कैप्टन विक्रम बत्रा जयंती: ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान दुश्मनों को चटाई थी धूल, साथी के लिए दी जान

भारतीय सेना के परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की शहादत हमेशा लोगों के जेहन में रहेगी। कारगिल के युद्ध में अपने साथी की जान बचाकर वे खुद शहीद हो गए थे।

Captain Vikram Batra

Captain Vikram Batra Birth AnniversaryII परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा जयंती

कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का नाम आते ही याद आता है कारगिल युद्ध, ‘ऑपरेशन विजय’ और याद आती हैं युद्ध भूमि में जांबाजी की कई कहानियां…। कारगिल की लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने दुश्मन को भागने पर मजबूर कर दिया था। यह कहानी है कारगिल युद्ध में ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान दुश्मन सैनिकों के छक्के छुड़ाने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा की, जिन्होंने अंतिम सांस तक भारत माता की रक्षा के लिए लड़ाई की। कैप्टन विक्रम बत्रा का जन्म  9 सितंबर 1974 को पालमपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम जी.एल. बत्रा और माता का नाम कमलकांता बत्रा था। विक्रम बत्रा अपने मां-पिता की जुड़वां संतान थे। कमलकांता की रामायण में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव-कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल।

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24 साल की उम्र में हुए देश पर कुर्बान:

भारतीय सेना के परमवीर कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की शहादत हमेशा लोगों के जेहन में रहेगी। कारगिल के युद्ध में अपने साथी की जान बचाकर वे खुद शहीद हो गए थे। 24 साल की उम्र में 7 जुलाई, 1999 को रणभूमि में अपनी जान गंवाने वाले विक्रम ने वीरता और देश प्रेम की अद्भुत मिसाल पेश की है।

शुरू से ही जाना चाहते थे सेना में: कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) का जन्म 9 सितंबर, 1974 को हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में हुआ था। हिमाचल प्रदेश में कक्षा दो तक की पढ़ाई करने के बाद वह चंडीगढ़ चले गए। इसके बाद यहीं पर डीएवी कॉलेज चंडीगढ़ में विज्ञान विषय से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। इस दौरान वह एनसीसी से जुड़े रहे। विक्रम शुरू से ही सेना में जाना चाहते थे और देश के लिए कुछ करने की चाहत रखते थे। उन्होंने 1996 में भारतीय सेना की संयुक्त रक्षा परीक्षा पास की और सेना में कमिशन लेकर लेफ्टिनेंट बने।

दी गई थी प्वाइंट 5140 को कैप्चर करने की जिम्मेदारी:

विक्रम (Captain Vikram Batra) काफी हिम्मती थे और काफी सूझबूझ से काम लेते थे। जब 1999 में कारगिल का युद्ध छिड़ गया तो इन्हें वहां भेजा गया। ‘ऑपरेशन विजय’ के दौरान 20 जून, 1999 को डेल्टा कंपनी कमांडर कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) को प्वाइंट 5140 को कैप्चर करने की जिम्मेदारी दी गई। कैप्टन विक्रम बत्रा अपनी कंपनी के साथ घूमकर पूर्व दिशा से इस क्षेत्र की तरफ बढ़े और बिना शत्रु को भनक लगे उनकी रेंज तक पहुंच गए और प्वाइंट 5140 पर तिरंगा लहराया।

‘ये दिल मांगे मोर’:

7 जुलाई, 1999 को प्वाइंट 4875 के पास एक ऑपरेशन में कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की कंपनी को ऊंचाई पर एक ऐसी संकरी चोटी से दुश्मन के सफाए का कार्य सौंपा गया जिसके दोनों ओर बड़ी ढलान थी और रास्ते में शत्रु ने भारी संख्या में नाकाबंदी की हुई थी। कैप्टन ने अपने सैनिकों से दुश्मन के ठिकानों पर सीधे आक्रमण के लिए कहा। सबसे आगे रहकर दस्ते का नेतृत्व करते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने निडरता से शत्रु पर धावा बोला और आमने-सामने की लड़ाई में 4 दुशमन सैनिकों को मार डाला। जब भी उनसे अपडेट मांगा जाता था तो वे कहते थे- ‘ये दिल मांगे मोर…’। यह उनका कोड था। वह अपने साथियों को भी इसी नारे से हिम्मत बंधाते थे।

मुश्किल था टारगेट:

प्वाइंट 4875 का टारगेट काफी मुश्किल होने के बावजूद कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) ने दुश्मनों के ठिकानों पर हमला करने का निर्णय लिया और आमने-सामने की लड़ाई में दुश्मन के सैनिकों का सफाया करते रहे। कैप्टन अपने साथी सैनिकों के साथ पत्थरों का कवर ले कर दुश्मन पर फायर कर रहे थे। तभी उनके एक साथी सिपाही को गोली लगी और वह उनके सामने ही गिर गया। वह सिपाही खुले में पड़ा हुआ था।

जब विक्रम (Captain Vikram Batra) नाराज हो गए:

विक्रम और उनके एक और साथी रघुनाथ चट्टानों के पीछे थे। विक्रम ने रघुनाथ से कहा कि हम अपने घायल साथी को सुरक्षित स्थान पर लाएंगे। रघुनाथ ने उनसे कहा कि ऐसा करने से वे भी खतरे में पड़ जाएंगे। यह सुनते ही विक्रम बहुत नाराज हो गए और बोले, “क्या आप डरते हैं?” रघुनाथ ने जवाब दिया, “नहीं, मैं डरता नहीं हूं। मैं तो बस आपको आगाह कर रहा हूं।” विक्रम ने कहा, “हम अपने सिपाही को इस तरह अकेले नहीं छोड़ सकते।”

गोली लगने के बावजूद डटे रहे कैप्टन: 

जैसे ही रघुनाथ चट्टान के बाहर कदम रखने वाले थे, विक्रम ने उन्हें रोक कर कहा, “आपके तो परिवार और बच्चे हैं। मेरी अभी शादी नहीं हुई है। सिर की तरफ से मैं उठाउंगा। आप पैर की तरफ से पकड़िएगा।” यह कह कर विक्रम आगे चले गए और जैसे ही वो अपने घायल साथी सैनिक को उठा रहे थे, उनको गोली लगी और वो वहीं गिर गए। फिर भी अपने साथी सैनिक को बचाने के लिए वो रेंगकर आगे बढ़ते रहे।

शहीद होने से पहले पूरी की अपनी जिम्मेदारी:

अपनी जान की परवाह किए बिना उन्होंने आगे रहकर अपने जवानों को हमले के लिए हिम्मत दिया। इस युद्ध में यह जांबाज वीरगति को प्राप्त हुआ। कारगिल की लड़ाई में कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) की बहादुरी और देश के लिए उनके बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत भारतीय सेना के सर्वोच्च वीरता सम्मान ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

कैप्टन विक्रम बत्रा (Captain Vikram Batra) पर बॉलीवुड में भी फिल्में बनीं हैं। फिल्ममेकर करण जौहर ने कारगिल वॉर के हीरो कैप्टन विक्रम बत्रा की बायोपिक ‘शेरशाह’ बनाई है। दरअसल, युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा का कोड नेम था ‘शेरशाह’। इस फिल्म में सिद्धार्थ मल्होत्रा कैप्टन विक्रम बत्रा के किरदार में हैं।

इससे पहले, साल 2003 में करगिल युद्ध पर फिल्म बनी थी, उसका नाम था ‘एलओसी कारगिल’। इसमें कैप्टन विक्रम बत्रा का रोल अभिषेक बच्चन ने किया था।

यहां देखें वीडियो-

 

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