भारतीय परमाणु शक्ति के जनक थे डॉ भाभा, इनकी अचानक मौत से पूरी दुनिया थी हैरान

Homi Jehangir Bhabha

Remembering Dr. Homi Jehangir Bhabha on his Death Anniversary

Dr. Homi Jehangir Bhabha Death Anniversary: परमाणु शक्ति का महत्व आज सभी देश समझने लगे हैं और बहुत से छोटे तथा जो पूरी तरह से विकसित भी नहीं, परमाणु शक्ति का सहारा लेकर अपने आपको शक्तिमान दिखाने के चक्कर में पड़ गए हैं। लेकिन उनके पास अभी भी परमाणु शक्ति का पूरा रहस्य नहीं है। विकासशील देशों में भारत की अनेक क्षेत्रों में विशिष्ट उपलब्धियों के संबंध में सभी जानते हैं। उसने राजनीति और विज्ञान के क्षेत्र में अनेक बड़े देशों को भी आश्चर्यचकित किया है। परमाणु शक्ति के क्षेत्र में भारत की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि वह विश्व के उन 6 देशों की पंक्ति में आ खड़ा हुआ है जो इस अद्भूत शक्ति के सम्पूर्ण रहस्यों को जानते हैं।

Homi Jehangir Bhabha
Remembering Dr. Homi Jehangir Bhabha on his Death Anniversary

विज्ञान पढ़ने वाले लोग जानते हैं कि पहला अणुबम एनरिको फेर्मी ने बनाया और प्रथम प्रयोग जापान पर किया गया था। भले ही अपनी मृत्यु से पूर्व फेर्मी अणुबम की संहारक क्षमता से स्वयं विचलित हो उठे थे, लेकिन शुरू से उसकी संहारक शक्ति के विरूद्ध नहीं थे। यह दृढंता प्रदर्शित की भारत के महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) ने। भाभा ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारत में इसके शांतिपूर्ण और रचनात्मक विकास के उपयोग की परिकल्पना को साकार किया।

एक समाचार के अनुसार पश्चिम जर्मनी के वैज्ञानिक ने हाइड्रोजन बम से एक कृत्रिम सूर्य का निर्माण किया था। जिस का तापमान 6 करोड़ अंश सेंटीग्रेड होगा तथा जिस से शक्ति संबंधी कई समस्याएं हल हो सकेंगी। 955 में अणुशक्ति के शांतिपूर्ण प्रयोग के अधिवेशन में अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉक्टर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) ने कहा था, ‘लगभग 20 सालों बाद वह समय भी आ जाएगा जब हाइड्रोजन बम भी शांतिपूर्ण प्रयोगों के लिए व्यवहार में लाया जाएगा यह एक अपरिमित शक्ति का श्रोत होगा’। पर अपनी इस भविष्यवाणी का साकार रूप देखने से पहले ही 24 जनवरी 1966 को एक विमान दुर्घटना में डॉक्टर भाभा का देहांत हो गया।

होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) का जन्म 30 अक्तूबर 1909 को एक संपन्न पारसी परिवार में हुआ था। इनके दादा हरमुख जी जहांगीर भाभा बहुत ही विद्वान व्यक्ति थे। वे मैसूर रियासत में शिक्षा विभाग के निदेशक थे। उनके पुत्र यानि की होमी के पिता जे. एच. भाभा, बंबई के प्रसिद्ध बैरिस्टर थे। उन्होंने वकालत की शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की थी।

आप एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे। बंबई के इलफिंस्टन कॉलेज में शिक्षा ग्रहण कर के आप उच्च शिक्षा प्राप्त करने इंग्लैंड चले गए। 1930 में कैंब्रिज विश्वविद्यालय से बीए की उपाधि प्राप्त की। गणित और विज्ञान में असाधारण प्रवीणता और प्रतिभा के फलस्वरूप 1932 व 1934 में इन्होंने क्रमश: बाल ट्रैवलिंग स्टूडेंटशिप एन मैथमेटिक्स और सर आइजक न्यूटन स्कॉलरशिप छात्रवृतियां भी प्राप्त कीं। वहीं रह कर कैंब्रिज से पीएचडी की उपाधि ले कर आप भारत लौटे।

लगभग इसी समय बेंगलुरु में वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए एक केंद्र खोला गया था। भारत सरकार ने सुप्रसिद्ध रसायनशास्त्री डॉक्टर शांतिस्वरूप भटनागर के नेतृत्व में काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च की स्थापना की। भारत आते ही डॉक्टर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) ने बेंगलुरु में पदार्थ विज्ञान के स्पेशल रीडर का पद सँभाला।

Homi Jehangir Bhabha
Remembering Dr. Homi Jehangir Bhabha on his Death Anniversary

अपना देश यद्यपि विश्व के अविकसित देशों की श्रेणी में आता है फिर भी ज्ञानविज्ञान के आकाश में कई भारतीय तारे चमकते दिखाई देते हैं। पदार्थ विज्ञान के क्षेत्र में डॉक्टर के. एस. कृष्णन, डॉक्टर एस. चंद्रशेखर, डॉक्टर वी. वी. नार्लीकर प्रभृति ऐसे विद्वान हैं जो अपने शोधकार्यों से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके हैं। डॉक्टर जयंत नार्लीकर का नाम तो अब न्यूटन और आइंस्टाइन के साथ लिया जाता है। डॉक्टर भाभा भी एक पदार्थ विज्ञानवेत्ता थे। पदार्थ विज्ञान की उच्च शिक्षा प्राप्त करने वालों को परमाणु भौतिकी का अध्ययन करते समय ब्रह्मांड किरणों से संबंधित इस का एक नियम भी पढ़ना पड़ता है।

ब्रह्मांड किरणें एक प्रकार की तीर्व अदृश्य किरणें हैं, जिन का आभास सन 1900 में स्कॉटलैंड के सीटीआर विल्सन को हुआ था। ये किरणें क्ष-किरणों (एक्स-रेज) से भी अधिक शक्तिशाली होती हैं। इन का आभास मिलते ही अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, हॉलैंड, बेल्जियम, इटली और स्वीट्जरलैंड के वैज्ञानिकों का ध्यान इस और आकर्षित हुआ। इन रहस्यमय किरणों की प्रकृति, प्रभाव, चलन इत्यादि के संबंध में अनुसंधान और शोधकार्य प्रारंभ हुए। इन किरणों से संबंधित हजारों प्रतिशोध व कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, जिन में डॉक्टर भाभा का भी योगदान था।

सब से महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्हीं किरणों से संबंधित प्रयोगों के परिणामस्वरूप परमाणु के भीतरी भाग नाभिक में दो अन्य प्राथमिक कणों की उपस्थिति का ज्ञान हुआ। इन प्राथमिक कणों को पोसिट्रॉन और मेसोट्रॉन नाम दिए गए हैं। तब तक परमाणु के नाभिक में केवल प्रोटान और न्यूट्रान की उपस्थिति के बारे में ही ज्ञान था, जिस के चारों और इलेक्ट्रॉन घूमते रहते हैं। इन अतिरिक्त प्राथमिक कणों की जानकारी परमाणु के नाभिक की रहस्यमयी बनावट पर प्रकाश डाला।

परमाणु शक्ति के क्षेत्र में भाभा (Homi Jehangir Bhabha) की खोज को भारतवासियों को ही नहीं, वरन विश्वभर को ज्ञात है। 1963 में उन्हीं की प्रेरणा से तारापुर परमाणु बिजलीघर की स्थापना की गई। डॉ भाभा यह अनुभव करते थे कि जिस देश को उन्नति करनी है, अपने यहां बड़े उद्योगों को स्थापित करना है, विज्ञान और टैक्नोलॉजी में उन्नति करती है, उसे अधिक से अधिक बिजली की आवश्यक्ता होगी और इसी ध्येय को सम्मुख रखने के कारण भारत में परमाणु बिजलीघरों की स्थापना का सिलसिला चालू हो गया। राजस्थान में राणा प्रताप सागर और दक्षिण में कल्पकम में परमाणु बिजलीघरों की स्थापना की गई। बाद में उत्तर प्रदेश में नरौरा परमाणु बिजलीघर बनाया गया।

परमाणु शक्ति का क्षेत्र बड़ा विशाल है और उससे संबंधित अनेक संयंत्रों की आवश्यकता होती है। इसमें परमाणु रिएक्टरों का प्रमुख स्थान है। परमाणु बिजली घरों में जिस ईंधन का प्रयोग होता है, रिएक्टर उसका परीक्षण करते हैं, आइसोटोपलाजी विज्ञान में अनसुंधान और भारी जल आदि के कार्य करते हैं। डॉ भाभा ने पहला रिएक्टर ट्रॉम्बे में स्थापित करवाया। इसी तरह राणा प्रताप सागर और तारापुर बिजली घरों में भी रिएक्टर स्थापित किए। अभी कुछ अन्य रिएक्टरों की स्थापना भी की गई। डॉक्टर भाभा का रिएक्टरों की स्थापना का ध्येय यह था कि भारत को परमाणु शक्ति के संबंध में किसी पर आश्रित न रहना पड़े। पहला रिएक्टर भारतीय वैज्ञानिकों ने भाभा (Homi Jehangir Bhabha) की देख-रेख में स्वंय तैयार किया था। कुछ अन्य रिएक्टर पूर्णतया भारतीय साजोसमान से बनाए गए हैं।

इतिहास में आज का दिन – 24 जनवरी

इस प्रकार हमें आज इस बात का एहसास है कि भारत को विश्व परमाणु मानचित्र पर अंकित करने का श्रेय डॉक्टर भाभा को है। उन्होंने जो कार्य आरंभ किया था वह चल तो आज भी रहा है, परंतु जिस समय उनकी अत्यधिक आवश्यकता थी वे उस समय चल बसे। डॉ भाभा 24 जनवरी 1966 को जेनेवा में होने वाले अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी की बैठक में हिस्सा लेने एयर इंडिया के बोइंग विमान से जा रहे थे तो भारी धंध के कारण विमान आल्पस पर्वतमाला में टकराकर चूर-चूर हो गया और उसके सभी यात्री मारे गए। यह बड़ी भयावह दुर्घटना थी। भाभा  (Homi Jehangir Bhabha) के निधन से सारा देश तो स्तब्ध रह ही गया वरन सारे विज्ञान जगत में भारी शोक छा गया। काल के क्रूर हाथों ने भारत का एक महान मेधावी सपूत छीन लिया था।

उनके निधन के बाद उनकी स्मृति बनाये रखने के लिए ट्राम्बे के परमाणु अनुसंधान केंद्र का नाम भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र रख दिया गया।   

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