वायरलेस सिद्धांत की खोज वैज्ञानिक मारकोनी के अलावा जगदीश चंद्र बोस ने भी की थी

Jagdish Chandra Bose

भारतीय विज्ञान जगत के अग्रणी वैज्ञानिक डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) पौधों के विषय में अद्भुत खोज करने वाले भारत ही नहीं बल्कि विश्व पटल पर पहले वैज्ञानिक थे। इच्छाशक्ति कुशाग्र बुद्धि व विलक्षण प्रतिभा के धनी डॉक्टर बोस (Jagdish Chandra Bose) ने यह रहस्योद्घाटन किया कि वृक्ष भी हमारी तरह संवेदनशील और प्राण बान होते हैं उन्हें भी हमारी तरह दुख दर्द की अनुभूति होती है।

Jagdish Chandra Bose

भारत भूमि एक ऐसी देवधारा है जिस पर प्राचीन काल से महायोगी सम्राट ऋषि मुनि साधक समाज सुधारक और वैज्ञानिक अवतरित हुए जिन्होंने अपने महान कृतियों व आदर्शों से मानव समाज का मार्गदर्शन किया तथा प्रकृति के अनावृत सत्य व रहस्य को उजागर किया। ऐसे ही एक महान वैज्ञानिक थे डॉक्टर जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose)। पौधों में भी जीवन है, संवेदना है, हमारी तरह पीड़ा अनुभव करने का सामर्थ है, यह बताने वाले वैज्ञानिक थे जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose)।

जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) ने बताया कि जब हम किसी पत्ते और फूल को तोड़ते हैं तो सामान्यतया यह सोचते हैं कि इन्हें भी हमारी तरह पीड़ा की अनुमति नहीं होती होगी। परंतु ऐसा नहीं है। पौधे को भी पीड़ा होती है कष्ट होता है। जहां से पत्ते को तोड़ा जाता है वहां से पौधे का स्पंदन शुरू हो जाता है। लेकिन उसकी गति बिल्कुल धीमी पड़ जाती है। फिर धीरे-धीरे वह पूरी तरह बंद हो जाती है। अब वह स्थान शांत हो चुका है, अर्थात पौधे के लिए वह मृत हो चुका है। श्री बोस (Jagdish Chandra Bose) ने विज्ञान के लिए अनंत शोध कार्य किया, लेकिन पौधे के जीवन के बारे में अनुसंधान करने के फलस्वरूप उन्हें वनस्पति वैज्ञानिक के रूप में सर्वाधिक ख्याति मिली।

जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) का जन्म ढाका (बांग्लादेश) जिले के फरीदपुर में 30 नवंबर 1858 को हुआ। जगदीश चंद्र के पिता भगवान चंद्र डिप्टी मजिस्ट्रेट थे। उनकी माता श्रीमती वामसुंदरी एक संस्कारी व धर्म परायण महिला थी। भारत तब अंग्रेजों के अधीन था। पढ़े-लिखे और धनी लोग पश्चिम के अंधानुकरण व चकाचौंध में फंसे थे। अंग्रेजी बोलने, पढ़ने और समझने वाले स्वयं पर गर्व करते थे। लेकिन जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) की शिक्षा अलग ढंग से हुई। या यूं कहें कि उनके पिता के कारण संभव हुआ। भगवान चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) ने फरीदपुर में एक पाठशाला खोली जिसमें बंगला भाषा में शिक्षा दी जाती थी। अपनी प्रारंभिक शिक्षा जगदीश चंद्र ने यहीं पर पूरी की। जगदीश चंद्र अपने गरीब सहपाठियों के साथ सहर्ष घूलते-मिलते और खेलते थे। इससे उन्हें गरीबों और अभावग्रस्त लोगों की पीड़ा का अनुभव हुआ। बाल्यकाल से ही जगदीश चंद्र बड़े जिज्ञासु छात्र थे। वह चारों ओर घटने वाली बातों की जानकारी लेना चाहता थे। जगदीश का जीवन उदारता, देश प्रेम, बड़ों के प्रति विनीत भाव और सहपाठियों के प्रति सहयोगी के रूप में विकसित हुआ था। धनी निर्धन के बीच उन्होंने कोई भेदभाव नहीं किया। उनकी दृष्टि में समानता श्रेष्ठ थी।

जगदीश चंद्र ने सभी विषय अपनी मातृ भाषा में पढ़ें, इसीलिए उन्हें समझने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई। पढ़ते समय वह खुद विचारों में खो जाते थे। स्वयं अध्ययन कर उन्होंने कई विषयों की जानकारी प्राप्त की थी। पढ़ाई के अलावा उन्हें खेलों में भी समान रुचि थी। क्रिकेट उनका सबसे पसंदीदा खेल था।

9 वर्ष की आयु में जगदीश चंद्र के जीवन में नया मोड़ आया। वह आगे की पढ़ाई के लिए अपना गांव फरीदपुर छोड़कर कोलकाता पहुंच गए। वहां सेंट जेवियर स्कूल में उनका प्रवेश हुआ। पुरानी पाठशाला से यह नया विद्यालय बहुत अलग था । फरीदपुर में उनकी पढ़ाई मातृभाषा में हुई थी लेकिन कोलकाता में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी था। शहरी और विशेष रूप से अंग्रेज बच्चे उन्हें तंग करते थे। एक बार एक लड़के ने मुक्केबाजी के दौरान उन्हें जानबूझ कर घायल कर दिया। जगदीश को क्रोध आ गया और उन्होंने उस लड़के को मुक्केबाजी में अच्छा सबक सिखाया।

जगदीश ने अपनी दसवीं की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने महाविद्यालय में प्रवेश लिया। जगदीश को जीव विज्ञान में सबसे ज्यादा रुचि थी। इसीलिए उन्होंने विज्ञान भाषा से स्नातक करने का फैसला लिया। 19 वर्ष की आयु में जगदीश चंद्र स्नातक उत्तीर्ण कर लिया। इसके बाद वह आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड जाना चाहते थे। रोजगार की दृष्टि से उनकी रुचि सिविल सर्विसेज या चिकित्सा के क्षेत्र में थी। सिविल सर्विसेज में जाने पर वह सरकारी अधिकारी बन जाते जिसका अर्थ होता अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करना। जगदीश चंद्र के पिता उन्हें  किसी के अधीन नहीं बल्कि स्वतंत्र रूप से काम करते देखना चाहते थे। उनके पास अपने बेटे को विदेश भेजने के लिए आवश्यक धन भी नहीं था।  वे चाहते थे कि उनका बेटा शिक्षक बनकर देश और समाज की सेवा करे। लेकिन जगदीश चंद्र अपने माता पिता को समझाकर अंततः विदेश जाने की अनुमति प्राप्त कर ली। उन्होंने कुछ पैसा जमा कर रखा था और बेटे की विदेश यात्रा का खर्च पूरा करने के लिए जगदीश की मां अपने आभूषण तक बेचने के लिए तैयार हो गईं। लेकिन पिता ने स्वयं ही धनराशि का प्रबंध कर दिया।

इस तरह 1880 में जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) इंग्लैंड की यात्रा के लिए रवाना हुए, तब उनकी आयु थी 22 वर्ष। पहले उन्होंने लंदन में चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन आरंभ किया। लेकिन इस दौरान बीमार पड़ने के कारण उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी। इसके बाद उन्होंने कैंब्रिज के क्राइस्ट चर्च कॉलेज में प्राकृतिक विज्ञान का अध्ययन किया। लेकिन प्राकृतिक विज्ञान पढ़ने के लिए लैटिन भाषा का ज्ञान जरूरी था। और जगदीश चंद्र पहले ही लैट्रिन सीख चुके थे। उन्होंने ट्रिपोस परीक्षा विशेष योग्यता के साथ उत्तीर्ण की। इसके साथ ही उन्होंने लंदन विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक परीक्षा भी पास कर ली।

इंग्लैंड से पढ़ाई कर कर जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) भारत वापस आ गए। यहां आकर उन्होंने कोलकाता के प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्राध्यापक के पद पर काम करना शुरू कर दिया। जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) के पास ना तो प्रयोगशाला थी और ना ही उपकरण। किंतु वे कभी निराश नहीं हुए। 8-10 सालों तक उन्होंने अपने वेतन से एक-एक पैसा बचा कर खुद के लिए एक प्रयोगशाला का निर्माण किया।

बेतार का संचार (वायरलेस) सिद्धांत की खोज से घर-घर में रेडियो का प्रचलन संभव हुआ। इसका श्रेय इटली के वैज्ञानिक मारकोनी को दिया जाता है। इसी क्षेत्र में जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) ने स्वतंत्र रूप से अनुसंधान कार्य किया था। परंतु मारकोनी ने अपनी खोज की सफलता पहले घोषित कर दी। उसने बोस (Jagdish Chandra Bose) से पहले बेतार के तार की कार्यविधि प्रदर्शित की। इसीलिए मारकोनी रेडियो का जनक बन गया।

वर्ष 1898 में बोस (Jagdish Chandra Bose) ने विद्युत चुंबकीय तरंगों के बारे में अत्यंत महत्वपूर्ण लेख लिखा। इंग्लैंड की रॉयल सोसाइटी लेख से प्रभावित हुई। इस सोसाइटी ने बोस (Jagdish Chandra Bose) को डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि से सम्मानित किया। इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय ने भी उन्हें प्रोफेसर की उपाधि से सम्मानित किया, जहां पर वे छात्र भी रह चुके थे। बोस (Jagdish Chandra Bose) को शोध कार्य करने के लिए धनराशि की आवश्यकता थी। तब अंग्रेज सरकार भारत वासियों को अध्ययन के लिए विदेश जाने के लिए सहायता नहीं करती थी, लेकिन बोस (Jagdish Chandra Bose) की उपलब्धि और योग्यता को ध्यान में रखते हुए अंग्रेज सरकार ने उनकी विदेश यात्रा का सारा खर्च उठाने का निर्णय लिया।

बोस (Jagdish Chandra Bose) ने वनस्पति विज्ञान की दिशा में कई महत्वपूर्ण खोज किए। उन्होंने कमल के सुंदर फूल के खिलने की भी व्याख्या की। उनके अनुसार सूरज के तापमान बढ़ने के कारण कमल खिलता है तथा तापक्रम गिरने से सिकुड़ता है। सूरजमुखी की कहानी भी ऐसी ही है। बोस (Jagdish Chandra Bose) ने इस विशेषता को प्रकाश की प्यास का नाम दिया। 

पौधे कभी सीधे ऊपर की ओर नहीं बढ़ते। छोटे-छोटे मोड़ और गोलाई उनमें होती है। आप पूछेंगे ऐसा क्यों? जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) के अनुसार पौधों में ऋणात्मक और धनात्मक आवेश होता है। एक पौधे को आगे खींचता है तो दूसरा पीछे। ऐसे पौधे के विकास पर प्रभाव पड़ता है। अंधेरे में रखने पर पौधे प्रकाश की ओर बढ़ते हैं और जड़े नीचे की ओर बढ़ती है।

जगदीश के अनुसार पौधों को भी पानी की प्यास लगती है। पौधों की जड़े पानी सोखती हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि बिना जड़ों के पौधे पानी ले सकते हैं? बोस (Jagdish Chandra Bose) ने कहा यह संभव है। यदि किसी पौधे की जड़ काटकर उसका तना पानी में डाल दें तो तने से होकर पानी अंदर जाने लगता है और यदि पौधे को उखाड़ दिया जाए, जड़ें ऊपर की ओर हो जाए तो पत्ते और तने पानी खींचने लगते हैं। बोस (Jagdish Chandra Bose) ने इसे प्रयोग द्वारा सिद्ध भी किया है।

इतिहास में आज का दिन – 30 नवंबर

आपने रडार का नाम तो सुना ही होगा। यह एक वैज्ञानिक चमत्कार है। समुद्री और हवाई जहाजों के आने जाने की सूचना रडार के द्वारा ही मिलती है। युद्ध में शत्रुओं के विमानों और पौधों की गतिविधियां जानने के लिए भी रडार ही उपयोगी साबित होता है। जगदीश चंद्र बोस (Jagdish Chandra Bose) ने इस दिशा में भी बहुत महत्वपूर्ण प्रयोग किए हैं।

छुई-मुई नाम के पौधे को देखकर सभी लोग स्तब्ध रह जाते हैं। यह छोटी पत्तियों वाला पौधा विज्ञान की भाषा में ‘मिमोसा’ के नाम से जाना जाता है। यह अत्यधिक संवेदनशील पौधा है और यदि हम इसकी एक पति को छू ले तो वह और उसके आसपास की सारी पत्तियां बंद होने लगती है और पत्तियों को जितने जोर से दबाया जाएगा उतनी ज्यादा संख्या में और तीव्रता से पत्तियां बंद हो जाएंगी। थोड़ा अधिक जोर लगाने पर पूरी शाखा की पत्तियां बंद हो जाती है। ऐसा क्यों होता है? उसको देखकर बोस (Jagdish Chandra Bose) को भी आश्चर्य हुआ था। वो इसका कारण ढूंढने में लग गए। अपने प्रयोगों से बोस (Jagdish Chandra Bose) ने सिद्ध किया कि ऐसा दूसरे पौधों में भी होता है। अंतर मात्र इतना है कि उन पर होने वाले प्रभाव को नंगी आंखों से नहीं देखा। जगदीश दूसरे पौधे के प्रभाव को देखना चाहते थे उन्होंने संवेदनशील उपकरण तैयार किए जिससे पौधे की प्रतिक्रिया का पता लगाया जा सके।

वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में बोस (Jagdish Chandra Bose) का स्थान ध्रुव तारे की तरह अटल है। उन्होंने भारत में आधुनिक विज्ञान के युग का आरंभ किया। वो साधक, शिक्षक और तपस्या तुल्य वैज्ञानिक थे। सोच अवलोकन की अथाह शक्ति और धैर्य उनमें प्रचुर मात्रा में थी। बोस (Jagdish Chandra Bose) अपने छात्रों को परीक्षा की दृष्टि से नहीं पढ़ाते थे बल्कि उन्हें प्रेरित करते थे, कि एक जिज्ञासु की भांति विचार करें और ज्ञान को पाने के लिए सदैव उत्सुक रहे। संपत्ति और सत्ता की ललक उनमे लेश मात्र भी नहीं थी। वो आजीवन निस्वार्थ भाव से विज्ञान सेवा में संत की तरह परिश्रम करते रहे। 23 नवंबर 1937 को गिरिडीह में उनका निधन हुआ। अंत तक वो शोध कार्य में जुटे रहे। उनकी मृत्यु से भारत माता ने महान सपूत और राष्ट्र ने एक श्रेष्ठ वैज्ञानिक खो दिया।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें