
देश में नए नागरिकता कानून (CAA) के विरोध की आड़ में पिछले दिनों पत्थरबाजी और साम्प्रदायिक हिंसा की कई वारदातें हुई। इसके पीछे पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ होने की आशंका जताई जा रही है।
सूत्रों के अनुसार, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सहित कई राज्यों में जिस तरह हिंसा फैली, उसे अंजाम देने के लिए प. बंगाल, बिहार और नेपाल के रास्ते आईएसआई (ISI) के इशारे पर सिमी के स्लीपर सेल के लोग आए थे। यह भी संभावना जताई जा रही है कि इस काम में आईएसआई ने हवाला के जरिए फंडिंग की होगी। फिलहाल गहरी जांच और तलाशी का अभियान चल रहा है।
सूत्रों के अनुसार, भारतीय खुफिया एजेंसियों की सटीक सूचना और सुरक्षाकर्मियों की मुस्तैदी के कारण पाकिस्तान तमाम कोशिशों के बावजूद भी भारत में आतंकी हमले नहीं करा पा रहा, उल्टे इस कोशिश में उसके पोषित कई आतंकी अब तक भारतीय बलों के हाथों मारे जा चुके हैं। इससे पाक खुफिया एजेंसी बुरी तरह बौखलाई हुई है।
सूत्रों के अनुसार, खुफिया एजेंसियों ने तीन-चार माह पहले ही आगाह किया था, खासकर तब जब कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया था, कि आईएसआई भारत में साम्प्रदायिक हिंसा फैला सकती है। हालांकि तब उसे कामयाबी नहीं मिली। सूत्रों के मुताबिक, लेकिन जब नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पास हुआ तो आईएसआई ने अपने आतंकी संगठनों से कहा कि वे अपने स्लीपर सेल को साम्प्रदायिकता फैलाने के लिए अलर्ट करें। इसी के बाद बिहार, दिल्ली, यूपी और प. बंगाल में खासकर सिमी का स्लीपर सेल सक्रिय हो गया और हिंसा, आगजनी और तोड़फोड़ को अंजाम दिया।
इतिहास में आज का दिन – 30 दिसंबर
सूत्रों के अनुसार, नेपाल के रास्ते भी आतंकी संगठनों के स्लीपर सेल के लोग यूपी में घुसे थे। एक बात और सामने आ रही है कि जिस तरह कश्मीर में सुरक्षाकर्मिंयों पर पत्थरबाजी होती थी, उसी तरह इन जगहों पर भी सुनियोजित तरीके से पत्थरबाजी करवाई गई। पिछले कुछ समय से आईएसआई वहां तो सफल नहीं हो पा रही थी, लेकिन इस बाद वह देश के अन्य हिस्सों में कामयाब हो गई। जांच एजेंसियां इस बात पर आश्र्चर्य कर रही हैं कि अचानक इतने पत्थर कैसे आ गए, जबकि न तो कोई आसपास ईट-भट्टा था और न ही किसी प्रकार का निर्माण स्थल।
जांच एजेंसियां इस निष्कर्ष पर पहुंच रही हैं कि यह पत्थरबाजी और हिंसात्मक घटना एक सुनियोजित प्लान था और इसके पीछे पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के गुर्गों का हाथ हो सकता है। जांच एजेंसियां यह भी पता लगा रही हैं कि जिन हाथों में पोस्टर बैनर थे, उन हाथों में पत्थर किसने दिए। इसके लिए क्या उन्हें फंडिंग हुई?
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