कनाईलाल दत्त: भारत मां की आजादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक

कनाईलाल (Kanailal Dutta) और सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुआ। फिर कनाईलाल दत्त भी बीमार पड़ गए।

Kanailal Dutta कनाईलाल दत्त

Kanailal Dutta Birth Anniversary II कनाईलाल दत्त जयंती

प्रसिद्ध देशभक्त कनाईलाल दत्त (Kanailal Dutta) का जन्म 30 अगस्त, 1888 ई. को चंद्रनगर में हुआ था। उनके पिता चुन्नीलाल दत्त भारत सरकार की सेवा में मुंबई में नियुक्त में थे। पांच वर्ष की उम्र में कनाईलाल मुंबई आ गए और वहीं उनकी आरंभिक शिक्षा हुई। बाद में वापस चंद्रनगर जाकर उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन उनकी राजनीतिक गतिविधियों के कारण ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली।

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अपने विद्यार्थी जीवन में कनाईलाल दत्त (Kanailal Dutta) प्रोफेसर चारु चंद्र राय के प्रभाव में आए। प्रो. राय ने चंद्रनगर में ‘युगांतर पार्टी’ की स्थापना की थी। कुछ अन्य क्रांतिकारियों से भी उनका संपर्क हुआ, जिनकी सहायता से उन्होंने गोली का निशाना साधना सीखा। 1905 के बंगाल विभाजन विरोधी आंदोलन में कनाईलाल ने आगे बढ़कर भाग लिया। तभी वे इस आंदोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के भी संपर्क में आए।

बी.ए. की परीक्षा समाप्त होते ही कनाईलाल (Kanailal Dutta) कोलकाता चले गए और प्रसिद्ध क्रांतिकारी बारीन्द्र कुमार घोष के दल में सम्मिलित हो गए। यहां वे उसी मकान में रहते थे जहां क्रांतिकारियों के लिए अस्त्र-शस्त्र और बम आदि रखे जाते थे। अप्रैल, 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड पर आक्रमण किया। इसी सिलसिले में 2 मई, 1908 को कनाईलाल, अरविन्द घोष, बारीन्द्र कुमार आदि गिरफ्तार कर लिए गए। इन सब पर मुकदमा चला जो ‘अलीपुर बम कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस मुकदमे में नरेन गोस्वामी नाम का एक अभियुक्त सरकारी मुखबिर बन गया था।

क्रांतिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने के लिए मुलाकात के समय चुपचाप बाहर से रिवाल्वर मंगाई। कनाईलाल (Kanailal Dutta) और सत्येन बोस ने नरेन गोस्वामी को जेल के अंदर ही अपनी गोलियों का निशाना बनाने का निश्चय किया। पहले सत्येन बीमार बनकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुआ। फिर कनाईलाल दत्त भी बीमार पड़ गए। सत्येन ने मुखबिर गोस्वामी के पास संदेश भेजा कि मैं भी जेल के जीवन से ऊब गया हूं और तुम्हारी तरह सरकारी गवाह बनना चाहता हूं। मेरा एक और साथी हो गया, इस प्रसन्नता से वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल जा पहुंचा। फिर क्या था। उसे देखते ही पहले सत्येन ने और फिर कनाईलाल ने उसे अपनी गोलियों से वहीं ढेर कर दिया। दोनों पकड़ लिए गए और दोनों को मृत्युदंड मिला।

कनाईलाल (Kanailal Dutta) के फैसले में लिखा गया कि इसे अपील करने की इजाजत नहीं होगी। 10 नवंबर, 1908 को कनाई फांसी के फंदे पर लटककर शहीद हो गए। जेल में उनका वजन बढ़ गया था। फांसी के दिन जब जेल के कर्मचारी उन्हें लेने के लिए उनकी कोठरी में पहुंचे उस समय कनाईलाल दत्त गहरी नींद में सोए हुए थे। जेल अधिकारियों के जगाने के बाद वो आराम से उठे और महज 20 साल की उम्र में फांसी का फंदा अपने हाथो से चूम लिया।  

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