ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती से पहले Indian Army ने शुरू किया सैनिकों का रोटेशन, जानें क्यों

LAC जारी तनाव के बीच भारतीय सेना (Indian Army) ने सैनिकों का रोटेशन शुरू कर दिया है। ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती से पहले सैनिकों का एक्लेमटाइज किया जाता है यानी उन्हें मौसम के हिसाब से ढाला जाता है।

Special Frontier Force

सांकेतिक तस्वीर।

सेना (Indian Army) की उच्च क्षमता बरकरार रखने के लिए सैनिकों का रोटेशन शुरू किया गया है। ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती से पहले सैनिकों का एक्लेमटाइज किया जाता है।

LAC जारी तनाव के बीच भारतीय सेना (Indian Army) ने सैनिकों का रोटेशन शुरू कर दिया है। ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती से पहले सैनिकों का एक्लेमटाइज किया जाता है यानी उन्हें मौसम के हिसाब से ढाला जाता है। इलाके की ऊंचाई की हिसाब से एक्लेमटाइज कितने दिनों का होगा यह तय किया जाता है। सेना की उच्च क्षमता बरकरार रखने के लिए सैनिकों का रोटेशन किया जाता है।

यह चरणबद्ध तरीके से किया जा रहा है। आर्मी (Indian Army) के एक अधिकारी के मुताबिक ईस्टर्न लद्दाख की क्लाइमेट कंडिशन को और सैनिकों की हर वक्त मुस्तैदी को देखते हुए हम सैनिकों के रोटेशन की प्रक्रिया का पालन कर रहे हैं। फ्रंट लाइन पर तैनात सैनिकों को फेजवाइज उन सैनिकों से बदला जा रहा है जिन्होंने एक्लेमटाइजेशन और ट्रेनिंग पूरी कर ली है।

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हाई एल्टिट्यूट में सैनिकों की तैनाती के लिए एक्लेमटाइजेशन सबसे अहम हिस्सा है। हाई एल्टिट्यूट को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है। अगर सैनिक को 9 हजार से 12 हजार फीट की ऊंचाई पर तैनात करना है तो इसके लिए 6 दिन का एक्लेमटाइजेशन पीरियड होता है। इसे स्टेज वन कहते हैं। 12 हजार से 15 हजार फीट की ऊंचाई के लिए स्टेज टू एक्लेमटाइजेशन होता है, जिसमें 4 दिन अतिरिक्त एक्लेमटाइजेशन होता है।

इसी तरह स्टेज थ्री के लिए 4 अतिरिक्त दिन यानी कुल 14 दिन। यह 15 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई के लिए होता है। ऊंचाई के हिसाब से क्लोदिंग और इक्विपमेंट भी बदल जाते हैं। यूएस से 15 हजार स्पेशल क्लोदिंग और माउंटेनियरिंग इक्विपमेंट (SCME)खरीदे गए हैं। साथ ही हर ऑपरेशनल पॉइंट पर एक्स्ट्रा स्टॉक किया गया है।

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शुरू में वहां भारी मशीनरी पहुंचाना चुनौती थी, लेकिन अब उनकी मेंटेनेंस रिलेटेड सभी चुनौतियां दूर कर ली गई हैं। बता दें कि सियाचिन में भारतीय सेना (Indian Army) साल 1984 से तैनात है। इस लिहाज से सैनिकों को हाई एल्टिट्यूट वाले इलाकों में तैनाती की आदत है। पहली बार ईस्टर्न लद्दाख के कई नए इलाकों में तैनाती हुई है।

हालांकि, सियाचिन और यहां के हालात में काफी फर्क भी है। आर्मी के ऑफिसर्स के अनुसार, ईस्टर्न लद्दाख में अलग तरह की चुनौतियां हैं। यहां की स्थिति सियाचिन से अलग है। सियाचिन ग्लेशियर है और यहां बर्फीले तूफान (एवलांच) की बहुत ज्यादा संभावना रहती है। लेकिन ईस्टर्न लद्दाख में बड़ी चुनौती तेज रफ्तार ठंडी हवाएं हैं।

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एक अधिकारी के मुताबिक, शुरू में सैनिकों की अलग-अलग पोजिशन के लिहाज से यहां कनेक्टिंग रोड की दिक्कत थी। जबकि सियाचिन में यह लॉजिस्टिक मशीनरी 1984 से है और वहां वक्त के साथ राशन सप्लाई, हथियार और गोला बारूद की सप्लाई के तरीके और हाई एल्टिट्यूट क्लोदिंग की खरीद का सिस्टम बेहतर होता गया है।

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