नक्सली हमले में शहीद हुआ था BSF का जवान, परिवार को है अब तक मुआवजे का इंतजार

साल 2013 में इसरार खान बीएसएफ (BSF) में भर्ती हुए और उनकी पहली पोस्टिंग बंगाल के मालदा में हुई। उसके बाद साल 2017 में इनकी पोस्टिंग छत्तीसगढ़ में हो गई।

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BSF शहीद के परिजन मुआवजे के लिए लगा रहे सरकारी दफ्तरों के चक्कर।

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के साथ लोहा लेते हुए शहीद हुआ था धनबाद का इसरार।

राज्य सरकार ने की थी कई घोषणाएं, जिला प्रशासन ने भी नियोजन देने की कही  थी बात।

अभी तक मुआवजा और नियोजन के लिए दर-दर भटक रहे हैं शहीद के परिजन।

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शहीद इसरार खान (फाइल फोटो)।

झारखंड के धनबाद शहर के झरिया साउथ गोलक डीहा के रहने वाले इसरार खान ने बचपन से ही सेना में भर्ती होने और देश सेवा का सपना देखा था। दृढ़ इच्छा रखने वाले इस युवा ने वही करके दिखाया जो उसने बचपन से ठान रखी थी। साल 2013 में इसरार खान बीएसएफ (BSF) में भर्ती हुए और उनकी पहली पोस्टिंग बंगाल के मालदा में हुई। उसके बाद साल 2017 में इनकी पोस्टिंग छत्तीसगढ़ में हो गई। दिसंबर, 2018 में वह 1 महीने के लिए छुट्टी में घर आए थे। 2 जनवरी, 2019 को छुट्टियां बिता कर अपनी ड्यूटी पर वापस चले गए थे। पर उन्हें और उनके परिजनों को क्या पता था कि अब वह दोबारा घर नहीं लौट पाएंगे।

दरअसल, 4 अप्रैल, 2019 को छत्तीसगढ़ में नक्सलियों और बीएसएफ (BSF) के जवानों के साथ बड़ी मुठभेड़ हुई। जिसमें बीएसएफ (BSF) के चार जवान शहीद हो गए थे। इसमें झारखंड के धनबाद निवासी इसरार खान भी शामिल थे। इसरार की शहादत की खबर से पूरे धनबाद और झरिया में शोक की लहर दौड़ गई। नक्सली हमले में शहीद इसरार के परिजनों को राज्य सरकार द्वारा कई सुविधाएं देने की बात कही गई थी। यहां तक कि झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी 1000000 रूपए मुआवजा और आश्रितों को नियोजन देने की बात कही थी। सरकार द्वारा विधिवत ऐलान भी किया गया था। परंतु इसरार की शहादत के कई महीने बाद भी उनके परिजनों को किसी प्रकार की सुविधाएं राज्य सरकार द्वारा और जिला प्रशासन द्वारा मुहैया नहीं करवाई गईं।

शहीद के परिजन आज भी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर हैं। बता दें कि परिवार में मात्र एक कमाने वाले इसरार ही थे। इनके शहीद हो जाने के बाद से इनके परिवार की आर्थिक स्थिति बिल्कुल दयनीय हो गई है। शहीद के पिता जिनका नाम मोहम्मद आजाद अंसारी है जो अपने वृद्धावस्था में भी साइकिल पर घूम-घूम कर बिस्कुट बेचने का काम करते हैं। मुआवजा के लिए वे हर रोज सरकारी कार्यालयों की खाक छान रहे हैं। वहीं, बड़े भाई इकबाल और इमरान स्कूल बैग बनाने का काम करते हैं। छोटा भाई इरफान अभी पढ़ाई कर रहा है। शहीद के परिजनों ने धनबाद उपायुक्त से मुआवजा और नियोजन की घोषणा को जल्द ही अमलीजामा पहनाने की अपील की है ताकि उनकी आर्थिक स्थिति में थोड़ा सुधार आ सके।

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