Budget 2020: बजट से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण शब्दों के बारे में यहां जानें विस्तार से…

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वित्त वर्ष 2020-21 के लिए आम बजट (Budget) एक फरवरी 2020 को पेश होगा। वहीं आर्थिक सर्वे 31 जनवरी को आया है। इस बजट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। लेकिन, बजट से पहले इससे संबंधित कुछ शब्दों को समझना जरूरी है जिससे बजट के बारे में आसानी से समझा जा सके।

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बजट से पहले इससे संबंधित कुछ शब्दों को समझना जरूरी है।

Budget 2020: वित्त वर्ष 2020-21 के लिए आम बजट एक फरवरी 2020 को पेश होगा। वहीं आर्थिक सर्वे 31 जनवरी को आया है। इस बजट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। लेकिन, बजट से पहले इससे संबंधित कुछ शब्दों को समझना जरूरी है जिससे बजट आसानी से समझा जा सके।

वित्तीय वर्ष

भारत में वित्तीय वर्ष की शुरुआत एक अप्रैल से होती है जो अगले साल के 31 मार्च तक चलता है। इस साल का बजट (Budget) वित्तीय वर्ष 2021 के लिए होगा जो एक अप्रैल 2020 से 31 मार्च 2021 तक के लिए होगा।

विनिवेश

अगर सरकार किसी पब्लिक सेक्टर कंपनी में अपनी हिस्सेदारी को निजी क्षेत्र में बेच देती है, तो उसे विनिवेश कहा जाता है। सरकार द्वारा यह हिस्सेदारी शेयरों के जरिए बेची जाती है। यह हिस्सेदारी किसी एक व्यक्ति या फिर किसी निजी कंपनी को बेची जा सकती है।

बांड

जब केंद्र सरकार के पास पैसों की कमी हो जाती है, तो वो बाजार से पैसा जुटाने के लिए बांड जारी करती है। यह एक तरह का कर्ज होता है, जिसकी अदायगी पैसा मिलने बाद सरकार द्वारा एक तय समय के अंदर की जाती है। बांड को कर्ज का सर्टिफिकेट भी कहते हैं।

बैलेंस ऑफ पेमेंट और बैलेंस बजट

केंद्र सरकार का राज्य सरकारों व विश्व के अन्य देशों में मौजूद सरकारों द्वारा जो भी वित्तीय लेनदेन होता है, उसे बजट (Budget) की भाषा में बैलेंस ऑफ पेमेंट कहा जाता है। बैलेंस बजट तब होता है जब सरकार का खर्चा और कमाई दोनों ही बराबर होता है।

कस्टम ड्यूटी और एक्साइज ड्यूटी

जब किसी दूसरे देश से भारत में सामान आता है तो उस पर जो कर लगता है, उसे कस्टम ड्यूटी कहते हैं। इसे सीमा शुल्क भी कहा जाता है। यह शुल्क तब लगता है जैसे ही समुद्र या हवा के रास्ते भारत में सामान उतारा जाता है। एक्साइज ड्यूटी उन उत्पादों पर लगता है जो देश के भीतर लगते हैं। इसे उत्पाद शुल्क भी कहते हैं। यह शुल्क उत्पाद के बनने और उसकी खरीद पर लगता है। पेट्रोल, डीजल और शराब इसके सबसे बढ़िया उदाहरण हैं।

कैपिटल और रेवेन्यू एक्सपेंडिचर

कैपिटल एक्सपेंडिचर (पूंजीगत खर्च) फंड्स का आउटफ्लो (खर्च) है। इससे संपत्तियां (एसेट्स) खड़ी होती हैं या कर्ज के बोझ कम होते हैं। उदाहरण के तौर पर, सड़कों का निर्माण या लोन चुकाने को कैपिटल एक्सपेंडिचर में डाला जाता है। वहीं, कैपिटल एक्सपेंडिचर में वर्गीकृत किए गए खर्चों को छोड़कर सभी खर्च रेवेन्यू एक्सपेंडिचर (राजस्व खर्च) में आते हैं। इससे एसेट्स या लाइबिलिटीज (दायित्वों) में कोई फर्क नहीं पड़ता है। तनख्वाह, ब्याज भुगतान और अन्य प्रशासनिक खर्चे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में आते हैं। रेवेन्यू और कैपिटल एक्सपेंडिचर वर्गीकरण सरकारी प्राप्तियों (रिसीट्स) पर भी लागू होते हैं।

राजकोषीय घाटा

सरकार की कुल सालाना आमदनी के मुकाबले जब खर्च अधिक होता है तो उसे राजकोषीय घाटा कहते हैं। इसमें कर्ज शामिल नहीं होता।

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष कर वो हैं जो देश के नागरिक सरकार को सीधे तौर पर देते हैं। इसमें टैक्स किसी व्यक्त की आय पर लगता है और इसे किसी अन्य व्यक्ति को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। प्रत्यक्ष कर में इनकम टैक्स, वेल्थ टैक्स और कॉरपोरेट टैक्स आते हैं। अप्रत्यक्ष कर वो हैं जिनमें टैक्स का भार किसी अन्य व्यक्ति पर ट्रांसफर किया जा सकता है जैसे कोई सर्विस प्रोवाइडर और विनिर्माता, सेवा या उत्पाद पर टैक्स लगाता है। अप्रत्यक्ष कर का उदाहरण जीएसटी है जिसने वैट, सेल्स टैक्स, सर्विस टैक्स, लग्ज़री टैक्स जैसे अलग-अलग टैक्स की जगह ले ली है।

विकास दर

सकल घरेलू उत्पाद अर्थात जीडीपी एक वित्त वर्ष के दौरान देश के भीतर कुल वस्तुओं के उत्पादन और देश में दी जाने वाली सेवाओं का टोटल होता है।

वित्त विधेयक

इस विधेयक के माध्यम से ही आम बजट (Budget) पेश करते हुए वित्त मंत्री सरकारी आमदनी बढ़ाने के विचार से नए करों आदि का प्रस्ताव करते हैं। इसके साथ ही वित्त विधेयक में मौजूदा कर प्रणाली में किसी तरह का संशोधन आदि को प्रस्तावित किया जाता है. संसद की मंजूरी मिलने के बाद ही इसे लागू किया जाता है। यह हर साल सरकार बजट पेश करने के दौरान करती है।

शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म गेन

वर्तमान में कोई भी व्यक्ति यदि शेयर बाजार में एक साल से कम समय के लिए पैसे लगा कर लाभ कमाता है तो उसे अल्पकालिक (शॉर्ट-टर्म कैपिटल गेन) पूंजीगत लाभ कहते हैं। इस पर 15 फीसदी तक टैक्स लगता है। शेयरों में जो पैसा एक साल से अधिक समय के लिए होता है उसे दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन) कहते हैं।

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