दंतेवाड़ा: गांव वालों के साथ रहकर नक्सलियों के लिए करते थे काम, पहचान उजागर होते ही इनामी मददगारों ने कर दिया सरेंडर

दंतेवाड़ा में पुलिस के सामने 7 ऐसे लोगों ने सरेंडर किया है जो अपनी पहचान छिपा कर नक्सलियों की मदद किया करते थे। खास बात यह भी है कि यह सभी लोग गांव वालों के साथ मिलजुल कर रहते थे लेकिन किसी को उनकी करतूतों का पता तक नहीं चलता था।

Naxals, Naxals Surrender

दंतेवाड़ा में 7 नक्सलियों ने किया सरेंडर।

दंतेवाड़ा में पुलिस के सामने 7 ऐसे लोगों ने सरेंडर किया है जो अपनी पहचान छिपा कर नक्सलियों की मदद किया करते थे। खास बात यह भी है कि यह सभी लोग गांव वालों के साथ मिलजुल कर रहते थे लेकिन किसी को उनकी करतूतों का पता तक नहीं चलता था। इन लोगों ने सरेंडर क्यों किया? इसकी कहानी हम आपको आगे बताएंगे लेकिन सबसे पहले आपको बता दें कि सरेंडर करने वाले लोगों में कुछ महिलाएं भी शामिल हैं जिन पर इनाम भी घोषित था।

इनामी नक्सली मददगार का सरेंडर: जिन 7 लोगों ने पुलिस कैंप में आकर सरेंडर किया उनमें 2 लाख की इनामी महिला नक्सली मददगार हड़में मंडावी और 1 लाख के इनामी लिंगा मंडावी शामिल हैं। इनके साथ लखमा मंडावी, लखन मंडावी, सोना मंडावी, गगन मंडावी, सुरेश मंडावी ने भी प्रशासन के सामने सरेंडर किया है। यह सभी कुआकोंड इलाके के रहने वाले हैं।

इस तरह करते थे नक्सलियों की मदद: नक्सलियों के यह मददगार अपने साथियों के लिए कई बड़े काम किया करते थे। मसलन- वसूली, खाने का बंदोबस्त, बड़े नक्सल लीडर की बैठकों के लिए भीड़ जमा करना, पुलिस के बारे में नक्सलियों को जानकारी देना, सड़कें काटना, आईईडी लगाने जैसी हरकतें शामिल हैं।

रंग ला रहा प्रशासन का अभियान: दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव और सीआरपीएफ के अधिकारियों की मौजूदगी में यह सरेंडर हुआ। पुलिस ने लोन वर्राटू अभियान चला रखा है। स्थानीय बोली के इस शब्द का मतलब होता है ‘घर वापस आइए’…इसी सप्ताह 18 नक्सलियों ने सरेंडर किया है। इस अभियान के तहत पुलिस नक्सलियों के परिजन, पहले सरेंडर कर चुके नक्सलियों से संपर्क कर उनके साथियों से नक्सलवाद छोड़ने की अपील करवा रही है।

इस वजह से किया सरेंडर: स्थानीय बोली में सरेंडर करने वाले एक इनामी नक्सल मददगार ने बताया कि ‘हमारे बारे में गांव के लोग यह जानते नहीं थे, कि यह नक्सलियों के लिए काम करते थे। मगर नाम और तस्वीर के पोस्टर गांव-गांव में लगने लगे तो लोग हमने नफरत करने लगे। इस लिए हमने यह काम अब छोड़ने का फैसला किया है।’

आपको बता दें कि हाल ही में नक्सलियों के मददगारों का पोस्टर इलाके के गांवों में लगाया गया है। इन पोस्टरों के जरिए मददगारों का चेहरा उजागर हुआ है। जिसके बाद अब इन मददगारों के पास छिपने के ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं।

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