अफगानिस्तान में तालिबान के आने से बढ़ सकतीं हैं भारत की मुश्किलें, जानें पूरा मामला

इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान (Taliban) ने कहा भी है कि अगर भारतीय सेना (Indian Army) वहां जाती है तो यह अच्छा नहीं होगा। साथ ही चीन और पाकिस्तान के तालिबान के साथ संबंध भी भारत के लिए चुनौती बन सकते हैं।

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तालिबान (Taliban) के आने से दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ने का खतरा है। अफगानिस्तान (Afghanistan) में पैदा हुए हालातों का भारत पर भी असर पड़ने वाला है।

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के आतंकी राजधानी काबुल पर कब्जा कर चुके हैं। अफगान लोग देश छोड़कर भाग रहे हैं। देश में गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है। तालिबान के आने से दुनियाभर में इस्लामिक कट्टरपंथ बढ़ने का खतरा है। अफगानिस्तान में पैदा हुए हालातों का भारत पर भी असर पड़ने वाला है।

इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन तालिबान (Taliban) ने कहा भी है कि अगर भारतीय सेना (Indian Army) वहां जाती है तो यह अच्छा नहीं होगा। साथ ही चीन और पाकिस्तान के तालिबान के साथ संबंध भी भारत के लिए चुनौती बन सकते हैं। भारत ने अफगानिस्तान में इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए कई सारे प्रोजेक्ट्स चला रखे हैं। उनपर भी खतरा मंडरा रहा है। यहां जानते हैं कि अफगानिस्तान की मौजूदा स्थिति का भारत पर क्या असर पड़ सकता है?

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भारत के तालिबान के साथ संबंध अच्छे नहीं रहे हैं। जब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था तब भारत ने उसे मान्यता नहीं दी थी। भारत हमेशा से चाहता है कि अफगानिस्तान में लोकतंत्र कायम रहे। जबकि तालिबान वहां शरिया कानून लाना चाहता है। इसलिए तालिबान, भारत के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है।

इसके अलावा, तालिबान के सत्ता में आने से वह पाकिस्तान के साथ मिलकर कश्मीर में अशांति पैदा कर सकता है। पाकिस्तान और चीन ने तालिबान का खुलकर समर्थन किया है। मतलब, तालिबान के आने से कश्मीर ही नहीं दुनियाभर में आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा क्योंकि तालिबान के आईएसआईएस (ISISI) जैसे बड़े आतंकी संगठनों का समर्थन मिला हुआ है। इसके अलावा पाकिस्तान की आईएसआई (ISI) से भी तालिबान के खास रिश्ते हैं।

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साल 1999 के कंधार हाइजैक को कौन भूल सकता है। 24 दिसंबर, 1999 को भारतीय हवाई जहाज आईसी-814 को आतंकियों ने हाइजैक कर लिया था। आतंकी इस विमान को कंधार एयरपोर्ट पर ले गए थे। इस विमान को हाइजैक करने के पीछे आतंकियों का मकसद भारत में कैद खूंखार आतंकियों जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद को छुड़वाना था।

इस पूरी घटना में अफगानिस्तान में तब की तालिबानी सरकार ने भारत की मदद नहीं की थी। लिहाजा, इस मुसीबत से निकलने में भारत को काफी मुश्किल उठानी पड़ी थी। इतना ही नहीं, तालिबान ने इनमें से एक आतंकी मौलाना मसूद अजहर को पाकिस्तान भेजने में मदद भी की थी। इससे पता चलता है कि पाकिस्तानी आतंकियों का तालिबान को समर्थन मिला हुआ था।

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अब बात करते हैं अफगानिस्तान में भारत के निवेश पर। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान (Taliban) के आने के बाद भारत ने जो तीन बिलियन डॉलर का निवेश अफगानिस्तान में किया है उसकी सुरक्षा और चाबहार के विस्तार जैसे मसलों पर फिर से रणनीति बनानी पड़ेगी।

चारबहार को लेकर विस्तार की जो योजना भारत ने अफगानिस्तान के जरिए बनाई थी उसपर असर पड़ेगा क्योंकि चीन और पाकिस्तान, तालिबान की मदद से इसमे रोड़ा अटकाने का प्रयास करेंगे।

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इसके अलावा, भारत द्वारा बनाए गए जरांज-डेलाराम हाईवे और सलमा डैम के साथ कई बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं, उन पर भी खतरा मंडरा रहा है। बता दें कि अब भी कई भारतीय प्रोजेक्ट्स हैं जो अफगानिस्तान के लगभग हर प्रांत में चल रहे हैं। तालिबान के आने से इन पर भी मुश्किलें आ सकती हैं।

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