जनाज़ा-ए-कारोबार: आतंकियों के अंतिम संस्कार के पीछे की कहानी

अब मेरी जिज्ञासा इस ओर परिवर्तित हो गई कि आखिर ये सब करने के लिए इन ठेकेदारों को पैसे कौन दे रहा है और क्यों? तब मुझे पता चला कि जमात-ए-इस्लामी कश्मीरी अलगाववादियों के आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग है।

Militants

कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा जिले के केरन सेक्टर में मारे गए 5 आतंकियों में से 3 स्थानीय आतंकवादियों (Militants) के जनाजे के लिए भारी तादात में स्थानीय लोगों की शिरकत की खबर ने मेरी जिज्ञासा बढ़ा दी। मैंने कई बार इस तरह की खबरें सुनी है कि मारे गए आतंकवादियों (Militants) को यहां हर उम्र के लोग शहीद बताकर उसके अंतिम संस्कार के लिए इकट्ठा होते हैं। ये सब ठीक उसी तरह का कारोबार है जैसे घाटी की शांति भंग करने के लिए पत्थरबाजी कराई जाती है।

घाटी में आतंकियों (Militants) के शवों का इस्तेमाल स्थानीय लोगों को बरगलाने के लिए किया जाता है। इसके लिए जिस तरीके की कार्यप्रणाली अपनाई जा रही है वो हैरान करने वाली है। ऐसा क्यों होता है कि केवल इन आतंकियों के जनाजे के समय ही कुछ खास वर्ग के नौजवान और मौलवी नजर आते हैं, क्यों महिलाएं जनाजे के समय अपनी छाती पीटते हुए एक खास अंदाज में शहादत का गाना गाती हैं? ऐसे में तमाम स्पष्टीकरण मेरे दिमाग में चल रहे तर्क से परे थे, मैंने निर्णय लिया कि सबसे पहले मैं एक-दो जनाजे में शिरकत करुंगा। उसके बाद अपने अनुभव से ही इस दिमागी उलझनों से पार पाउंगा।

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मैंने अपने विचार एक कश्मीरी नौजवान के सामने रखा, जो स्वभाव से एक एक्टिविस्ट है लेकिन हिंसा और संघर्ष की आलोचना करता है। उस नौजवान ने मुझे सलाह दी कि आतंकी जनाजे के जुलूस में शामिल होने से पहले मुझे उनके नियम को समझना पड़ेगा और अपनी दाढ़ी को भी बढ़ानी पड़ेगी।

इसी बीच बारामुला के रफिआबाद इलाके में सुरक्षाबलों द्वारा एक आतंकी मुद्दसिर अहमद के मारे जाने की खबर मिली, उस नौजवान ने बताया कि वो मुझे जमात-ए-इस्लामी प्रभाव वाले गांव शुतलो ले जाएगा। मुद्दसिर इसी गांव का रहने वाला था। मैं बहुत उत्सुक था कि जिस दिन को देखने का मैं बेसब्री से इंतजार कर रहा था वो दिन अब आ गया। हालांकि, इस दौरान उस नौजवान ने मुझे बताया कि वो शुतलों गांव के अपने करीबी के घर लेकर चलेगा और उसे इस जनाजे की सच्चाई को बताने में कोई एतराज भी नहीं है। मारे गए आतंकी के इस शहादत जुलुस के नमाज-ए-जनाजा के लिए ये नियम बनाया गया कि गांव के हर घर से कम से कम दो लोग शिरकत करेंगे।

इस जनाजे में शामिल होने के लिए मैंने अपने सहायक के करीबी से पूछा कि क्या मुझे भी इस जनाजे के निर्दशों का पूर्णत: पालन करना होगा? तब उसने मुझसे कहा कि मैं इन निर्देशों के पालन से बच ही नहीं सकता क्योंकि जुलूस में शिरकत से पहले किसी चौक या दुकान के कोने पर एक ऐसा व्यक्ति जरूर बैठा होगा जो इस बात का ख्याल रखेगा कि कौन जुलूस में शामिल होने जा रहा है और कौन नहीं? और जो लोग इसका पालन नहीं करेंगे उनको इसमें शामिल नहीं होने दिया जायेगा।

नमाज-ए-जनाजा में शिरकत करने वालों के लिए जिसने भी ये नियम बनाया था उसके बारे में जानने की मेरी जिज्ञासा और प्रबल हो गई। मैंने अनुभव किया कि ये एक तरह के ठेकेदार हैं जिन्हें जुलूस में भीड़ लाने के लिए पैसा मिलता है। ये ठेकेदार लोगों को आतंकियों (Militants), धार्मिक दण्ड और सामाजिक दबाव का डर दिखाकर उन्हें जुलूस में शामिल होने के लिए बाध्य करते हैं।

पूरी कश्मीर घाटी में ऐसे सैकड़ों लोगों का एक तगड़ा नेटवर्क है जो ये सुनिश्चित करता है कि आतंकियों (Militants) के नमाज-ए-जनाजा में जबरन लाई गई ये भीड़ सामान्य और स्वैच्छिक जुलूस की तरह ही दिखें।

अब मेरी जिज्ञासा इस बात को लेकर बढ़ ई कि आखिर ये सब करने के लिए इन ठेकेदारों को पैसे कौन दे रहा है और क्यों? तब मुझे पता चला कि जमात-ए-इस्लामी कश्मीरी अलगाववादियों के आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अंग है। ऐसा करने के पीछे इन अलगाववादियों का मकसद है कि जिहाद को जिंदा रखने के लिए इन नौजवानों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया जाए और इन्हें उकसा कर आतंकी संगठनों में शामिल होने के लिए भेजा जाए।

इसके लिए पाकिस्तान, आईएसआई और स्थानीय धार्मिक संगठनों के लोग यहां तक कि कुछ कारोबारी भी आतंक के इस खेल लिए भारी तादात में पैसे खर्च करते हैं।

एस्टर ईयर के दौरान आज़ादी को लेकर भावुकता काफी चरम पर होती है। उस वक्त जुलूस की भीड़ स्वभाविक है। लेकिन जैसे-जैसे वक्त गुजरा यह एक व्यापार बन गया। अब मैय्यत में शामिल होने वालों का एक ग्रुप है। इसमें शामिल महिलाएं चीख-चीख कर रोने और छाती पीटने में माहिर होती हैं। इससे अच्छे वीडियो तैयार होते हैं और फिर इस वीडियो के जरिए पाकिस्तान अपना एजेंडा चलाता है।

इसके बाद मैं एक मैय्यत में सतलू गया, जहां मुद्दसिर का जनाजा उठने वाला था। हम गांव बिल्कुल समय से पहुंच गए। उस वक्त तक पुलिस ने डेड बॉडी को परिवार वालों के हवाले नहीं किया था। मैं उस वक्त मु्द्दसिर के माता-पिता के पास में बैठा था इसलिए मैं उन दोनों के बीच हो रही बातचीत को सुन सकता था। दूसरे माता-पिता की तरह ये लोग भी अपने बेटे की गुजरी जिंदगी के बारे में बातचीत कर रहे थे। इस बीच मुद्दसिर की मां ने उसके पिता पर आरोप लगाया कि मुद्दिसर कुछ उलेमाओं के बहकावे में आकर कट्टरपंथी सोच की तरह आकर्षित होता गया और आप उसे रोक नहीं पाए।

इस दौरान उन्होंने उस वाकये का भी जिक्र किया जब उनका मुद्दसिर के पिता से झगड़ा हुआ था क्योंकि वो उसे अलगाववादी नेताओं से मिलने से रोक नहीं रहे थे। उसकी मां ने आरोप लगाया कि अगर उन्होंने अपने बेटे पर नजर रखा होता तो वो जिंदा होता। मु्द्दसिर की मां ने उस वाकये का भी जिक्र किया जब उसने Azadi tandem ज्वायन करने की बात कही थी। उनकी कई सारी बातों को सुनकर एक बात मेरे दिमाग में साफ हो गई कि माता-पिता तो माता-पिता ही होता हैं फिर चाहे वो किसी आतंकवादी के ही क्यों ना हों। उनका दिल अपने बच्चे के लिए रो रहा था और वो दूसरे मां-बाप की तरह ही लाचार थे। एक बात और मेरे दिमाग में साफ हो गई कि युवा आखिर क्यों आज बंदूक उठा रहे हैं? इन्हें किसी आंदोलन से कोई लेना देना नहीं था। यह सब लोगों के बहकाने की वजह से है।

पुलिस द्वारा शव को लाए जाने से चंद मिनट पहले वहां 15 जवान लड़कों का एक ग्रुप पहुंचा। इनमें से कुछ लोग मुद्दसिर के माता-पिता के पास गए और उनके कानों में उन्होंने कुछ बातें कही। (जिसके बारे में हमें पता चला कि इन लड़कों ने माता-पिता को बताया कि उन्हें आगे किस तरह का व्यवहार करना है और जनाजे के वक्त उन्हें क्या कहना है।)

मेरे मित्र मुख्तार ने बताया कि यह लोग अंतिम संस्कार में हिस्सा लेंगे। यानी यह सभी Funeral Brigade का हिस्सा थे। जल्दी ही भीड़ ने रोना शुरू कर दिया। थोड़ी ही देर में आतंकवादी के शव को लेकर एंबुलेंस वहां पहुंची। पुलिस एंबुलेंस को स्कॉट कर रही थी। भीड़ ने एंबुलेंस को जाने का रास्त दिया। कुछ ही पल में एक स्लोगन हवा में गूंजा, ‘हमें चाहिए’ जिसका जवाब भीड़ ने दिया ‘आजादी।’

फ्यूनरल ब्रिगेड में शामिल लोग इस आवाज को बुलंद कर रहे थे और कोशिश कर रहे थे कि इस आवाज के साथ ज्यादा से ज्यादा शोर हो। जिसका असर जल्दी ही दिखने लगा। कुछ युवाओं के साथ महिलाओं का ग्रुप भी वहां पहुंच गया। इस ग्रुप के लोग भीड़ को हटाते हुए शव तक पहुंचे और डेड बॉडी के माथे को चूम लिया। उन लोगों ने शव के पैर छुए अपने हथे मले और इसके बाद महिलाएं जोर-जोर से चीखने लगीं।

जो इस बात का सबूत था कि महिलाएं यह दिखावा कर रही थी मानों उन्हें निजी नुकसान हुआ हो। इसके बाद ‘आजादी’ वाला स्लोगन और तेज हो गया और माहौल काफी बदल गया। ऐसा लगने लगा जैसे इस नारे के साथ लोग शवयात्रा को सेलिब्रेट करने लगे। जल्दी ही मेरी नजर वहां पड़ी जहां मुद्दिसर के माता-पिता थे। यह भीड़ जान बूझ कर अंतिम संस्कार में देरी कर रही थी ताकि और भी ज्यादा भीड़ जुटाई जा सके। मुद्दिसर के माता-पिता बिल्कुल लाचार से लग रहे थे। पुलिस वहां कह रही थी कि मुद्दिसर को सुपुर्द-ए-खाक करने की प्रक्रिया शुरू की जाए लेकिन भीड़ जानबूझ कर इसमें देरी कर रही थी।

हर बार किसी आतंकवादी के मारे जाने पर, स्थानीय पुलिस-प्रशासन को इस प्रदर्शन की चिंता होती है। बहरहाल, अंतिम क्रिया शुरू हुई। वो ब्रिगेड फोटो खींचने और वीडियो बनाने में व्यस्त रहा। वो इन तस्वीरों और वीडियो को अपने आकाओं को भी भेज रहे थे।

यह लोग कश्मीर में बैठे अपने आकाओं को यह तस्वीर और वीडियो देते हैं। ताकि वो पाकिस्तान और पूरे विश्व में अपने एजेंडे को बढ़ावा दे सकें। इस वीडियो में आजादी के नारे, पाकिस्तान के लिए प्रशंसा, सुरक्षा बलों के लिए गालियां, भारत के लिए खराब बातें इत्यादि होती हैं। जिस जगह पर मुद्दसिर को सुपुर्द-ए-खाक किया जा रहा था वहां एक और महिला को देख कर मैं चौक गया। अधेड़ उम्र की यह महिला वहां पहुंचीं। बुर्का पहनी इस महिला ने कहा कि वो काफी दूर से आई हैं अपने आतंकी बेटे को विदाई देने। (हर उग्रवादी उनका बेटा हो जाता है) ऐसी कहानियां मीडिया में सुर्खियां बटोरने के लिए होती हैं। इसके जरिए युवाओं को उग्रवादी संगठन ज्वायन करने के लिए उकसाया जाता है।

यह महिला उस उग्रवादी से बायोलॉजिकली जुड़ी हुई नहीं थी। हालांकि, वो दावा कर रही थीं कि जब वो बच्चा था तब उन्होंने उसे अपना दूध पिलाया था। मुझे बाद में पता चला कि महिला द्वारा ऐसा कहना भी इस कारोबार का एक हिस्सा है। आजादी ब्रिगेड इस महिला का तो जैसे इंतजार कर रहा था। बिना वक्त गंवाए इस बिग्रेड के लोगों ने उन्हें कंधे पर बैठा लिया और उन्हें मारे गए उग्रवादी के डेड बॉडी तक ले गए। उग्रवादी के चेहरे पर गोली लगी थी। इस महिला ने उग्रवादी के गोली लगे चेहरे को चूमा। उसने अपने साथ एक थैला रखा था जिसमें से उसने कैंडिल निकाला और शव पर चढ़ा दिया।

इसके बाद इस महिला ने भीड़ को संबोधित करना शुरू किया। उसने कहा, ‘क्या आप सब पुलिस अधिकारी बनना चाहेंगे?’ इसपर भीड़ ने कहा- नहीं, हम नहीं चाहते। महिला ने पूछा- क्या आप उग्रवादी बनना चाहते हैं? भीड़ ने कहा – हां, हम बनना चाहते हैं। महिला ने फिर पूछा, क्या आप टाइगर बनना चाहते हैं? (दरअसल महिला यहां मशूहर कश्मीरी उग्रवादी बुरहान वानी के बारे में बात कर रही थी, जिसे बुरहान टाइगर के नाम से भी जाना जाता है। बुरहान वानी को साल 2016 में मार गिराया गया था।) इस पर भीड़ ने कहा – हां, हम बनना चाहते हैं। बातचीत के दौरान कई लोगों ने बताया कि कश्मीर और खासकर साउथ कश्मीर में होने वाले किसी भी अंतिम संस्कार के कार्यक्रम में ऐसा होना आम बात है।

इस तरह से किसी जनाजे में हंगामा और शोर मचाने के पीछे आईएसआई का मकसद इन उग्रवादियों को हीरो या रोल मॉडल के रूप में स्थापित करना है ताकि युवा इनसे प्रभावित हों। यह लोगों को कानून तोड़ने, पथराव करने और भारतीय आर्मी के रास्ते में खड़े होकर उनकी राह रोकने के लिए उकसाते हैं। जब सुरक्षा बल उग्रवादियों को घेर लेते हैं तो यह लोग सुरक्षा बलों का रास्ता रोक देते हैं। भारतीय सेना के ऑपरेशन में यह बाधा उत्पन्न करते हैं। बाद में इससे हिंसा और तनाव पैदा किया जाता है। जुलाई 2016 में बुरहान वानी के मारे जाने के बाद भी घाटी में काफी हिंसा हुई थी। मुद्दसिर ने महज 8 दिन पहले उग्रवादी संगठन ज्वायन किया था और मारा गया।

BY: M. S. Nazki

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