हरिवंश राय बच्चन के प्रयासों के कारण ही कवियों को भी मिलने लगा मेहनताना

Harivansh Rai Bachchan

Harivansh Rai Bachchan Death Anniversary II Today History

Harivansh Rai Bachchan Death Anniversary: हिंदी के मशहूर कवि-लेखक हरिवंश राय बच्चन जी 18 जनवरी 2003 को मुंबई में इस दुनिया को अलविदा कह गए। इनकी कविताओं में सरलता और संवेदनशीलता का जो मिश्रण था वो उनके निधन के बाद हमेशा के लिए उन्हें अमर कर गई।

Harivansh Rai Bachchan
Harivansh Rai Bachchan Death Anniversary II Today History

हिंंदी साहित्य के महाकवि हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गांव पट्टी में हुआ था। हरिवंश राय ने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया और 1941 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्रवक्ता भी रहे। हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) उसके बाद पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए, जहां कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अंग्रेजी साहित्य पर शोध किया। 1955 में कैंब्रिज से वापस आने के बाद हरिवंश राय बच्चन की नियुक्ति भारत सरकार ने विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के रूप में की। हरिवंश राय बच्चन राज्यसभा के सदस्य भी रहे और 1976 में इन को पद्म भूषण की उपाधि से भी नवाजा गया।

युवा पीढ़ी हरिवंश राय बच्चन को अमिताभ बच्चन के जरिए ही जानना सीखी, हिंदी के छात्र- छात्राओं को छोड़ दिया जाए तो युवाओं में उन्हें बेहद ही कम लोग जानते थे। वे उन्हें जाने लगे, मधुशाला को जानने लगे, कुछ लाइंस भी याद हो गई, जो अमिताभ अक्सर लिखते-बोलते रहते हैं। ऐसे में जब-जब अमिताभ के रोमांटिक रिश्तों या पत्नी जया से इतर रिश्तों की बात होती है, अमिताभ चुप्पी लगा जाते हैं। तो इस पर कई पुराने बुजुर्ग पत्रकारों या कवियों को ये लिखते, कहते देखा गया है कि बेटे से बेहतर तो पिता थे, कुछ भी नहीं छुपाया, सब कुछ दुनिया को बता कर गए। तो क्या ये वाकई में सच था कि अपने रोमांटिक रिश्तो को लेकर अमिताभ बच्चन के पिता उनसे ज्यादा बेबाक थे।

अगर कोई अमिताभ बच्चन के फैंस से ये कहे कि अमिताभ और अजिताभ हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) की पहली नहीं, बल्कि दूसरी बीवी की संतान थे और हरिवंश जी की प्रेम कहानियां अमिताभ की प्रेम कहानियों से कहीं ज्यादा थीं, तो शायद उन्हें यकीन न हो। उस पर भी दिलचस्प बात ये कि अमिताभ न रेखा से अपने रिश्तों के बारे में कुछ बोलते हैं और न परवीन बॉबी से और ना ही किसी और से। लेकिन उनके पिताजी ने बड़ी बेबाकी से अपने सारे रिश्तों के बारे में खुल्लम-खुल्ला लिखा है, चाहे वो वैध रिश्ते थे या फिर अवैध। जी हां, उनका एक अवैध रिश्ता भी था, इसकी स्वीकारोक्ति उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी की है।

कुल चार हिस्सों में ऑटोबायोग्राफी लिखी हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’, ‘नीड का निर्माण’, ‘फिर बसेरे से दूर’ और ‘दस द्वार से सोपान तक’। पहला पार्ट था, ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’, इसी में उन्होंने अपनी पहली बीवी श्यामा के बारे में लिखा है और इस किताब को श्यामा की मौत पर ही खत्म किया है। श्यामा से उनकी शादी 19 साल की उम्र में हुई थी, तब श्यामा 14 की थीं। 3 साल गौने के बाद जब वे घर आईं तो काफी बीमार थीं। दरअसल उनकी मौत भी शादी के 10 साल बाद ही टीबी से हो गई थी। श्यामा की मां को टीबी की बीमारी थी, उन्हीं की सेवा में दिन-रात लगी श्यामा को भी यह बीमारी लग गई। अमिताभ के फैंस को पता ही होगा कि अमिताभ बच्चन खुद भी टीबी की बीमारी से उभर कर आए हैं, तभी वे सरकार के टीबी कैंपेन के ब्रांड अंबेसडर बन गए।

Harivansh Rai Bachchan

‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’ में हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) लिखते हैं, “श्यामा को आंत की टीबी रोग था। मैं भी एक समय  टीवी का रोगी घोषित कर दिया गया था। टीवी संक्रामक रोग है, विशेषकर उनके लिए अधिक संक्रामक सिद्ध हो सकता है, जो किसी भी समय स्वयं भी कभी टीवी रोगी रह चुका हो। श्यामा जिस दिन से बीमार पड़ी, मैंने अपने ऊपर उसकी सेवा का भार ले लिया। रातों को उसकी खाट-से-खाट लगाकर सोता था, पता नहीं रात को वह किस समय, किस काम से मुझे जगाना चाहे। मुझे लोग आगाह भी करते थे कि मेरा श्यामा के इतना निकट रहना खतरे से खाली नहीं है।

श्यामा से शादी से पहले हरिवंश का एक अफेयर हुआ, अपने दोस्त कर्कल की बीवी चंपा से और ये कर्कल की मर्जी से था। हालांकि हरिवंश इसे राधा-श्याम के प्रेम की तरह परिभाषित करते हैं। कर्कल की असामयिक मौत से पहले कर्कल ने उनसे उसका ध्यान रखने का भी वायदा लिया था। उसकी मौत से पहले ही दोनों के रिश्ते भी बने और चंपा गर्भवती भी हो गई। जब कर्कल की सास को पता चला कि चंपा गर्भवती है उस दिन के बारे में हरिवंश राय बच्चन अपने किताब ‘क्या भूलूं, क्या याद करूं’ मैं लिखते हैं, “गर्भवती होने के लक्षण तो उसके शरीर में मई माह में दिखाई दिए और वृद्धा सुंदर की अनुभवी, पैनी और पैठू आंखें पल भर में तह तक पहुंच गई। उस समय लोकलाज-भीता, असहाया और विधवा पर क्या बती होगी, इसकी कल्पना मैं नहीं कर सकता। उसने मुझे बुलाया और एक बार चंपा की ओर देखकर अपनी कील चुभने वाली तेजमयी आंखों से मुझे ऐसे देखा जैसे वह मुझे वहीं दग्ध करके क्षार कर देगी। चंपा ने मंद, गंभीर स्वर में कहा, ‘दोषी मैं हूं’। इससे पूर्व कि मैं कुछ कहूं वृद्धा ब्राह्माणी ने अपनी प्रबल भुजा उठाकर अपनी तर्जनी से द्वार की ओर संकेत किया और मानो उसके झटके से ही, खुद चलकर नहीं, मैं दरवाजे के बाहर हो गया।

चंपा की सास कैसे उसको लेकर हरिद्वार के लिए रवाना हुई, उसको विस्तार से हरिवंश (Harivansh Rai Bachchan) ने अपनी बायोग्राफी में लिखा है। इधर किसी ज्योतिषी ने हरिवंश के पिता को कहा था कि तुम्हारा बेटा एक दिन बहुत बड़ा आदमी बनेगा, उसको बढ़ने से रोकना नहीं। उनके माता-पिता को चंपा का पूरा एपिसोड पता होने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं कहा, यहां तक कि चंपा की मौत के बाद अपने बेटे की मानसिक स्थिति की चिंता ज्यादा थी। ऐसे में श्यामा से शादी करके उन्हें लगा कि इससे उसका ध्यान बंटेगा।

हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने विस्तार से अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि कैसे उनके एक करीबी श्रीमोहन ने पहचाना कि उनकी जीवनसंगिनी किस तरह की लड़की हो सकती है और कैसे उन्होंने श्यामा को ढूंढा। श्यामा उम्र से ज्यादा परिपक्व और समझदार थीं, उनके कवि मन को भा गई। श्यामा की याद में उन्होंने तीन कविताएं लिखी थीं, ‘निशा निमंत्रण’, ‘एकांक संगीत’ और ‘आकुल अंतर’। घरवाले उन्हें बीमार श्यामा से दूर रखना चाहते थे। लेकिन वे उनसे बात करना चाहते थे। घर की महिलाओं को डर था कि कहीं वे टीबी से ग्रसित श्यामा से सेक्सुअल रिलेशन न बना ले। लेकिन पति-पत्नी के आपसी तारतम्य के आगे घरवाले निरुतर रह गए। इसी तरह बच्चन ने कभी आजाद-भगत सिंह के साथी यशपाल की प्रेमिका प्रकाशो से अपने खिंचाव के बारे में भी लिखा है कि कैसे वे उनके घर में रानी नाम से रहती थीं और सच्चाई किसी को पता नहीं थी।

Harivansh Rai Bachchan
Harivansh Rai Bachchan Death Anniversary II Today History

हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने अपने रोमांटिक ही नहीं घरेलू रिश्तों, अपनी कायस्थ जाति और अपने पूर्वजों के बारे में बी खुलकर लिखा और बताया कि कैसे सामाजिक आंदोलनों में भाग लेने की वजह से उनके चाचा के परिवार के लोगों ने उनके परिवार का इस कदर बहिष्कार कर दिया कि श्यामा की मौत के बाद कांधा देने तक नहीं आए। हालांकि हरिवंश ने उन्हेों तेजी बच्चन के साथ शादी के बाद एट होम समारोह में बुलाया तो वे खुद नहीं आए, बल्कि बच्चे भेज दिए, ताकि नई बहू के बारे में जानकारी मिल सके। लेकिन उनकी एक खानदानी चाची ने बच्चों को सबके साथ खाना खाने से रोक दिया ये कहकर, नहीं… “ई लोग इस पंगत में न खइहें”। उनके अलग खाने की व्यवस्था की गई, लेकिन तेजी बच्चन ने इससे काफी अपमानित महसूस किया। टी.वी. पर अमिताभ के चाचा आदि खानदानियों की कहानियां आती हैं कि कैसे उनकी मदद नहीं करते, दरअसल इसके पीछे की ये सब वजहें थीं, जो हरिवंश राय बच्चन ने अपनी बायोग्राफी में लिखी हैं। 

श्यामा की मौत के बाद वे अकेले पड़ गए थे, पांच साल बाद 1941 में उनकी मुलाकात हुई तेजी सूरी से। ये मुलाकात हुई बरेली में उनके दोस्त प्रकाश के घर। नए साल का जश्न था, 31 दिसंबर की रात थी। उनसे सबने कविता पाठ का आग्रह किया। आगे की कहानी बच्चन साहब के शब्दों में पढिए, ”ये कविता मैनें बड़े सिनिकल मूड में लिखी थी। मैने गीत सुनाना शुरू किया। मैं एक पलंग पर बैठा था, मेरे सामने प्रकाश बैठे थे और मिस तेजी सूरी उनके पीछे खड़ी थीं। गीत सुनाते-सुनाते न जाने मेरी आवाज में कहां से वेदना भर आई। मैने ‘उस नयन से बह सकी कब इस नयन की अश्रु-धारा…’ लाइन पढ़ी ही थी कि मिस सूरी की आंखें नम हो गई और उनके आंसू टप-टप प्रकाश के कंधे पर गिर रहे थे। ये देखकर मेरा गला भर आता है। मेरा गला रुंध जाता है। मेरे भी आंसू नहीं रुक रहे थे। ऐसा लगा मानों, मिस सूरी की आंखों से गंगा-जमुना बह चली हैं और मेरे आंखों से जैसे सरस्वती।”

और वो कविता ये थी–

क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनों ने निभाई,
किंतु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी,
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?
एक भी उच्छ्वास मेरा
हो सका किस दिन तुम्हारा?
उस नयन से बह सकी कब
इस नयन की अश्रु-धारा?
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूं?

इतिहास में आज का दिन – 18 जनवरी

काफी दिलचस्प बात ये है कि जैसे-जैसे हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) की आत्मकथाओं के शुरुआती खंड छपकर बाहर आए, लोगों के बीच पहुंचे तो हरिवंश राय बच्चन एक अलग ही दुविधा में फंस गए। उनके पास तमाम तरह के पत्र आने लगे, कोई उन्हें खुद को पूर्व जन्म की चंपा बताती तो कोई श्यामा, इतना ही नहीं एक लड़के ने खुद को उनका दोस्त कर्कल बताया। एक लड़की से तो उनका सालों पत्र व्यवहार चला, वो खुद को उनकी पूर्व जन्म की पत्नी श्यामा बताती थी। उनके बंगले के सामने आकर खड़ी हो जाती थी, उनसे मिली तो उनके पैर भी छू लिये, अकसर उनसे घंटों फोन पर बात किया करती थी। बड़ी मुस्किल से पीछा छूटा था, उनका उससे। ये सारी घटनाएं उन्होंने अपनी आत्मकथा के आखिरी खंड दशद्वार से सोपान तक में लिखी हैं।

चाहे वो चंपा हो, श्यामा हो, तेजी हो या फिर प्रकाशो, हरिवंश राय बच्चन (Harivansh Rai Bachchan) ने अपनी दबी ढकी, वैध, अवैध सभी तरह के इच्छाओं, भावनाओं को अपनी बायोग्राफी मे खुलकर लिखा है। बिना ये सोचे कि कोई क्या कहेगा। शायद तब टेलीविजन का युग भी चरम पर नहीं था और सोशल मीडिया तो गर्भ में भी नहीं था। अब माहौल बदल गया है, इस तरह की व्यक्तिगत जानकारियां लोग लोगों से बांटते तो हैं, लेकिन किताब को चर्चित बनाने के लिए। अमिताभ बच्चन को इन सबकी शायद जरूरत नहीं, क्योंकि वे न चाहें तब भी चर्चा में ही रहते हैं। फिर भी लोगों को कहीं-न-कहीं लगता है कि वे भी अपनी व्यक्तिगत जिंदगी के कुछ राजों पर से कभी-न-कभी परदा जरूर उठाएंगे, अपने बेबाक पिता की तरह ही।

 

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