छत्तीसगढ़: रमन्ना की मौत के बाद टूटी नक्सलियों की रीढ़, पढ़िए किस जिले में कितनी रह गई इनकी संख्या

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 13 जिलों में नक्सलवाद (Naxalism) की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। पिछले पांच सालों में कई बड़े नक्सली नेता या तो मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया।

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नक्सलवाद के खात्मे के लिए राज्य सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी काफी सख्त रवैया अपना रही है।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 13 जिलों में नक्सलवाद (Naxalism) की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। पिछले पांच सालों में कई बड़े नक्सली नेता या तो मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। नक्सली (Naxal) संगठनों में आलम यह है कि उन्हें नए लड़ाके नहीं मिल रहे हैं।

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सांकेतिक तस्वीर।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित 13 जिलों में नक्सलवाद (Naxalism) की पकड़ लगातार कमजोर हो रही है। पिछले पांच सालों में कई बड़े नक्सली नेता या तो मारे गए या गिरफ्तार कर लिए गए या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। इसके अलावा दिसंबर, 2019 में हुई सबसे बड़े नक्सली नेताओं में से एक रमन्ना की मौत से नक्सलियों की रीढ़ टूट गई है। 

नक्सली संगठनों को नहीं मिल रहे नए लड़ाके, कैडरों की संख्या हुई आधी

नक्सली (Naxal) संगठनों में आलम यह है कि उन्हें नए लड़ाके नहीं मिल रहे हैं। जिसके कारण प्रदेश में नक्सली कैडरों की संख्या अब आधी से भी कम रह गई है। स्थानीय युवाओं में नक्सलवाद (Naxalism) के प्रति बढ़ रही उदासीनता के कारण नक्सली लड़ाकों और उनके मिलिशिया कैडरों की संख्या पिछले 5-7 सालों में आधी रह गई है। जानकारी के अनुसार, नक्सली लड़ाकों की संख्या करीब 6000 से घटकर अब सिर्फ 3000 रह गई है। इन लड़ाकों में 1000-1200 सशस्त्र कैडर हैं। ये वो नक्सली हैं, जो सुरक्षाबलों से सीधी लड़ाई लड़ते हैं। इसके अलावा, 1800 से 2000 मिलिशिया सदस्य हैं। ये मिलिशिया सदस्य आवश्यकता पड़ने पर सशस्त्र लड़ाकों की जगह लेते हैं और सुरक्षाबलों के खिलाफ हमलों में उनकी पूरी मदद करते हैं।

सुकमा में सक्रिय हैं सबसे अधिक नक्सली

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित जिलों में एक सुकमा में सबसे अधिक 700 सशस्त्र और मिलिशिया नक्सली लड़ाके सक्रिय हैं। इसी तरह, करीब 600 नक्सली बीजापुर जिले में, 600 नारायणपुर में और 200-250 नक्सली लड़ाके दंतेवाड़ा जिले में सक्रिय हैं। इसके अलावा, बस्तर, कांकेर, कोंडागांव, राजनांदगांव, कबीरधाम, धमतरी, गरियाबंद, महासमुंद और बलरामपुर में भी नक्सली संगठनों के मिलिशिया सदस्य और सशस्त्र लड़ाके सक्रिय हैं।

क्या है कैडरों की गिरती संख्या की वजह

आला अफसरों के मुताबिक, नक्सली संगठनों में कैडरों की गिरती संख्या का मुख्य कारण बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की तैनाती है। इसके साथ-साथ, नक्सलवाद (Naxalism) के खिलाफ सुरक्षाबलों द्वारा हर स्तर पर लगातार की जा कार्रवाई और लोगों का नक्सली विचारधारा से मोहभंग होना भी नक्सली संगठनों में कैडरों की गिरती संख्या की वजह है। सुरक्षा अधिकारियों का मानना है कि नक्सलियों की संख्या में यदि इसी रफ्तार से गिरावट होती रही, तो उनकी संगठनात्मक और मिलिशिया क्षमता भी काफी कमजोर हो जाएगी।

जल्द ही आखिरी दिन गिनता नजर आएगा नक्सलवाद

राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 3 सालों में नक्सली हमलों में 44 प्रतिशत की कमी आई है। साल, 2017 में 250 नक्सली हमलों के मुकाबले साल 2019 में 140 हमले हुए। वहीं, दूसरी ओर इन तीन सालों में करीब 250 नक्सली सुरक्षबलों के हाथों मारे गए, 2500 से ज्यादा गिरफ्तार किए गए और 1100 से अधिक नक्सलियों ने सुरक्षबलों के सामने आत्मसमर्पण किया। ये आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि राज्य में चलाए जा रहे नक्सल विरोधी अभियानों से नक्सलवाद (Naxalism) की नकेल लगातार कसती जा रही है। आने वाले समय में नक्सलवाद में तेजी से गिरावट आएगी और नक्सलवाद (Naxalism) अपने आखिरी दिन गिनता नजर आएगा।

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