नेपाल और भारत के बीच हुई संधि के अनुसार, भारतीय सेना (Indian Army) में अलग से गोरखा रेजीमेंट है, जिसमें करीब 40 हजार से अधिक नेपाली नागरिक काम कर रहे हैं।
उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के वाराणसी कैंट (Varanasi Cantt) स्थित 39 गोरखा ट्रेनिंग सेंटर (जीटीसी) में 64 गोरखा जवानों को कसम परेड के बाद भारतीय सेना (Indian Army) हिस्सा बनाया गया। ट्रेनिंग सेन्टर में कोविड प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए आयोजित परेड की सलामी कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर हुकुम सिंह बैंसला (सेना मेडल) ने ली।
पासिंग आउट परेड के बाद देश के लिए जान न्योछावर करने की शपथ लेने वाले गोरखा जवानों को नेपाली संस्कृति के अनुसार उनका परंपरागत औजार खुकरी भेंट की गई। जीटीसी में इन गोरख सैनिकों को मानसिक रूप से इस तरह तैयार किया है कि युद्ध के दौरान वे मुश्किल हालातों का सामना कर सकें।
सेना (Indian Army) अफसरों ने बताया कि गोरखा के जवानों को 42 हफ्ते का प्रशिक्षण दिया गया है। आखिर में गोरखा रेजिमेंट के पाइप बैंड की धुन के बाद रंगरूट स्मृति धाम पर पहुंचे और शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की।
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कार्यक्रम में प्रशिक्षण के दौरान उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले रंगरूटों को सम्मानित किया गया। बता दें कि नेपाल और भारत के बीच हुई संधि के अनुसार भारतीय सेना (Indian Army) में अलग से गोरखा रेजीमेंट है, जिसमें करीब 40 हजार से अधिक नेपाली नागरिक काम कर रहे हैं।
साल 1816 में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के दौरान नेपाली युवाओं की भर्ती शुरू हुई थी। गोरखा रेजीमेंट का गठन 24 अप्रैल, 1915 को हुआ था। रेजीमेंट की नींव पड़ने के बाद जब 1816 में अंग्रेजों और नेपाल राजशाही के बीच सुगौली संधि हुई तो तय हुआ कि ईस्ट इंडिया कंपनी में एक गोरखा रेजीमेंट बनाई जाएगी, जिसमें गोरखा सैनिक होंगे।
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तब से लेकर अब तक गोरखा, भारतीय सेना का अहम हिस्सा बने हुए हैं। इस रेजीमेंट का इतिहास शानदार है और यह भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बहादुर रेजीमेंट में से एक मानी जाती है। फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ ने कहा था कि अगर कोई यह कहे कि उसे मौत से डर नहीं लगता तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है।
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