आशा भोंसले को संगीत के शिखर तक पहुंचाने वाले महान संगीतकार थे ओ पी नैयर

O P Nayyar

Today History

ओंकार प्रसाद नैयर फिल्म जगत के अकेले संगीतकार हैं , जिन्होंने अपने लंबे संगीत सफर में जानबूझकर लता से कभी नहीं गंवाया कमर तेरी भी बहुत बड़े अरसे तक चोटी पर बने रहे। जिस आशा भोंसले को आज हम नमन करते हैं उन्हें शहनाई गांव की पार्श्व गायिका या फिर बी और सी ग्रेड की फिल्मों से उतारकर चोटी तक पहुंचाने में ओपी नैयर (O P Nayyar) का ही योगदान है। आशा की आवाज की खरज को उभारने और उन्हें बहुआयामी पहचान दिलाने में भी सबसे बड़ा योगदान ओपी नैयर (O P Nayyar) का ही माना जाएगा।

O P Nayyar
ओ.पी.नैय्यर एक ऐसे संगीतकार है जिन्होंने आशा भोंसले को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाया।

आशा भोंसले पर नैयर का संगीत कितना केंद्रित हो चुका था , यह इसी से पता चलता है कि कल्पना के 11 गीतों में से 10 में आशा का स्वर था। हारमोनियम के लुभावने प्रयोग के साथ प्यारा प्यारा है समा , नशीले सुरों के साथ जाए जहां मेरी नजरें, मचलते बिट्स पर मैं खिड़की पर आऊंगी, सभी में आशा का प्रभुत्व था।

ओपी नैयर (O P Nayyar) का अधिकांश संगीत मूलतः पंजाब की रिदम पर आधारित था। चाहे ‘कश्मीर की कली’ का ‘मेरी जान बल्ले बल्ले हो’ या ‘देश है वीर जवानों’ का ‘भांगड़ा हो’, नैयर का संगीत ऐसे गीतों में पूरी तरह खिल उठता था। मूलत: पंजाब के रहने वाले नैयर ने पंजाब की लोक शैली की थिरकन को अपने संगीत में जितनी कुशलता से समाहित किया उतना शायद ही कोई और संगीतकार कर पाया। अपने कुशल ऑर्केस्ट्रेशन और वाद्यों की जुगलबंदी के कारण भी नैयर का संगीत आज तक यादगार बना हुआ है। बांसुरी और क्लैरिनेट का सामंजस्य, सारंगी और गिटार के कार्ड्स का लाजवाब प्रयोग , सारंगी और चेलों को एक साथ अलग-अलग अष्टक पर बजाना, वायलिन, मैंड्रोलिन और चेलों का असंबंद्ध रीति से प्रयोग उनके कई गीतों में रेखांकित होता है। साजों के फिलर्स का नैयर के संगीत में एक अलग अस्तित्व था, इतने मधुर फिलर्स कम ही संगीतकार दे पाते हैं। ‘आना है तो आ राह में’, सारंगी का अद्भुत प्रयोग कौन भूल सकता है? इसी प्रकार पियानो के खूबसूरत उपयोग में नैयर किसी भी तरह नौशाद या अनिल विश्वास से कम नहीं आंके जा सकते, चाहे ‘आर-पार’ का- ‘जा जा जा जा जा बेवफा’ हो या ‘नया अंदाज’ का ‘मेरी नींदों में तुम’। महेंद्र कपूर के गाए ‘बदल जाए अगर माली’ और ‘आंखों में कयामत के काजल’ में गिटार के कार्ड्स पर  अविलंबित रिदम गजब का है। पश्चात शैली के क्लब डांस शैली के ‘मेरा नाम चिन चिन चू’, एकॉर्डियन के लय परिवर्तन के साथ ‘बाबूजी धीरे चलना’, कार्ड्स पर आधारित ‘दीवाना हुआ बादल’ जैसे गीत यदि नैयर का एक पक्ष प्रस्तुत करते हैं तो ‘दो निषाद दो माध्यम’ के साथ सृजित लोक शैली का ‘बूझ मेरा क्या नाम रे’ या तांगे के ट्रॉय रिदम वाले ‘पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे’ या ‘मांग के साथ तुम्हारा… मैंने मांग लिया संसार’ जैसे गीत उनका दूसरा पक्ष।

इतिहास में आज का दिन – 16 जनवरी

16 जनवरी 1926 में लाहौर में जन्मे ओपी नैयर (O P Nayyar) ने विधिवत संगीत की शिक्षा ग्रहण नहीं की थी। यह उनकी नैसर्गिक प्रतिभा थी, जो इसके बावजूद उन्हें शिखर पर ले आई। न्यू थियेटर्स के संगीत से वे बचपन से ही प्रभावित रहे और उनकी आरंभिक कई रचनाओं में इसका असर दिखता है। बचपन से ही बच्चों के कार्यक्रम में लाहौर रेडियो में वे गाने लगे थे। पहली बार फिल्मों में गाने का मौका उन्हें रूप शोरी की फिल्म ‘दूल्हा भट्टी’ में मिला जहां गोविंदराम के संगीत निर्देशन में उन्हें गाने का मौका मिला। परिवार से उन्हें इस संगीत प्रेम के लिए प्रोत्साहन मिला नहीं, पर नैयर का मन पढ़ाई में कम और संगीत में अधिक रमता था। 17 वर्ष की आयु में ही एच एम वी के लिए खुद की कंपोज की गई ‘कबीर वाणी’ को फिर इनायत हुसैन तथा धनीराम के संगीत निर्देशन में गाने का मौका मिला। लेकिन ये गीत खास चर्चित ना हुए और नैयर के दिन स्टूडियो के चक्कर लगाने में ही बीतने लगे।

लेकिन इसी बीच नैयर की एक प्राइवेट कंपोजीशन ‘प्रीतम आन मिलो’ जो उन्होंने टी एच आत्मा की आवाज में रिकॉर्ड कराई, जो बेहद मकबूल रही और ओपी नैयर (O P Nayyar) एक पहचाना नाम तो हो ही गया। ‘प्रीतम आन मिलो’ इतना मशहूर हुआ कि आज भी बड़े चाव से सुना जाता है। न्यू थियेटर्स की शैली का प्रभाव तो है, पर कंपोजीशन बेमिसाल थी। इस सफलता से प्रभावित होकर प्रसिद्ध निर्माता दलसुख पंचोली ने भी नैयर को काम देने की सोची, पर इसी बीच विभाजन की त्रासदी ने सब कुछ इधर-उधर कर दिया और नैयर को भी लाहौर छोड़कर पहले पटियाला में संगीत शिक्षक बनना पड़ा, और फिर वहां से ऊबकर मुंबई आना पड़ा।

मुंबई में संघर्ष जारी रहा, हालांकि उनके पुराने मित्र कृष्ण कुमार की फिल्म ‘कनीज’ में पार्श्व संगीत देने का मौका मिल गया। संगीतकार के रूप में पहला मौका उनके मित्र एस एन भाटिया की मदद से मिला जिन्होंने पंचोली को ‘आसमान’ के लिए नैयर को आजमाने की भरपूर सिफारिश की। ‘आसमान’ के लिए जो पहला गीत नैयर ने कंपोज किया वह फिर सी एच आत्मा के ही स्वर में था और बहुत कर्णप्रिय था।

ओपी नैयर (O P Nayyar) का संगीत जब हिट होना शुरू हुआ तो उसने सभी सीमाएं तोड़ डाली। पंजाबी लोक शैली की थिरकन भरी रिदम, घोड़े के टॉप वाली उनकी रवानगी या मादकता भरे उनके क्लब गीतों ने लोगों पर जादू सा असर किया। हिट होने का सिलसिला गुरुदत्त की ‘आर-पार’ से ही शुरू हुआ और दोनों की जोड़ी ने हिंदी फिल्मों के कई हिट गाने दिए। लेकिन ‘मुझे देखो हसरत की तस्वीर हूं मैं’, ‘मांझी अलबेले’, ‘ए दिल ए दीवानी’ आदि गीतों वाली गुरुदत्त की फिल्म ‘बाज’ के संगीत की विफलता से तो नैयर इतने निराश हो गए कि उन्होंने गुरुदत्त के साथ काम करने से तौबा कर ली।

साल 1958 में प्रदर्शित फिल्म ‘नया दौर’ ओपी नैयर (O P Nayyar) के सिने कैरियर का अहम मोड़ साबित हुई। इस फिल्म में उनके संगीतबद्ध गीत ‘उड़े जब जब जुल्फें तेरी’ और ‘मांग के साथ तुम्हारा’ सुपरहिट साबित हुआ। साथ ही फिल्म में उन्हें अपने सिने करियर का पहला फिल्म अवॉर्ड भी मिला। इसके अलावा तेलुगू फिल्म ‘निरजन्म’ के लिए भी वह आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के पुरस्कार से नवाजे गए।

साठ के दशक में भी नैयर ने अपने जादुई संगीत से श्रोताओं को अपनी और बांधे रखा। इस बीच उन्होंने ‘फिर वही दिल लाया हूं’, ‘कश्मीर की कली’ और ‘मेरे सनम’ जैसी फिल्मों में अपने संगीत से श्रोताओं को भावविभोर किया। साल 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ में उन्होंने ‘आपकी हंसी रुख पर’ जैसे गानों में सारंगी और पियानो का इस्तेमाल करके इसे और अधिक मधुर और लोकप्रिय बना दिया।

ओपी नैयर (O P Nayyar) और निर्माता गुरुदत्त की जोड़ी साल 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘बहारें फिर भी आएंगी’ में एक बार फिर साथ में आई। हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अपना जादू नहीं दिखा पाई, लेकिन इसका संगीत श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।

सफेद वस्त्रों , धूम्रपान , शराब के शौकीन ओपी नैयर (O P Nayyar) अंदर से बहुत कोमल हृदय भी थे। संगीतकार विनोद जब बीमार थे और उनकी माली हालत ठीक नहीं थी तो उनके घर गए नैयर ने उनकी पुत्री का नृत्य सिर्फ इसलिए देखा ताकि इनाम के बहाने विनोद के परिवार की कुछ आर्थिक मदद कर सकें। पर ओपी नैयर (O P Nayyar) की एक बहुत बड़ी खामी रही है उनका अहम। इसी अहम के कारण रॉयल्टी के पैसों को लेकर हुए झगड़े ने ही बी आर चोपड़ा को ‘नया दौर’ की सफलता के बाद भी नैयर से विमुख किया और पैसे की तकरार ने ही गुरुदत्त से उनको काफी समय तक अलग रखा।

चार दशक तक भारतीय सिनेमा को अपनी मधुर संगीत लहरियों से सजाने संवारने वाले महान संगीतकार ओपी नैयर (O P Nayyar) 28 जनवरी 2007 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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