अमिताभ को स्टारडम तक पहुंचाने में जावेद अख्तर की कलम का भी है बड़ा हाथ

Javed Akhtar

Happy Birthday Javed Akhtar Sahab

“मेरी ख्वाहिशें मुझे यहां तक लाई हैं, मैं जिंदगी से कामयाबी, शोहरत और अमीरीयत चाहता था और मुझे यह सब स्वीकारने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। मेरे पास एक खास तरह का हुनर था और जिंदगी में मैं उसका सही तरह से इस्तेमाल कर पाया और इन सबको हासिल कर पाया। लेकिन यह सब मैंने स्टॉक एक्सचेंज से नहीं पाया और न ही स्टील व कपड़े के धंधे से। मैने ये सब पाया फिल्मों की कहानी लिखकर, गाने लिखकर, क्योंकि यही मेरा शौक था।“ Javed Akhtar

Javed Akhtar
Happy Birthday Javed Akhtar Sahab

लगभग तीन दशक से अपने गीतों से संगीत जगत को सराबोर करने वाले शायर और गीतकार जावेद अख्तर (Javed Akhtar) की रूमानी नज्में आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। 17 जनवरी, 1945 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में जां निसार अख्तर के घर जावेद अख्तर का जन्म हुआ। इनकी माता का नाम साफिया अख्तर था। जावेद अख्तर ने दो शादियां की है। पहली शादी उन्होंने 1972 में हनी ईरानी से की। लेकिन शबाना आजमी के साथ जावेद की करीबी बढ़ने के बाद 1978 में दोनों अलग-अलग रहने लगे। हनी ईरानी से जावेद को दो संताने हुईं। 1972 में जोया अख्तर और 1974 में फरहान अख्तर पैदा हुए। जावेद अख्तर ने 1984 में शबाना आजमी से दूसरी शादी की। जावेद की दूसरी शादी की बात पता चलते ही उनकी पहली पत्नी जो उनसे अलग रह रहीं थीं, 1985 में उनसे तलाक ले लिया।

बचपन से ही शायरी से जावेद अख्तर (Javed Akhtar) का गहरा रिश्ता था। जावेद अख्तर की सात पीढ़ियां उर्दू कवि और लेखकों की थीं। जावेद साहब जब कॉलेज में थे तो वाद-विदाद में हिस्सा लिया करते थे, तब अकसर अपने दोस्तों के छोटे भाई-बहनों के लिए भाषण लिख देते थे, या फिर दिन दोस्तों के प्रेम-प्रसंग हुआ करते थे, उनके लिए खत लिख दिया करते थे। उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सज़ा करती थीं, जिन्हें वह बड़े चाव से सुना करते थे। जावेद अख्तर के जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से पूरी की। कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद जावेद अख्तर अलीगढ़ आ गए, जहां वह अपनी खाला के साथ रहने लगे। साल 1952 में जावेद अख्तर को गहरा सदमा पहुंचा, जब उनकी मां का इंतकाल हो गया। जावेद अख्तर ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी से पूरी की। इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा भोपाल के सोफिया कॉलेज से पूरी की। जब वह कॉलेज में थे तो उन्होंने सोच लिया था कि वह ग्रेजुएशन के बाद बंबई जाएंगे और निर्देशक बनेंगे। अपने सपनों को साकार रूप दे के लिए साल 1964 में वह महज 19 साल की उम्र में ही बंबई आ गए। पहले कमाल अमरोही और फिर ब्रिज साहब का सहायक बने। इसी दौरान धीरे-धीरे उन्हें दूसरे काम मिलते गए। तब भी उनका इरादा निर्देशक बनने का ही था। स्क्रिप्ट राइटर बनने के बारे में तो उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था। लेकिन हुआ यह कि वह जहां भी सहायक निर्देश होते थे, वहां पर वह कुछ लिखते थे तो लोग काफी प्रभावित होते थे। साल भर के बाद ही उन्होंने अपनी पहली फिल्म के डायलॉग लिख दिए। जहां तक शायरी का ताल्लुक है, तो उन्हें शुरू से ही इसमें दिलचस्पी थी। उन्हें 16-17 साल की उम्र में ही हजारों शेर याद थे, जिन्हें वह घंटों तक लोगों को सुना सकते थे। लेकिन उन्होंने शायरी लिखनी बहुत देर से, करीब 32-33 साल की उम्र में शुरू की।

इतिहास में आज का दिन – 17 जनवरी

बंबई पहुंचने पर जावेद अख्तर (Javed Akhtar) को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। बंबई में कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपए के वेतन पर फिल्मों में डायलॉग लिखने का काम करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के डायलॉग लिखे, लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई। इसके बाद जावेद अख्तर (Javed Akhtar) को अपनी फिल्मी करियर डूबता नजर आया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना संघर्ष जारी रखा। धीरे-धीरे बंबई में उनकी पहचान बनती गई। बंबई में उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई, जो फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे। इसके बाद जावेद अख्तर और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे।

साल 1973 में उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा से हुई, जिनके लिए उन्होंने फिल्म ‘जंजीर’ के लिए संवाद लिखे। फिल्म ‘जंजीर’ में उनके द्वारा लिखे गए संवाद दर्शकों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि पूरे देश में धूम मच गई। इसके साथ ही फिल्म के जरिए फिल्म इंडस्ट्री को अमिताभ बच्चन के रूप में सुपर स्टार मिला। इसके बाद जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक फिल्मों के लिए संवाद लिखे। जाने-माने निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्मों के लिए जावेद अख्तर ने जबरदस्त संवाद लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके संवाद के कारण ही रमेश सिप्पी की ज्यादातर फिल्में आज भी याद की जाती हैं। इन फिल्मों में खासकर ‘सीता और गीता’ (1972), ‘शोले’ (1975), ‘शान’ (1980), ‘शक्ति’ (1982) और ‘सागर’ (1985) जैसी सफल फिल्में शामिल हैं। रमेश सिप्पी के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में यश चोपड़ा और प्रकाश मेहरा प्रमुख रहे हैं। साल 1980 में सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई।

इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा। इस बीच निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा के बहुत जोर देने के बाद जावेद अख्तर (Javed Akhtar) ने फिल्म ‘सिलसिला’ के लिए गीत लिखे और यहीं से उनके गीत लिखने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह पिछले दो दशक से अनवरत जारी है।

जावेद अख्तर (Javed Akhtar) को गीतों के लिए सात बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। जावेद अख्तर को सबसे पहले साल 1994 में प्रदर्शित फिल्म ‘1942 ए लव स्टोरी’ के गीत ‘एक लड़की को देखो तो ऐसा लगा’ के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके बाद जावेद अख्तर साल 1996 में प्रदर्शित फिल्म ‘पापा कहते हैं’ के गीत ‘घर से निकलते ही’ (1997), ‘बॉर्डर’ के गीत ‘संदेश आते हैं’ (2000), ‘रिफ्यूजी’ के गीत ‘पंछी नदियां पवन के झोंके’ (2001), ‘लगान’ के ‘सुन मितवा’ (2003), ‘कल हो ना हो’ का टाइटल सॉन्ग (2004), ‘वीर जारा’ के ‘तेरे लिए’ के लिए भी जावेद अख्तर सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किए गए। साल 1999 में साहित्य जगत में जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्मश्री’ से नवाजा गया। साल 2007 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ सम्मान से भी नवाजा गया।

जावेद अख्तर (Javed Akhtar) को उनके गीत के लिए साल 1996 में फिल्म ‘साज’, 1997 में ‘बॉर्डर’ और 2001 में फिल्म ‘रिफ्यूजी’ के लिए नेशनल अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।

Hindi News के लिए हमारे साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर जुड़ें और डाउनलोड करें Hindi News App

यह भी पढ़ें