नक्सल प्रभावित बस्तर (Bastar) में तैनात दो बहादुर युवा अधिकारी बन गए हैं मिसाल

नक्सल इलाके में काम कर रहे दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव और बस्तर (Bastar) के सब डिविजनल पुलिस ऑफीसर (एसडीओपी) डॉ. यूलंडन यार्क अपनी मेडिकल शिक्षा का इस्तेमाल ग्रामीणों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कर रहे हैं।

Bastar

दो जांबाज पुलिस अधिकारी नक्सलियों पर नकेल कसने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।

एक हाथ में एके-47 और दूसरे में दवाओं का थैला, छत्तीसगढ़ के बस्तर में तैनात दो युवा अधिकारी एक मिसाल बन गए हैं। दरअसल, नक्सल इलाके में काम कर रहे दंतेवाड़ा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव और बस्तर (Bastar) के सब डिविजनल पुलिस ऑफिसर (एसडीओपी) डॉ. यूलंडन यार्क अपनी मेडिकल शिक्षा का इस्तेमाल ग्रामीणों के स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए कर रहे हैं।

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दो जांबाज पुलिस अधिकारी नक्सलियों पर नकेल कसने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित बस्तर (Bastar) इलाके में आए दिन होने वाली मुठभेड़ों में नक्सलियों का खात्मा कर पुलिस के जवान यहां शांति कायम करने के प्रयास में जुटे हैं। बस्तर (Bastar) के अतिसंवेदनशील इलाके में सुरक्षा की चुनौती के साथ ही चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाना भी बड़ी चुनौती है। इस इलाके में दूर-दूर तक अस्पताल नहीं हैं। ऐसे में यहां दो जांबाज पुलिस अधिकारी नक्सलियों पर नकेल कसने के साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं की जिम्मेदारी भी संभाल रहे हैं। नक्सल फ्रंट पर काम कर रहे एसपी दंतेवाड़ा डॉ. अभिषेक पल्लव और बस्तर (Bastar) में केशलूर एसडीओपी डॉ. यूलंडन यार्क अपनी मेडिकल शिक्षा का इस्तेमाल ग्रामीणों की सेहत को बेहतर करने में कर रहे हैं।

डॉ. पल्लव दंतेवाड़ा में नशामुक्ति अभियान चला रहे हैं। वे पुलिस के जवानों समेत ग्रामीणों के लिए 100 हेल्थ कैंप लगाकर करीब 10 हजार लोगों का उपचार कर चुके हैं। वहीं पुलिस जवानों समेत तीन हजार युवाओं को नशा से मुक्ति दिला चुके हैं। दूसरी तरफ, डॉ. यूलंडन दरभा ब्लॉक के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सर्च ऑपरेशन के दौरान दवाओं का थैला साथ लेकर चलते हैं। डॉ. अभिषेक पल्लव 2013 बैच के आइपीएस हैं। उन्होंने दिल्ली में एमबीबीएस किया। बाद में मनोरोग में एमडी की डिग्री हासिल की। उसके बाद यूपीएससी परीक्षा पास कर आइपीएस बने। दो साल पहले दंतेवाड़ा में उनकी नियुक्ति हुई।

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डॉ. पल्लव ने देखा कि अधिकतर जवान कड़ी ड्यूटी और पारिवारिक तनाव से ग्रस्त होकर शराब के व्यसनी हैं। उन्होंने पुलिस लाइन में जवानों के लिए कैंप शुरू किया। मानसिक रूप से परेशान जवानों की वे नियमित काउंसिलिंग करते हैं। इसके चलते दंतेवाड़ा जिले में बीते दो साल में एक भी जवान की खुदकुशी की खबर नहीं आई। उनके द्वारा शराब छुड़वाने की खबर फैलते ही आम ग्रामीण युवा भी उनके पास पहुंचने लगे। वर्तमान में उनका सरकारी बंगला ही उनका क्लीनिक बन गया है। सुदूर गांवों में मेडिकल कैंप लगाकर वे न केवल मानसिक उपचार करते हैं, बल्कि सामान्य रोगों की दवाएं भी ग्रामीणों को मुहैया करवाते हैं।

सप्ताह में तीन दिन जवानों की निजी समस्याएं सुनते हैं। उनकी पत्नी डॉ. यशा पल्लव चर्म रोग विशेषज्ञ हैं। वे भी इस मुहिम में योगदान देती हैं। साथ ही जिला अस्पताल में उपचार भी करती हैं। बस्तर (Bastar) जिले के केशलूर एसडीओपी के रूप में तैनात 2014 बैच के सीपीएस डॉ. यूलंडन यार्क दरभा इलाके के ग्रामीणों के बीच डॉक्टर साहब के नाम से जाने जाते हैं। उन्होंने बिलासपुर से एमबीबीएस की डिग्री ली है। इसके बाद वे पीएससी उत्तीर्ण कर सीपीएस बने। ढाई साल पहले उनकी नियुक्ति एसडीओपी के रूप में बस्तर में हुई। नक्सल प्रभावित क्षेत्र दरभा में तैनाती के दौरान उन्होंने देखा कि ग्रामीणों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं।

उन्होंने अपने शिक्षा का फायदा ग्रामीणों को उपलब्ध करवाने की ठानी। डॉ. यूलंडन यार्क जवानों के साथ सर्च ऑपरेशन के दौरान एके- 47 के साथ दवाओं का थैला साथ लेकर चलते हैं। दरभा ब्लॉक मलेरिया के चलते संवेदनशील माना जाता है। वह सुदूर गांवों भडरीमऊ, कोलेंग, चांदामेटा, बिसपुर आदि में बुखार व अन्य सामान्य रोगों के मरीजों को आवश्यकतानुसार दवाएं प्रदान करते हैं। वहीं गंभीर मामलों को जिला अस्पताल भेजने की व्यवस्था करते हैं। ये दोनों युवा अफसर आज के युवाओं के लिए प्रेरणा हैं।

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