कैप्टन विक्रम बतरा (फाइल फोटो)
कारगिल में शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप नाम मिला। आज भी ये चोटी कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) के अदम्य साहस और वीरता की याद दिलाती है।
नई दिल्ली: वो 7 जुलाई साल 1999 का दिन था, जब हिमाचल प्रदेश के लाल और परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा देश की रक्षा करते हुए कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे।
विक्रम बत्रा का जन्म 9 सितंबर 1974 को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर में घुग्गर गांव में हुआ था। अपनी बहादुरी की वजह से वह शेरशाह के नाम से भी जाने गए।
कारगिल युद्ध में शहादत के बाद प्वाइंट 4875 चोटी को बत्रा टॉप नाम दिया गया। आज भी ये चोटी कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) के अदम्य साहस और वीरता की याद दिलाती है।
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शहीद विक्रम बत्रा ने साल 1996 में इंडियन मिलिट्री एकेडमी में दाखिला लिया था। 6 दिसंबर 1997 को वह बतौर लेफ्टिनेंट जम्मू और कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन में शामिल हुए।
20 जून 1999 को उन्होंने कारगिल की प्वाइंट 5140 चोटी से दुश्मनों को खदेड़ने में कामयाबी पाई थी। इसके बाद उनकी वीरता और साहस को ध्यान में रखते हुए कमांडिंग ऑफिसर लेफ्टिनेंट कर्नल वाय.के. जोशी ने उन्हें शेरशाह उपनाम दिया था।
युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा गंभीर रूप से घायल हुए थे। उन्होंने आगे बढ़कर दुश्मन की गोलियों का सामना किया और वीरगति प्राप्त की। उनके आखिरी शब्द थे ‘जय माता दी’।
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