बीना राय: इस ‘अनारकली’ के दीवाने हजारों थे, ऐसे हुई फिल्मों में एंट्री

1967 के बाद वे अभिनय से नाता तोड़कर पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गईं थीं। कभी लाखों फिल्मी दर्शक के दिल पर राज करने वाली हीरोइन बीना राय अंतिम समय में मुंबई के मालाबार हिल स्थित अनीता भवन में बेटे मोंटी के साथ रहती थीं।

bina rai, actress bina rai, bina rai family,bina rai movies, bina rai age, bina rai songs, prem krishen, prem nath, actress bina, monty nath, bina rai birth anniversary, sirf sach, sirfsach.in

बीना राय जन्मदिन

भारतीय फिल्मों के इतिहास में तीन अनारकलीयां हुई हैं, पहली मूक फिल्म में रूबी मायर्स, दूसरी 1953 के ‘अनारकली’ की बीनाराय और तीसरी 1960 के ‘मुगले आजम’ की मधुबाला। जिनमें सबसे यादगार रहीं के.आसिफ की मधुबाला। लेकिन ‘अनारकली’ का जिक्र छिड़ते ही याद ताजा होती है बीना राय और सी.रामचंद्र के सुपरहिट संगीत से सजी ‘ये जिंदगी उसी की है, जो किसी का हो गया, प्यार ही में खो गया…’ जैसी गीतों से सजी फिल्म ‘अनारकली’ की भी। 1953 में आई फिल्म ‘अनारकली’ की ‘अनारकली’ बीना राय 1960 में आई ‘मुगले आजम’ की ‘अनारकली’ मधुबाला से किसी मायने में कमतर नहीं थीं। जिस दौर में ‘मुगले आजम’ रिलीज हुई थी, उससे 7 साल पहले की फिल्म थी ‘अनारकली’। कहते हैं, जिस थिएटर में ‘मुगले आजम’ चलती थी अक्सर उसके सामने वाले थिएटर में ‘अनारकली’ प्रदर्शित की जाती थी। मतलब बीना राय की अनारकली को 7 साल बाद भी खारिज भी नहीं किया जा सकता था।

बीना राय ने अपने छोटे से फिल्मी करियर में इंडस्ट्री में अपने सौंदर्य और अभिनय के बल पर लाखों दिलों पर राज किया। बीना राय की पैदाइश लाहौर में हुई थी 13 जुलाई, 1931 को। उनका असली नाम कृष्णा सरीन था। बंटवारे के समय कृष्णा सरीन का परिवार कानपुर आ गया था। कृष्णा सरीन को पढ़ाई के लिए कानपुर से लखनऊ आना पड़ा और यहां इनका दाखिला हुआ आईटी कॉलेज में। जहां वे हॉस्टल में रह कर पढ़ाई कर रही थीं। शिक्षित परिवार से ताल्लुक रखने वाली बीना ने कॉलेज के नाटकों में हिस्सा लेते-लेते कब अखबार में टैलेंट कांटेस्ट का विज्ञापन देख फिल्मों में जाने का मन बना लिया, घरवालों को पता भी न चला। वह मुंबई जाने की अपनी जिद पर अड़ गईं। माता-पिता के विरोध का सामना करने के लिए भूख हड़ताल दिया। आखिर में वे मान गए और बीना ने कॉन्टेस्ट के लिए अप्लाई किया। विजेता बनीं। उन्हें बतौर अभिनेत्री पहली फिल्म मिली किशोर साहू की “काली घटा”।

कहा जाता है कि फिल्म निर्माता-निर्देशक और अभिनेता किशोर साहू ने कृष्णा को एक नाटक में देखा था। वह उनसे बहुत प्रभावित हुए थे। किशोर साहू ने कृष्णा को बीना राय नाम दिया। ‘काली घटा’ 1951 में प्रदर्शित हुई थी। फिल्म के नायक और निर्देशक किशोर साहू थे। फिल्म नहीं चली। अलबत्ता, अपनी गजब की खूबसूरती के कारण बीना राय का जादू फिल्म निर्माताओं के सिर चढ़ कर बोलने लगा। बीना राय अभिनीत फिल्म ‘अनारकली’ की सफलता के बाद निर्माता-निर्देशक के. आसिफ ने उन्हें अपनी फिल्म ‘मुगल-ए-आजम’ में अनारकली की मुख्य भूमिका देने की बात की थी, लेकिन बात नहीं बनी। बीना राय ने पता नहीं क्यों, इसके लिए मना कर दिया। बीना राय के अनारकली बनने की कहानी भी दिलचस्प है। उन दिनों के. आसिफ ने ‘मुगल-ए-आजम’ की जोर-शोर से शुरुआत की थी। पर किसी न किसी कारण से शूटिंग टलती जा रही थी।

पढ़ें: प्रकाश मेहरा अमिताभ बच्चन को बुलाते थे ‘लल्ला’, इन 5 फिल्मों ने चमका दिया उनका करियर

ऐसे समय में एक छोटे फिल्मकार नन्दलाल जसवंत लाल सामने आये। उन्होंने सलीम अनारकली की कहानी को लेकर ‘अनारकली’ का निर्माण शुरू कर दिया। इस फिल्म के सलीम प्रदीप कुमार थे तथा उनकी अनारकली बीना राय बनी थीं। इस श्वेत-श्याम फिल्म ने धूम मचा दी थी। खासतौर पर इस फिल्म में सी. रामचन्द्र का संगीत जबर्दस्त हिट हुआ था। बीना रॉय पर फिल्माया गया ‘मोहब्बत में ऐसे कदम लड़खड़ाए, जमाने ने समझा हम पी के आये…’ का जादू संगीत प्रेमियों के सिर पर चढ़ कर बोल रहा था। नशे में झूमती अनारकली के रूप में बीना राय की अदाकारी दिलकश और गजब की थी। लोग इस एक गीत के लिए अनारकली को देखने बार-बार सिनेमा हॉल जाते थे। उस समय बीना राय के माथे पर बालों की एक घूमती लट के साथ पोस्टर काफी मशहूर हुआ था। बीना राय ने वैसे तो अशोक कुमार, प्रेमनाथ और भारत भूषण के साथ अधिक फिल्में कीं, लेकिन उन्हें लोगों के दिल में बसाने वाली फिल्में थीं 1953 में आई ‘अनारकली’, 1960 में आई ‘घूंघट’ और 1963 में आई ‘ताजमहल’। इनमें उनके हीरो थे प्रदीप कुमार।

फिल्मों में उनकी सबसे सफल जोड़ी प्रदीप कुमार के साथ ही बनी, जो अपनी ऐतिहासिक फिल्मों में भूमिका के कारण प्रिंस अभिनेता के रूप में मशहूर थे। जिस तरह लोग ‘अनारकली’ के गीत सुनकर झूम उठते थे, उसी तरह ‘ताजमहल’ के गीत भी सदाबहार साबित हुए। ‘जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा…’, ‘जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं…’ और ‘पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी…’ ने तो उस जमाने के प्रेमी युवाओं को मतवाला बना दिया था। पुष्पा पिक्चर्स के बैनर तले बनी एम. सादिक निर्देशित फिल्म ‘ताजमहल’ के गीत लिखे थे साहिर लुधियानवी ने और संगीतकार थे रोशन। उन्हें 1960 में आई फिल्म ‘घूंघट’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवार्ड मिला। इसके पीछे एक छोटा सा किस्सा है। मुगल-ए-आजम 1960 में रिलीज हुई थी और उस दौर की बेहद कामयाब फिल्म थी। मधुबाला को उस साल का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड मिलना तय माना जा रहा था। पर अवॉर्ड मिला बीना राय को फिल्म ‘घूंघट’ के लिए।

यह हैरान करने वाला फैसला था। इसके लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड कमिटी की खूब आलोचना भी हुई थी। बीना राय को ‘नागिन’ और ‘देवदास’ के प्रस्ताव भी मिले थे, मगर बीना राय ने दोनों बड़े प्रस्ताव ठुकरा दिये। बाद में ये दोनों भूमिकाएं वैजयंती माला को मिल गयीं। सभी जानते हैं कि ‘नागिन’ और ‘देवदास’ ने वैजयंतीमाला को टॉप पर पहुंचा दिया था। हॉलीवुड की “सैमसन एंड डिलॉयला” पर आधारित “औरत” में बीना प्रेमनाथ की नायिका बनीं। भगवानदास वर्मा निर्मित फिल्म ‘औरत’ प्रेमनाथ के साथ बीना राय की पहली फिल्म थी। इस फिल्म में बीना राय ने एक तेजतर्रार चुलबुली लड़की की भूमिका निभाई थी। हर शॉट के बाद वे शरमा जाती थीं। उन्हें बार-बार ऐसा करते देख प्रेमनाथ ने छेड़ते हुए अपने अंदाज में कहा, तुम्हारे जैसी लड़की को फिल्मों में काम करने की बजाय घर बसा लेना चाहिए। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान दोनों के बीच प्यार हुआ। इस प्रेम कहानी के काफी चर्चे रहे। क्योंकि प्रेमनाथ मधुबाला के सामने प्रेम प्रस्ताव रख चुके थे।

पढ़ें: अच्छी खबर! पिछले 5 साल में टूटी नक्सलवाद की कमर, जरूरी है मगर चौकसी

इधर मधुबाला-दिलीप कुमार का मामला ठंडा पड़ चुका था। मधुबाला की दिमागी हालत अच्छी नहीं थी। जब तक वे इस प्रस्ताव पर विचार करतीं, आशिक मिजाज प्रेमनाथ का दिल बीना पर फिदा हो चुका था। वक्त के साथ पर्दे का प्यार वास्तविक जीवन में भी झलकने लगा और दोनों ने शादी कर ली। उनके पति प्रेमनाथ की फिल्म कंपनी ने ‘शगूफा’, ‘गोलकुंडा का कैदी’ और ‘समुंदर’ का निर्माण किया। इनमें वे पति प्रेमनाथ के साथ थीं। लेकिन पति के साथ उनकी जोड़ी दर्शकों को कुछ खास पसंद नहीं आई। अपने 15 साल के करियर में उन्होंने कुल 19 फिल्में कीं। उन्होंने अशोक कुमार के साथ शोले, सरदार, तलाश, बन्दी और दादी मां, भारत भूषण के साथ मेरा सलाम, अजित के साथ मरीन ड्राइव, दिलीप कुमार और देव आनंद के साथ ‘इंसानियत’ और प्रेमनाथ के साथ शगुफ्ता, औरत, प्रिजनर ऑफ गोलकुंडा, हमारा वतन, समंदर और चंगेज खान सरीखी फिल्में कीं।

1967 के बाद वे अभिनय से नाता तोड़कर पूरी तरह घर-गृहस्थी में रम गईं। कभी लाखों फिल्मी दर्शक के दिल पर राज करने वाली हीरोइन बीना राय अंतिम समय में मुंबई के मालाबार हिल स्थित अनीता भवन में बेटे मोंटी के साथ रहती थीं। उनके दो बेटे प्रेम किशन और कैलाश नाथ हैं। प्रेम किशन फिल्म-सीरियल निर्माण से जुड़े हैं। प्रेम किशन की बेटी आकांक्षा भी कई फिल्में में काम कर चुकी हैं। 6 दिसम्बर, 2009 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

पढ़ें: राजकुमार को पुलिस स्टेशन में मिला था पहली फिल्म का ऑफर, अंदाज़ और डायलॉग्स ने बुलंदी पर पहुंचाया

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें