छत्तीसगढ़: नक्सलियों ने ध्वस्त कर दिए थे भवन, बीजापुर के इस नक्सल प्रभावित इलाके में डेढ़ दशक बाद खुला स्कूल

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के धुर नक्सल प्रभावित (Naxal Area) बीजापुर के गोरना में करीब डेढ़ दशक बाद यहां के बच्चों ने प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू की है।

Naxal Areas

File Photo

नक्सलियों (Naxalites) की दहशत की वजह से यहां के स्कूल बंद हो चुके थे। लेकिन जिला प्रशासन की कोशिशों से एक बार फिर इस नक्सल प्रभावित इलाके (Naxal Area) के बच्चे स्कूलों में जाने लगे हैं।

छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के धुर नक्सल प्रभावित (Naxal Area) बीजापुर के गोरना में करीब डेढ़ दशक बाद यहां के बच्चों ने प्राइमरी स्कूल में पढ़ाई शुरू की है। नक्सलियों (Naxalites) की दहशत की वजह से यहां के स्कूल बंद हो चुके थे। लेकिन जिला प्रशासन की कोशिशों से एक बार फिर इस नक्सल प्रभावित इलाके (Naxal Area) के बच्चे स्कूलों में जाने लगे हैं।

यह इस इलाके में एक बड़े बदलाव की शुरुआत है। बता दें कि साल 2005 में दक्षिण बस्तर में सलवा जुड़ूम शुरू हुआ तो सुकमा, बीजापुर व दंतेवाड़ा जिलों में नक्सलियों ने स्कूलों को निशाना बनाया। उन्होंने इन जिलों के कुल 186 स्कूलों को ध्वस्त कर दिया। नक्सलियों को डर था कि गांव में पक्के भवन स्कूलों के ही हैं, अगर फोर्स आई तो स्कूल भवनों में बैरक बना लेगी।

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उनकी इस नापाक हरकत का खामियाजा आदिवासी बच्चों की पूरी एक पीढ़ी ने उठाया। साल 2018 में प्रदेश में डेढ़ दशक से बंद पड़े नक्सलगढ़ के स्कूलों को खोलने की योजना बनाई। गांवों में नक्सलियों द्वारा ध्वस्त किए गए भवनों के आसपास कच्ची झोपड़ियों में नए स्कूल शुरू कराए गए। ग्रामीणों ने खुद ही अपने बच्चों के लिए स्कूल बना दिए।

प्रशासन ने जिला खनिज न्यास निधि मद (डीएमएफटी) से गांव के स्थानीय पढ़े-लिखे लड़कों को नियुक्त कर दिया। इतना ही नहीं, प्राइमरी का पाठ्यक्रम भी गोंडी में कर दिया ताकि बच्चे आसानी से किताबों से जुड़ पाएं। हालांकि, पढ़ाई शुरू होने से पहले कोरोना लॉकडाउन लग गया और स्कूल शुरू नहीं हो पाया।

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इस साल कलेक्टर रितेश अग्रवाल की पहल पर डीएमएफटी मद से राशि जारी की गई और गोरना में स्कूल का शेड तैयार कराया गया। 2 अगस्त को पाठशाला प्रवेशोत्सव के मौके पर सालों बाद गोरना में स्कूल की घंटी बजी। डेढ़ दशक के बाद स्कूल शुरू करने की योजना बनी तो प्रशासन ने पहले ग्रामीणों से ही संपर्क किया।

ग्रामीण तो इस बात से ही उत्साहित थे कि गांव में दोबारा स्कूल बनेगा। वे खुद ही स्कूल बनाने को तैयार थे पर प्रशासन ने राशि स्वीकृत कर दी। अब स्कूल में पढ़ाई की निगरानी ग्रामीण खुद ही कर रहे हैं।

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मिड डे मील मिल रहा या नहीं, क्या मिल रहा, बच्चों ने खाना खाया या नहीं यह देखने के लिए ग्रामीण खुद स्कूल पहुंच रहे हैं। माएं बच्चों को तैयार कर सुबह स्कूल छोड़ने आ रही हैं। स्कूल खुलने से गांव का माहौल सकारात्मक हो गया है। नक्सल प्रभावित इस गांव में यह डेढ़ दशक के बाद एक बड़ा बदलाव है।

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