साल 1971 के भारत-पाक युद्ध में गुमला के चामू उरांव (Martyr Chamu Oraon) भी शहीद हो गए थे। चामू उरांव के शहीद होने के बाद उनके शव को गुमला लाने की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। इसलिए दूसरे शहीद जवानों के साथ चामू उरांव का भी अंतिम संस्कार सेना के जवानों ने वहीं कर दिया था।
Vijay Diwas 2020: झारखंड (Jharkhand) के गुमला के सैनिक चामू उरांव 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए थे। चामू उरांव देश के लिए शहीद हुए, लेकिन आज वे आम जनता के बीच गुमनाम हैं। वे फुटबॉल खिलाड़ी से सैनिक बने थे। शहीद चामू उरांव (Martyr Chamu Oraon) का घर गुमला शहर से सटे पुग्गू घांसीटोली गांव में है।
साल 1971 के युद्ध में जब भारतीय सेना (Indian Army) ने पाकिस्तान के गुसवापाड़ा चौकी पर हमला किया था। उस समय भारतीय सेना के 12 जवान शहीद हुए थे। जिसमें गुमला के चामू उरांव (Martyr Chamu Oraon) भी थे। चामू उरांव के शहीद होने के बाद उनके शव को गुमला लाने की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। इसलिए दूसरे शहीद जवानों के साथ चामू उरांव का भी अंतिम संस्कार सेना के जवानों ने वहीं कर दिया था। भारतीय सेना ने इस नुकसान पर गुसवापाड़ा चौकी पर हमला कर कब्जा कर लिया था।
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शहीद के छोटे भाई 60 साल के चरवा उरांव बताते हैं कि उनके भाई चामू उरांव ने गुमला शहर के लुथेरान हाई स्कूल में पढ़ाई की थी। पिता रामा उरांव व मां झरी देवी किसान थे। खेती-बारी कर हम भाईयों को पढ़ाया। जिसमें चामू सेना में भर्ती हुआ। वह एक अच्छा फुटबॉल खिलाड़ी था। जिला स्तर की प्रतियोगिता में भाग लेता था।
जब सेना में भर्ती निकला तो वह उसमें भाग लिया और सैनिक बन गया। चामू ने शादी की थी। पर शहीद होने के बाद उसकी पत्नी दूसरी शादी करके चली गई। चामू के शहीद होने पर पेंशन की राशि पिता रामा उरांव को मिलती थी। लेकिन, पिता रामा और मां झरी के निधन के बाद पेंशन मिलना बंद हो गया। जिस घर में चामू का जन्म हुआ था, अब वह घर भी ध्वस्त हो गया है।
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चरवा ने बताते हैं कि जब मेरा भाई दुश्मनों से लड़ते हुए शहीद हुए था, उस समय सेना के दो जवान हमारे पुग्गू घांसीटोली स्थित आवास पर आए थे। सेना (Army) के जवानों ने मेरे पिता रामा उरांव और मां झरी देवी को भाई चामू उरांव (Martyr Chamu Oraon) के शहादत की सूचना दी थी। साथ ही शहीद के पार्थिव शरीर को युद्ध स्थल के पास ही अंतिम संस्कार करने की जानकारी दी गई थी।
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चरवा ने कहा कि मेरा भाई देश के लिए शहीद हुआ। मुझे गर्व है। पर दुख इस बात की है कि मेरे भाई के शहादत को लेकर गांव में प्रतिमा की स्थापना नहीं की गई है। न ही परिवार के सदस्यों को किसी प्रकार की मदद की गई। टैसेरा गांव के समीप खेती के लिए पांच एकड़ जमीन मिली थी। पर अब जमीन पर दूसरे लोगों ने कब्जा कर लिया है। उन्होंने गुमला प्रशासन और भूतपूर्व सैनिक संगठन के लोगों से पांच एकड़ जमीन पर अधिकार दिलाने, गांव में शहीद की प्रतिमा स्थापित करने व परिवार की मदद करने की मांग की है।
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