25 जून 1975: 46 साल पहले इंदिरा गांधी ने लगाई थी इमरजेंसी, यहां जानें इनसाइड स्टोरी

Emergency: आजादी के लिए मतवाले लोगों ने कभी सोचा नहीं होगा कि भारत के आजाद होने के महज दो दशक बाद ही उन्हें पाबंदियों के एक और दौर का सामना करना पड़ेगा।

Emergency

इंदिरा गांधी (फाइल फोटो)

जब आपातकाल (Emergency) का मसौदा तैयार हो रहा था तब उन नेताओं की लिस्ट भी तैयार हो रही थी जिन्हें इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद गिरफ्तार करना था। जेपी और मोरारजी को सबसे पहले हिरासत में लिया गया।

नई दिल्ली: हिंदुस्तान के इतिहास में 2 रातों का जिक्र जब भी होता है, तो हम ये सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमें एक रात पर गर्व करते हुए जश्न मनाना चाहिए या दूसरी रात के अंधेरे का मातम मनाना चाहिए।

एक वो रात थी, जब पंडित जवाहर लाल नेहरू ने देश की आजादी का ऐलान करते हुए कहा था कि मध्यरात्रि की इस बेला में जब पूरी दुनिया नींद के आगोश में सो रही है, तब हिन्दुस्तान एक नई जिंदगी और आजादी के वातावरण में अपनी आंखें खोल रहा है। इतिहास में ऐसे कम ही क्षण होते हैं। जब हम पुराने युग से नए युग में प्रवेश करते हैं। जब एक युग खत्म होता है और जब एक देश की बहुत दिनों से दबाई गई आत्मा अचानक अपनी अभिव्यक्ति पा लेती है।

और दूसरी रात वो थी जब इंदिरा गांधी ने देश की अभिव्यक्ति पर प्रहार करते हुए रेडियो पर देश को बेड़ियों में जकड़ने की घोषणा की। उन्होंने कहा था, ‘भाइयों-बहनों राष्ट्रपति जी ने आपातकाल (Emergency) की घोषणा की है, लेकिन इससे आम लोगों को भयभीत होने की कोई जरूरत नहीं है।’

आजादी के लिए मतवाले लोगों ने कभी सोचा नहीं होगा कि भारत के आजाद होने के महज दो दशक बाद ही उन्हें पाबंदियों के एक और दौर का सामना करना पड़ेगा। संविधान से प्राप्त जीवन के अधिकारों को उनसे छीन लिया जाएगा। आज इंदिरा गांधी की उस घोषणा को 46 साल बीत चुके हैं। लेकिन आज भी भारत के इतिहास में इस दिन की चर्चा निरंकुश और लोकतंत्र के सबसे काले दिन के तौर पर की जाती है।

आपात काल की घोषणा का वो दिन

25 जून साल 1971 को इंदिरा ने देश में आपातकाल (Emergency) लगाने का मन बना लिया था। मगर उस वक्त के कानून मंत्री एच आर गोखले और कैबिनेट को इसकी जानकारी नहीं थी। इंदिरा ने संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ माने जाने वाले बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर राय से मशविरा कर देश में संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत मध्यरात्रि को रेडियो पर संदेश के जरिए आपातकाल की घोषणा कर दी। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के आपातकाल के मसौदे पर साइन करते ही ये पूरे देश में लागू हो गया। और पूरे 21 महीने बाद 21 मार्च 1977 को इसे हटा लिया गया।

आपातकाल की इंसाइड स्टोरी

दरअसल साल 1971 में इंदिरा और उनके विरोधी राजनारायण चुनाव में आमने सामने थे। चुनाव में जीत के बाद वो भारत की प्रधानमंत्री बनीं। लेकिन इसके चार साल बाद राजनारायण ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में इंदिरा पर चुनावी मशीनरी का गलत प्रयोग करने, पैसे खर्च कर मतदाताओं को गुमराह करने का आरोप लगाया और कोर्ट पहुंचे। कोर्ट ने इंदिरा पर लगे सारे आरोपों को सही ठहराते हुए जस्टिस जगनमोहन लाल सिंहा ने उनकी जीत को निरस्त कर दिया और 6 साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी। मगर इंदिरा ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट मे चुनौती देने की बात कही और इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। अदालत के इस निर्णय से बौखला कर इंदिरा ने देश में आपातकाल लागू कर सभी संस्थाओं पर प्रतिबंध लगा दिया।

देश का तीसरा आपातकाल

25 जून 1975 को देश में तीसरी बार आपातकाल (Emergency) लगाया गया था। इससे पहले चीन और भारत के बीच हुए युद्ध के समय देश में पहली बार बाहरी आक्रमण के कारण आपातकाल की घोषणा की गई थी। वहीं दूसरी बार पाकिस्तान के साथ युद्ध के कारण भी साल 1971 में इस वापस से लगाया गया। हालांकि 1975 में पहली देश के भीतर आंतरिक अशांति के कारण इमरजेंसी लगाई गई थी।

देश में छपे थे केवल दो अखबार

आपातकाल के दौरान प्रेस पर अंकुश लगाने का पुरजोर प्रयास हुआ। सभी अखबारों में सरकार के सेंसरशिप अधिकारियों को बहाल कर दिया गया था और किसी भी समाचार को सरकार के आदेश के बगैर छापने की इजाजत नहीं थी। सरकार के खिलाफ छपी खबरों पर गिरफ्तारी हो सकती थी। आपातकाल के अगले दिन राजधानी दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग पर मौजूद प्रिंटिंग प्रेस की बिजली इसलिए काट दी गई ताकि कोई भी अखबार ना छप पाए। हिंदुस्तान टाइम्स और स्ट्टेसमैन अखबार के प्रिटिंग प्रेस बहादुर शाह रोड पर नहीं थे इस कारण ही इमरजेंसी के अगले दिन देश में केवल दो अखबार ही छपे।

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आपातकाल में नेताओं की गिरफ्तारी

जब आपातकाल (Emergency) का मसौदा तैयार हो रहा था तब उन नेताओं की लिस्ट भी तैयार हो रही थी जिन्हें इमरजेंसी लागू होने के तुरंत बाद गिरफ्तार करना था। जेपी और मोरारजी को सबसे पहले हिरासत में लिया गया। कहा जाता है कि उस दौर में करीब एक लाख लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था और जेलों में जगह नहीं बची थी। बताया जाता है कि इंदिरा ने तमिलनाडु के नेता कामराज, बिहार के समाजवादी नेता और जयप्रकाश नारायण के साथी गंगासरन सिन्हा और पुणे के एक समाजवादी नेता एसएम जोशी को गिरफ्तार करने पर रोक लगाई थी।

एक बार इंदिरा ने कहा था कि मैंने जब आपातकाल की घोषणा की थी उस वक्त कुत्ते भी नहीं भौंके थे। देश के इतिहास मे दर्ज इस काले अध्याय का अंत हुआ। इंदिरा अगले चुनाव में अपनी रायबरेली सीट से हार गई। उस चुनाव में उन्हें 153 सीटें मिली और बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा। वहीं इमजेंसी से पहले उन्हें 352 सीटें हासिल हुई थीं।

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