First World War: जहरीली गैस के हमले से बचने के लिए जब सैनिकों को कपड़ों पर लगानी पड़ी पेशाब…

1914, इतिहास का वह समय था, जब पहली बार भारतीयों ने कलाई घड़ी देखी थी, फ्रिज देखा था, खाइयों और कीचड़ की लड़ाई, टैंक, मशीन गन और बेइंतहा ठंड, ये सब उनके लिए बेहद नया अनुभव था।

First World War

फाइल फोटो

वर्ष 1914 से 1919 के बीच 11 लाख भारतीय सैनिकों को लड़ाई के लिए विदेश भेजा गया था। भारतीय इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध की सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पहले भारतीय की मौत न तो पश्चिमी मोर्चे पर हुई थी और न ही मेसोपोटेमिया या अफ़्रीका के बीहड़ रेगिस्तानों में।

28 जुलाई 1914, आज ही के दिन प्रथम विश्व युद्ध (First World War) की शुरुआत हुई थी और इसका कारण था ऑस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उत्तराधिकारी आर्चड्यूक फ़र्डिनेंड-1 की हत्या। इस विश्व युद्ध के दौरान भारत ब्रिटिश शासन का गुलाम था।

74000 भारतीयों को इस विश्व युद्ध में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। सैकड़ों भारतीय सैनिक जहरीली गैस का शिकार हो गए थे। जो बच गए, उनका कोई न कोई अंग हमेशा के लिए बेकार हो चुका था।

1914, इतिहास का वह समय था, जब पहली बार भारतीयों ने कलाई घड़ी देखी थी, फ्रिज देखा था, खाइयों और कीचड़ की लड़ाई, टैंक, मशीन गन और बेइंतहा ठंड, ये सब उनके लिए बेहद नया अनुभव था। मात्र 15 रुपये महीने की तनख्वाह पर उन्हे लड़ने के लिए विदेश भेजा गया था।

वर्ष 1914 से 1919 के बीच 11 लाख भारतीय सैनिकों को लड़ाई के लिए विदेश भेजा गया था। भारतीय इतिहास में प्रथम विश्व युद्ध की सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि पहले भारतीय की मौत न तो पश्चिमी मोर्चे पर हुई थी और न ही मेसोपोटेमिया या अफ़्रीका के बीहड़ रेगिस्तानों में।

पहले भारतीय की मौत 22 सितंबर, 1914 को मद्रास बंदरगाह पर हुई थी। उस वक्त जर्मन युद्ध पोत ‘एसएमएस एमडेन’ ने मद्रास बंदरगाह से 130 गोले दागे थे। जिसमें पांच नाविक मारे गए और तेरह घायल हो गए थे। इसी घटना के साथ तमिल शब्दकोष में एक नया शब्द जुड़ गया ‘एमडेन’ जिसका अर्थ होता है हिम्मती व्यक्ति, जिसका निशाना कभी नहीं चूकता।

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भारतीय सैनिकों को पहली बार पानी के जहाज से विदेश लड़ने के लिए भेजा जा रहा था। भारतीय सैनिकों के लिए यह सब नया अनुभव था। पहली बार उन्हें हथियार से सुसज्जित अनुभवी सैनिकों से लड़ना था। हथियारों को समझने और उन्हें चलाने के तरीकों को जानने के लिए दो से तीन दिन का समय दिया गया था।

बेल्जियम में हॉलबीक के पास एक हमले में काफी सैनिक मारे गए थे। प्रथम विश्व युद्ध की इस लड़ाई में पहली बार जर्मनी ने जहरीली गैस छोड़ी थी।

एक भारतीय सैनिक ने अपने घर चिट्ठी में लिखा था कि ऐसा लगा जैसे जहन्नुम धरती पर उतर आया हो। पूरे मैदान में चारों तरफ सैकड़ों लाशें बिछी पड़ी थीं। किसी ने कहा एक कपड़े पर पेशाब लगाकर अगर उसे नाक के पास रखा जाए, तो गैस का असर कम हो जाता है। मरता क्या न करता, सैनिकों ने यह भी किया पर कोई फायदा न हुआ।

इस गैस त्रासदी में 47 सिख रेजीमेंट के 78 फ़ीसदी सैनिक मारे गए थे। इस युद्ध के बाद ब्रिटेन ने पहली बार भारतीय लोगों को एक सैनिक के रूप में गंभीरता से लेना शुरू किया। पंजाब ने इसे लंबी लड़ाई का नाम दिया। 74000 भारतीय सैनिक मारे गए और 70000 लोग वापस आए। वापस आए लोगों में कोई सही सलामत नहीं बचा था। उनका कोई न कोई अंग हमेशा के लिए अपंग हो गया था।

भारतीय सैनिकों की वीरता के किए 9200 से अधिक पुरस्कार मिले जिसमें वीरता के सबसे बड़े पदक 11 विक्टोरिया क्रॉस भी शामिल हैं।

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