Jallianwala Bagh Massacre: जनरल डायर ने बंद करवा दिए थे सारे गेट, चलवाईं 1650 राउंड गोलियां; कुएं से मिली थीं 120 लाशें

Jallianwala Bagh Massacre: आज ही के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी जो इतिहास का एक काला अध्याय है।

Jallianwala Bagh Massacre

Jallianwala Bagh Massacre: साल 1919 में आज ही के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी जो इतिहास का एक काला अध्याय है। इस हत्याकांड को अंजाम तो दिया गया था देश में आजादी के लिए चल रहे आंदोलन को रोकने के लिए, क्रांतिकारियों में डर और दहशत पैदा करने के लिए, लेकिन इस हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) के बाद हुआ ठीक इसका उलटा। क्रांतिकारियों के दिल में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आक्रोश और भर गया, इरादे पहले से ज्यादा मजबूत हो गए और फिर क्रांति की ज्वाला कुछ ऐसी धधकी कि ब्रिटिश हुकूमत की नींव हिल गई।

Jallianwala Bagh Massacre

अमृतसर के बिगड़ते हालातों पर काबू पाने के लिए भारतीय ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य की जिम्मेदारी डिप्टी कमिश्नर मिल्स इरविंग से लेकर ब्रिगेडियर जनरल आर.ई.एच डायर को सौंप दी थी। डायर को पोस्टिंग के साथ प्रमोशन देकर जनरल बना दिया गया था। पंजाब के हालात को देखते हुए राज्य के कई शहरों में ब्रिटिश सरकार ने मार्शल लॉ लगा दिया। इस कानून के तहत नागरिकों की स्वतंत्रता पर और सार्वजनिक समारोहों का आयोजन करने पर प्रतिबंध लग गया था। जहां पर भी तीन से ज्यादा लोगों को इकट्ठा पाया जा रहा था, उन्हें पकड़कर जेल में डाला दिया जा रहा था।

दरअसल, इस लॉ के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों द्वारा आयोजित की जीने वाली सभाओं पर रोक लगाना चाहती थी ताकि क्रांतिकारी उनके खिलाफ कुछ ना कर सकें। हालात संभालने के लिए ब्रिटिश पुलिस ने शहर में सख्ती बढ़ा दी थी। 13 अप्रैल को सिखों का अहम पर्व बैसाखी था। शहर में तमाम तरह की सख्ती और कर्फ्यू के बावजूद हजारों की संख्या में लोग अमृतसर के जलियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) में इकट्ठा हुए थे। इनकी संख्या करीब 20 हजार से भी ज्यादा थी। मकसद था, नेताओं की गिरफ्तारी का शांतिपूर्ण विरोध।

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जनरल डायर को इस शांति सभा की सूचना मिल चुकी थी। चूंकि जालियांवाला बाग (Jallianwala Bagh), स्वर्ण मंदिर के पास ही था। लिहाजा, तमाम लोग घूमने के लिए अपने परिवार के साथ वहां पहुंचे थे। और फिर अचानक मौत की आंधी ने दस्तक दे दी। शाम करीब 4 बजे जनरल डायर 150 सिपाहियों के साथ बाग के लिए रवाना हो गया। डायर को इस बात का डर था कि कहीं इस सभा के जरिए दंगे ना फैल जाएं। लिहाजा, डायर ने बाग में पहुंचने के बाद लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए, सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।

कहा जाता है कि इन सिपाहियों ने करीब 10 मिनट तक गोलियां चलाई थी। उनके हाथ तभी रुके जब उनकी गोलियां खत्म हुईं। इस बीच उन्होंने कुल 1650 गोलियां दागी थीं। मानो गोलियों की बारिश हो रही हो। बचने के लिए लोग भागने लगे, लेकिन डायर ने सारे गेट बंद करवा दिए थे। बाग की दीवारें बहुत ऊंची थीं जिन्हें पार कर पाना आसान नहीं था। कुछ लोगों को तो दीवार चढ़ते वक्त ही गोलियां लगीं। कुछ लोगों ने जान बचाने के लिए बाग में मौजूद कुएं में छलांग लगा दी। चंद मिनटों में ही जालियांवाला बाग (Jallianwala Bagh) की पूरी जमीन खून से सन गई थी।

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ब्रिटिश सरकार के अनुसार इस फायरिंग में लगभग 379 लोगों की जान गई थी और 1,200 लोग ज़ख्‍मी हुए थे। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक उस दिन 1,000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे। जिनमें से 120 की लाशें तो कुएं में से मिली थीं और 1,500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। जनरल डायर को लगा था कि इस हत्‍याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन इसके ठीक उलट ब्रिटिश सरकार के खिलाफ पूरा देश आंदोलित हो उठा।

आगे चलकर जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इस नरसंहार की पूरी दुनिया में आलोचना हुई। आखिरकार, दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्‍टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया। कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर को डिमोट कर कर्नल बना दिया गया। साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।

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