 माह हुए थे कि उसे अपनी वीरता के जौहर दिखाने का मौका मिला। द्वितीय महायुद्ध में भारतीय सेना की 1 सिख रेजीमेंट को युद्ध के दौरान बर्मा में भेज दिया। करम सिंह भी अपनी रेजीमेंट के साथ लड़ाई लड़ने के लिए बर्मा सरहद पर चला गया क्योंकि उन दिनों बर्मा, पूरब में भारत का भू-भाग था। जहां पर जापान की सेना ‘आजाद हिन्द फौज’ से मिलकर भारत में प्रवेश कर रही थी। इस युद्ध में करम सिंह ने एक सिपाही के रूप में भाग लिया और सरकार ने उन्हें मिलिट्री मेडल (एम-एम) देकर पुरस्कृत किया।

युद्ध में बहादुर आदमी को ही पदक प्राप्त होता है। करम सिंह (Karam Singh) ने अपनी बटालियन में वीरता का एक उदाहरण पेश किया। करम सिंह के बारे में लोग कहते थे कि यह ‘सही काम के लिए सही बात’ करता है। इस रेजीमेंट की बटालियन में उसने अपने साथियों व अधिकारियों के साथ मधुर सम्बन्ध रखे। वो बहुत ही व्यवहार-कुशल सैनिक और अपनी रेजिमेंट के एक कुशल खिलाड़ी थे। करम का पसंदीदा खेल ‘पोल वाल्ट’ तथा ‘लम्बी कूद’ था जिसमें वे हमेशा प्रथम आते थे।

सन् 1948 में उन्हें दोबारा युद्ध में कौशल दिखाने का अवसर प्राप्त हुआ। पाकिस्तान कश्मीर को हड़पना चाहता था। वह ऐसे अवसर की तलाश में था। उसे मालूम था कि जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरि सिंह के पास इतनी फौज नहीं है जो उनसे मुकाबला कर सके। महाराजा के पास अपनी गैरीसन फौज थी जो पूरे जम्मू-कश्मीर में फैली हुई थी लेकिन वह फौजी साज-सामान से सुसज्जित नहीं थी। इसलिए पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। महाराजा ने अपनी सुरक्षा के लिए राज्य को भारत में कुछ शर्तों के साथ विलय कर दिया, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी। 1 सिख रेजीमेंट अपनी वीरता, साहस के लिए विख्यात थी। भारतीय सेना मुख्यालय ने 1 सिख रेजीमेंट को ‘रिछमार गली’ पर तैनाती के आदेश दिये।

भारतीय सेना ने 23 मई, 1948 को ‘टिथवाल’ पर अपना कब्जा कर लिया था। शत्रु इस ताक में बैठा था कि किसी प्रकार ‘रिछमार गली’ पर कब्जा हो जाये तो टिथवाल पर दोबारा कब्जा किया जा सकता है। 13 अक्टूबर, 1948 को ‘ईद’ का दिन था, पूरी मुस्लिम जाति खुशी का इजहार कर रही थी। ईद के दिन कश्मीर में खुशियां मनाई जा रही थीं लेकिन शत्रु पाकिस्तान ने इन खुशियों में जहर घोलने के लिए एक पूरी ब्रिगेड के साथ ‘रिछमार गली’ पर दोबारा आक्रमण कर दिया जिससे बाई पास रिछमार गली से टिथवाल पर फिर से कब्जा किया जा सके और उसके बाद श्रीनगर तक पहुंचना आसान होगा। शत्रु की इस नई सोच ने भारतीय सेना को आश्चर्यचकित किया क्योंकि ‘रिछमार गली’ पर 1 सिख रेजीमेंट लगाई गई थी जिससे आशा थी कि यह रेजीमेंट किसी भी सूरत में पाकिस्तान को आगे नहीं बढ़ने देगी। इतना ही नहीं, शत्रु को पीछे मुड़ने के लिए बाध्य करेगी। ‘रिछमार गली’ पर भारतीय सेना की ओर से करम सिंह (Karam Singh) अपनी रेजीमेंट की एक टुकड़ी को कमांड कर रहे थे।

शत्रु ने मोर्टार और गन से इतना शक्तिशाली प्रहार किया कि पूरी पहाड़ी हिल गई। 13 अक्टूबर को सुबह 6 बजे शत्रु का प्रहार घातक था लेकिन उसे रेजीमेंट ने बेकार साबित किया। लेकिन शत्रु ने 9 बजकर 30 मिनट पर मोर्टार, आर्टीलरी से दोबारा आक्रमण किया। 10 बजे जहां कंपनी का बेस था उस पर शत्रु ने आक्रमण किया। इस आक्रमण में 1 सिख रेजिमेंट के सभी बंकर तबाह हो गये और कई सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए। इसी समय भारतीय वायु सेना को बुला लिया गया जिसने दुश्मन के ध्यान को बांटने की कोशिश की। इसी के साथ सहायता के लिए रेजीमेंट की दो कंपनियां भेज दी गईं जो 1 सिख रेजीमेंट की सहायता करेंगी। इस समय तक सिख रेजीमेंट में 47 सैनिकों में से 10 शहीद हो गये थे और 37 घायल अवस्था में थे। शत्रु ने 13/14 अक्टूबर की रात को एक बार फिर से आक्रमण किया। यह आक्रमण आर्टीलरी एम.एम.जी. से किये गये थे। यह आक्रमण 14 अक्टूबर सुबह 7.30 बजे तक चला, इसकी कमान करम सिंह (Karam Singh) संभाले हुए थे।

13/14 अक्टूबर, 1948 रात्रि में पाकिस्तान की तरफ से अत्यन्त क्रूर व हिंसक आक्रमण हुआ। वातावरण में रात के पिछले प्रहर की बरबादी की याद तरोताजा थी। सुबह होने को थी, दुनिया की दो बड़ी कौमें जहां ईद की खुशियां मनाने को तैयार थीं वहां पाकिस्तान गोला-बारूद फेंक रहा था, हवा बहुत ठंडी थी, शत्रु के प्रहार की प्रतीक्षा की जा रही थी। शत्रु का प्रत्येक प्रहार अचूक व घातक था। इस घातक आक्रमण से भारतीय सेना के सभी बंकर नष्ट हो गये थे और प्लाटून समाप्त हो गई थी। चारों तरफ हाहाकार और रक्त-रंजित भूमि नजर आ रही थी, क्षत-विक्षत शरीर, टूटे अस्त्र-शस्त्र इस बात के प्रमाण थे कि युद्ध कितना भयानक रहा होगा।

इतना होने पर भी लांस नायक करम सिंह (Karam Singh) अपने साथी सैनिकों के साथ पूरे होश-हवाश में शत्रु से टक्कर ले रहे थे। सरदार करम सिंह टूटे-फूटे बंकर में घायल या कार्यरत सैनिकों के बीच बार-बार जाकर हिम्मत बंधा रहे थे और संचार-व्यवस्था बनाए हुए थे। घायल अवस्था में करम सिंह जिस वीरता का परिचय दे रहे थे उससे प्रतीत हो रहा था कि इस युद्ध के वास्तविक सेनानायक करम सिंह हैं। वह बिजली से भी तेज फुर्ती रखते हुए शत्रु पर प्रहार कर रहे थे। माना उनके पास सैनिक शक्ति कम थी लेकिन हिम्मत की कोई कमी न थी।

एक दिन में शत्रु ने अलग-अलग दिशाओं से 8 बार आक्रमण किया। 7 आक्रमण शत्रु के विफल हो चुके थे। लेकिन शत्रु इस आक्रमण पर अपनी सारी शक्ति लगाना चाहता था ताकि ईद का त्यौहार विजय पर्व में मनाया जा सके। उधर सरदार करम सिंह (Karam Singh) जीवित रहते अपने स्थान को छोड़ने वाला नहीं था। करम सिंह सुरक्षित स्थान की तलाश में जुटा था जहां से युद्ध का संचालन किया जा सके क्योंकि शत्रु ने उनके बंकर नष्ट कर दिये थे।

इसी बीच दो शत्रु करम सिंह (Karam Singh) की टोह लेते हुए उसके पास से गुजरने ही वाले थे कि आमना-सामना हो गया। लांस नायक करम सिंह फुर्ती दिखाते हुए उन पर टूट पड़े और उनके पेट में संगीन घोंप दी, वे शत्रु सैनिक वहीं ढेर हो गये। शत्रु इस योद्धा के इस साहसिक कर्म से हतोत्साहित हो गया और किसी भी शत्रु सैनिक की हिम्मत आगे बढ़ने की नहीं हुई। शत्रु ने युद्ध का रास्ता बदल दिया।

इसी मध्य 3 जाट रेजीमेंट ‘रिछमार गली’ सहायता के लिए पहुंच गई और शत्रु को उल्टे पांव लौटना पड़ा। ‘रिछमार गली’ का युद्ध एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है। करम सिंह (Karam Singh) द्वारा अगर शत्रु को 24 घंटे तक वहां न रोका जाता तो युद्ध का इतिहास ही कुछ और होता। शत्रु आसानी से टिथवाल पहुंच सकता था और वहां से श्रीनगर कूच कर जाता। तब दुश्मन से निपटना और भी मुश्किल हो जाता।

कश्मीर की रक्षा के लिए लांस नायक करम सिंह (Karam Singh) ने दुश्मन से टक्कर ली और बहादुरी का उदाहरण प्रस्तुत किया। टिथवाल का मोर्चा भारत के पराक्रमी इतिहास में सदा स्मरणीय व अनुकरणीय रहेगा। युद्ध में जो घाव उनके शरीर पर हुए, ठीक होने के बाद भी अपनी पहचान शरीर पर छोड़ गये। जब कोई उनसे उन घावों के बारे में पूछता तो वह कहते कि ये घाव बड़े भाग्य वाले को प्राप्त होते हैं।

युद्ध के मोर्चे से वापस अपनी रेजीमेंट आये जहां उन्हें ठीक होने में काफी समय लगा। बाद में उन्हें लांस नायक पद से सूबेदार में पदोन्नत कर दिया गया। फिर उन्हें सम्मानी कैप्टन बना दिया। राष्ट्रपति महोदय द्वारा देश के सर्वोच्च शौर्य सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से उन्हें सम्मानित किया गया। लांस नायक करम सिंह (Karam Singh) प्रथम परमवीर चक्र विजेता थे जिन्हें द्वितीय विश्वयुद्ध में मिलिट्री मेडल मिला था।

सम्मानी कैप्टन करम सिंह (Karam Singh) सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद अपनी पैतृक सम्पत्ति की गांव में देखभाल करते रहे। उनका जीवन शांतिपूर्वक व्यतीत हुआ। सन् 1995 में 80 वर्ष की आयु में वो स्वर्ग सिधार गये। उस समय उनकी पत्नी गुरदयाल कौर उनके साथ थीं। अपने बुढ़ापे में भी वे नवयुवकों को अपनी रेजीमेंट के किस्से आखिरी सांस तक सुनाते रहे। गांव में भी उनका काफी सम्मान था। वह ‘परमवीर चक्र’ पदक पर गर्व महसूस करते थे। जब भी कोई उनसे मिलता तो वह बहुत ही गर्व के साथ उस पदक को दिखाना नहीं भूलते थे।

बेशक मानद कैप्टन करम सिंह (Karam Singh) हमारे बीच नहीं हैं लेकिन आज भी गांव में, उनकी रेजीमेंट में और सेना में सुनी व सुनाई जाती है और आगे भी जाती रहेगी।

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