रोहिंग्या शरणार्थियों के जम्मू-कश्मीर पहुंचने को लेकर बड़ा खुलासा, पाकिस्तान से मिल रहा फंड!

रोहिंग्या (Rohingya) शरणार्थियों के जम्मू-कश्मीर तक पहुंचने की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, म्यांमार में नस्ली भेदभाव और हिंसा शुरू होने के काफी पहले से ही रोहिंग्या को जम्मू में लाकर बसाने का सिलसिला शुरू हो गया था।

Rohingya

रोहिंग्या (Rohingya) को लाकर बसाने में लगे जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) के एक एनजीओ को बड़े पैमाने पर पाकिस्तान (Pakistna), यूएई (UAE) और सऊदी अरब से फंड मिलने के संकेत मिले हैं।

रोहिंग्या (Rohingya) शरणार्थियों के जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) तक पहुंचने की जांच में चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, म्यांमार (Myanmar) में नस्ली भेदभाव और हिंसा शुरू होने के काफी पहले से ही रोहिंग्या को जम्मू (Jammu) में लाकर बसाने का सिलसिला शुरू हो गया था।

इनमें दो दर्जन से अधिक रोहिंग्या परिवार ऐसे मिले हैं, जो 1999 में फारूक अब्दुल्ला की सरकार के दौरान ही जम्मू आकर बस गए थे। हालांकि, म्यांमार से रोहिंग्या का बड़े पैमाने पर पलायन 2015 में शुरू हुआ था।

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ऐसा ही एक परिवार सईद हुसैन का है। फिलहाल 258, बीसी रोड, डोगरा हॉल पर रहने वाला सईद हुसैन अब 66 साल का हो चुका है और 1999 से जम्मू में रह रहा है। उसके नाम पर राशन कार्ड और आधार कार्ड भी बना हुआ है। सईद हुसैन के साथ उसकी पत्नी, चार बेटे और बहू भी हैं।

इसके अलावा उसकी एक बेटी जासमीन का विवाह 2013 में बारामूला के नैदखा सुल्तानपुर के इंतियाज अहमद नाम के स्थानीय युवक के साथ हुआ था। राशन कार्ड, आधार कार्ड और शादी के माध्यम से सईद हुसैन एक तरह से जम्मू-कश्मीर का मूल निवासी बन गया था। पिछले दिनों रोहिंग्या (Rohingya) शरणार्थियों के खिलाफ शुरू हुई जांच के बाद इसका पता चला।

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सुरक्षा एजेंसी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी को अनुसार, अब यह साबित हो गया है कि जम्मू में रोहिंग्या शरणार्थियों के पहुंचने के पीछे म्यांमार में नस्ली हिंसा असली वजह नहीं है। उन्हें एक बड़ी साजिश के तहत लंबे समय से म्यांमार से जम्मू में लाकर बसाया जाता रहा है।

उनके अनुसार, रोहिंग्या (Rohingya) को लाकर बसाने में लगे जम्मू-कश्मीर के एक एनजीओ को बड़े पैमाने पर पाकिस्तान, यूएई और सऊदी अरब से फंड मिलने के संकेत मिले हैं। उन्होंने कहा कि साल 1999-2000 में जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था। ऐसे में सामान्य लोग वहां जाने से डरते थे। वहीं, रोहिंग्या परिवार हजारों किलोमीटर की यात्रा कर वहां बसने लगे थे। इसके पीछे की साजिश की जांच की जा रही है।

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सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी के अनुसार, पूछताछ के दौरान बहुत सारे रोहिंग्याओं (Rohingya) ने खुद ही 1999 से ही जम्मू में रहने की बात स्वीकार की है। जांच का दायरा बढ़ने के साथ-साथ उनकी संख्या बढ़ने की आशंका है। इतने लंबे समय से रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थियों ने स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से आधार कार्ड और राशन कार्ड भी बनवा लिया था।

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