Core Battle School: LoC पर तैनाती से पहले यहां होती है जवानों की खास ट्रेनिंग

एलओसी (LoC) पर तैनाती से पहले जवानों को खास तरह की ट्रेनिंग की जरूरत होती है, जिससे वह दुश्मन की हर चाल को नाकाम कर सकें। राजौरी सेक्टर के कोर बैटल स्कूल (Core Battle School) में एलओसी पर तैनाती से पहले सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है।

Core Battle School

सीबीएस (Core Battle School) में हर साल 29-30 हजार सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है। क्योंकि यहां पर वे सैनिक आते हैं जो पहले से ही सेना का हिस्सा होते हैं, इसलिए सैनिकों को 14 दिन की एलओसी-ट्रेनिंग दी जाती है।

एलओसी (LoC) पर तैनाती से पहले जवानों को खास तरह की ट्रेनिंग की जरूरत होती है, जिससे वह दुश्मन की हर चाल को नाकाम कर सकें। राजौरी सेक्टर के कोर बैटल स्कूल (Core Battle School) में एलओसी पर तैनाती से पहले सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है। कोर बैटल स्कूल का आदर्श वाक्य है- ‘वी ट्रेन टू विन’ यानी हम जीतने के लिए ट्रेनिंग देते हैं। सीबीएस (Core Battle School) जम्मू के पास नगरोट स्थित 16वीं कोर यानी वाइट नाइट कोर का एक बेहद ही महत्वपूर्ण ट्रेनिंग सेंटर है।

16वीं कोर के अंतर्गत आने वाले अखनूर, राजौरी, सुंदरबनी, नौसेरा, मेंढर, कृष्णा घाटी से लेकर पूंछ तक जितने भी सैनिक एलओसी या फिर हिंटरलैंड में तैनात होते हैं उनकी पहले यहां ट्रेनिंग होती है। यहां आईईडी ब्लास्ट से लेकर घुसपैठ रोकने और आतंकियों को ढेर करने की ट्रेनिंग जाती है।

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कोर बैटल स्कूल का मकसद सैनिकों को फिजीकिल, ऑपरेशनल और साईक्लोजिकल ट्रेनिंग देना है। साईक्लोजिकल ट्रेनिंग देना इसलिए बेहद जरूरी है क्योंकि पाकिस्तान के युद्धविराम उल्लंघन और आतंकियों की घुसपैठ रोकने के लिए सैनिकों को शारारिक तौर से मजबूत होने के साथ साथ मानसिक तौर से भी मजबूत होना बेहद जरूरी है।

जानकारी के मुताबिक, सीबीएस (Core Battle School) में हर साल 29-30 हजार सैनिकों को ट्रेनिंग दी जाती है। क्योंकि यहां पर वे सैनिक आते हैं जो पहले से ही सेना का हिस्सा होते हैं, इसलिए सैनिकों को 14 दिन की एलओसी-ट्रेनिंग दी जाती है। इन 14 दिनों में आईईडी (IED) ट्रेनिंग के अलावा आतंकियों की घुसपैठ रोकने की ट्रेनिंग दी जाती है।

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साथ ही अगर आतंकी नियंत्रण रेखा यानी एलओसी पार कर भारतीय सीमा में दाखिल हो जाते हैं तो फिर जंगल में कैसे उन्हें न्यूट्रिलाइज किया जा सकता है, उसका भी प्रशिक्षण होता है। अगर आतंकी जंगल का एरिया पारकर शहरी इलाके में घुसने में कामयाब हो जाता है तो उसके लिए अर्बन-शूटिंग फायरिंग यानी हाउस-इंटरवेंशन ट्रेनिंग दी जाती है। इस ट्रेनिंग में किसी घर में छिपे आतंकियों को घेरकर कै‌से खात्मा किया जाता है, इसका प्रशिक्षण दिया जाता है।

सेना के अधिकारियों के मुताबिक, हाल के दिनों में एलओसी पर आईईडी (IED) की कई घटनाएं सामने आई हैं। पाकिस्तानी ‌सेना की बैट यानी बॉर्डर एक्शन टीम चोरी छिपे एलओसी पार कर भारतीय सेना की चौकियों के करीब या फिर पैट्रोलिंग के रूट पर आईईडी को प्लांट कर देती है। इसलिए एलओसी पर तैनाती से पहले भारतीय सैनिकों को आईईडी ब्लास्ट के खतरों से निपटने की खास ट्रेनिंग दी जाती है।

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सैनिकों को यहां अलग-अलग तरह की आईईडी से वाकिफ कराया जाता है। ये आईईडी (IED) किसी कुत्तै जैसे जानवर से लेकर थर्मस और एम्युनिशेन बॉक्स तक में हो सकती है। इसके अलावा पैट्रौलिंग रूट पर बेहद ही बारीक तार से बांधकर फिट कर दी जाती है। ऐसे में सैनिकों को सिखाया जाता है कि पैट्रोलिंग के वक्त किसी भी अनजान वस्तु को ना छुएं। इसके अलावा रास्ते में फूंक-फूंककर कदम रखें।

आतंकी किसी आईईडी (IED) से सेना के काफिले इत्यादि को निशाना ना बना सकें, इसलिए आईईडी को डिटेक्ट करने के लिए खास उपकरण दिए जाते हैं। ये उपकरण किसी भी आईईडी को डिटेक्ट करते ही एक्टिवेट हो जाते हैं और अलार्म बज जाता है। अलार्म बजते ही सैनिक अलर्ट हो जाते हैं।

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इसके अलावा भारतीय सेना (Indian Army) ने आईईडी को जाम करने के लिए एक खास जैमर तैयार किया है। इस जैमर का नाम है, ‘एशी मार्क-3’। क्योंकि यह व्हीकल-माउंटेड है, इसलिए इसे गाड़ी में रखकर काफिले के साथ चलाया जा सकता है। एशी मार्क-3 की रेंज में जो भी आईईडी होगी वो जाम हो सकती है।

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