2014 में 2 दर्जन से ज्यादा जवानों की जान बचाई लेकिन अब आतंकी बन गया ये कश्मीरी, कहा…

कश्मीर (Kashmir) के पुलवामा जिले के संबूरा पांपोर के आसिफ मुजफ्फर शाह नाम के एक युवा ने आतंक का दामन थामा है। आसिफ ने ऑडियो मैसेज जारी कर ये जानकारी दी है।

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सांकेतिक तस्वीर।

हालही में गृह मंत्रालय के आला अफसरों के हवाले से ये खबर आई थी कि कश्मीर (Kashmir) में इस तरह स्थानीय लोगों का आतंकी ग्रुप्स से जुड़ना सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बना हुआ है।

जम्मू कश्मीर (Kashmir) में आतंकी संगठन लगातार अपना विस्तार करने की कोशिश कर रहे हैं। सुरक्षाबलों की ओर से की जाने वाली कार्रवाई से आतंकी संगठन बौखलाए हुए हैं और इसी खुन्नस में वह घाटी के युवाओं को बरगला रहे हैं।

अब  पुलवामा जिले के संबूरा पांपोर के आसिफ मुजफ्फर शाह नाम के एक युवा ने आतंक (Terrorism) का दामन थामा है। आसिफ ने ऑडियो मैसेज जारी कर ये जानकारी दी है और अपने परिवार से अपील की है कि वो उसे खोजने की कोशिश ना करें।

पुलिस का कहना है कि ऑडियो मैसेज की सत्यता की जांच की जा रही है। हैरानी की बात ये है कि ये वही आसिफ है, जिसने 2014 की बाढ़ में 2 दर्जन से ज्यादा जवानों की जान बचाई थी।

2014 के इस वाकये के बाद सेना और प्रशासन ने आसिफ की तारीफ की थी। इस बाढ़ में सेना के 2 जवान बह भी गए थे। ऐसे में आसिफ का आतंकी संगठन में शामिल होना पूरी घाटी में चर्चा का विषय बना हुआ है। लोगों के जेहन में यही सवाल है कि जो शख्स 2014 में सेना के जवानों की जान बचा रहा था, वो आज सेना के खिलाफ क्यों खड़ा हो गया?

इससे पहले हालही में खबर मिली थी कि यूनानी मेडिसिन के 2 छात्रों ने भी आतंक का दामन थाम लिया। उन्होंने भी ऑडियो मैसेज डालकर ये ऐलान किया था। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा में यूनानी मेडिसिन के छात्रों ने पढ़ाई छोड़कर हथियार उठा लिए थे।

इन छात्रों ने यूनानी मेडिसिन में बैचलर डिग्री और सर्जरी की पढ़ाई की थी। आतंकी संगठन में शामिल होने के बाद इन दोनों छात्रों ने ऑडियो मैसेज को सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था। इस मैसेज में इन दोनों ने आतंकी संगठन में शामिल होने की बात कही थी।

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हालही में गृह मंत्रालय के आला अफसरों के हवाले से ये खबर आई थी कि कश्मीर (Kashmir) में इस तरह स्थानीय लोगों का आतंकी ग्रुप्स से जुड़ना सरकार के लिए एक बड़ी चिंता का सबब बना हुआ है।

मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, साल 2020 के पहले सात महीनों में 90 स्थानीय लोग विभिन्न आतंकवादी समूहों में शामिल हुए हैं। इनमें से 45 हिजबुल मुजाहिदीन, 20 लश्कर-ए-तैयबा, 14 जैश-ए मोहम्मद, 7 अल बद्र, दो अंसार गजवत उल हिंद और एक आईएसजेके (इस्लामिक स्टेट जम्मू-कश्मीर) में शामिल हुए।

मुठभेड़ में मरने वाले आतंकवादियों की पहचान से पता चलता है कि उनमें से ज्यादातर स्थानीय हैं। दरअसल, मुठभेड़ों में मारे गए 90 प्रतिशत से अधिक आतंकी स्थानीय कश्मीरी हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स में एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से बताया गया है कि इस साल के पहले 7 महीनों में घाटी में मारे गए 136 आतंकवादियों में से 121 स्थानीय थे और 15 विदेशी थे। वहीं, साल 2019 में मारे गए 152 आतंकवादियों में से 119 स्थानीय थे।

गृह मंत्रालय के आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि 216 स्थानीय लोगों को आतंकवादियों को शरण देने के लिए गिरफ्तार किया गया है।

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