ऋषिकेश मुखर्जी: हंसते-हंसाते बता जाते थे जिंदगी का फलसफा

उन्हें और उनकी फिल्म को तीन बार फिल्मफेयर बेस्ट एडिटिंग अवार्ड से सम्मानित किया गया, जिसमें 1956 की फिल्म “नौकरी”, 1959 की “मधुमती” और “1972” की आनंद शामिल है। उन्हें 1999 में भारतीय फिल्म जगत के शीर्ष सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। वहीं, साल 2001 में उन्हें “पद्म विभूषण” से नवाजा गया।

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आनंद, गुड्डी, मिली, चुपके-चुपके, सत्यकाम, गोलमाल, देवदास, अनारी जैसी सदाबहार फिल्मों के डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है।

ऋषिकेश मुखर्जी, भारतीय फिल्म जगत के ऐसे महान निर्देशक जिनकी फिल्मों का अंदाज एकदम जुदा होता था। अपनी हर फिल्म में वे जीने की एक फिलॉसफी दे जाते। उनकी फिल्में हंसते-हंसाते जीवन के सच से रूबरू करा जाती हैं। हिंदी सिनेमा के पटल पर स्वर्ण अक्षरों में अंकित है इस निर्देशक का नाम। आनंद, गुड्डी, मिली, चुपके-चुपके, सत्यकाम, गोलमाल, देवदास, अनारी जैसी सदाबहार फिल्मों के डायरेक्टर ऋषिकेश मुखर्जी की आज पुण्यतिथि है। पद्मश्री और दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड विनर ऋषिकेश मुखर्जी की अधिकतर फिल्मों को पारिवारिक फिल्मों के दायरे में रखा जाता है। क्योंकि उन्होंने मानवीय संबंधों की बारीकियों को बखूबी पेश किया। ऋषिकेश मुखर्जी को करियर में 7 बार फिल्म फेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

फिल्म के क्षेत्र के उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च ‘दादा साहब फाल्के’ पुरस्कार और पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया गया । ऋषिकेश मुखर्जी का जन्म 30 सितंबर, 1922 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद कुछ दिनों तक उन्होंने गणित और विज्ञान के अध्यापक के रूप में भी काम किया। 40 के दशक में ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने सिने करियर की शुरुआत न्यू थिएटर में बतौर कैमरामैन से की। न्यू थिएटर में उनकी मुलाकात जाने-माने फिल्म एडिटर सुबोध मित्र से हुई। उनके साथ रहकर ऋषिकेश मुखर्जी ने फिल्म संपादन का काम सीखा। इसके बाद ऋषिकेश मुखर्जी फिल्मकार बिमल रॉय के साथ सहायक के तौर पर काम करने लगे।

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ऋषिकेश मुखर्जी ने बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ और ‘देवदास’ का संपादन भी किया। बतौर निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म ‘मुसाफिर’ से की। दिलीप कुमार, सुचित्रा सेन और किशोर कुमार जैसे नामचीन सितारों के रहने के बावजूद फिल्म टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई। वर्ष 1959 में ऋषिकेश मुखर्जी को राजकपूर को फिल्म ‘अनाड़ी’ में निर्देशित करने का मौका मिला। फिल्म टिकट खिड़की पर सुपरहिट साबित हुई, इसके साथ ही बतौर निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए। साल 1960 में ऋषिकेश मुखर्जी की एक और फिल्म ‘अनुराधा’ प्रदर्शित हुई। यह फिल्म हालांकि टिकट खिड़की पर असफल साबित हुई लेकिन राष्ट्रीय पुरस्कार के साथ ही बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में भी इसे सम्मानित किया गया।

वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म ‘आशीर्वाद’ के जरिए ऋषिकेश मुखर्जी ने न सिर्फ जाति प्रथा और जमींदारी प्रथा पर गहरी चोट की बल्कि एक पिता की व्यथा को भी रुपहले पर्दे पर साकार किया। वर्ष 1969 में प्रदर्शित फिल्म ‘सत्यकाम’ ऋषिकेश मुखर्जी निर्देशित महत्वपूर्ण फिल्मों में शुमार की जाती है। सिनेप्रेमियों का मानना है कि यह फिल्म ऋषिकेश मुखर्जी की उत्कृष्ट फिल्मों में एक है। जया भादुड़ी को प्रारंभिक सफलता दिलाने में निर्माता-निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों का बड़ा योगदान रहा। उन्हें पहला बड़ा ब्रेक उन्हीं की फिल्म ‘गुड्डी’ (1971) से मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक ऐसी लड़की की भूमिका निभाई, जो फिल्में देखने की काफी शौकीन है और अभिनेता धर्मेन्द्र से प्यार करती है। अपने इस किरदार को जया भादुड़ी ने इतने चुलबुले तरीके से निभाया कि दर्शक उस भूमिका को आज भी भूल नहीं पाए हैं।

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फिल्म ‘गुड्डी’ के बाद जया भादुड़ी ऋषिकेश मुखर्जी की पसंदीदा अभिनेत्री बन गईं। ऋषिकेश मुखर्जी जया भादुड़ी को अपनी बेटी की तरह मानते थे और उन्होंने जया भादुड़ी को लेकर ‘बावर्ची’, ‘अभिमान’, ‘चुपके-चुपके’ और ‘मिली’ जैसी कई फिल्मों का निर्माण भी किया। वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म ‘आनंद’ ऋषिकेश मुखर्जी निदेर्शित ऑल टाइम सुपरहिट फिल्म में शामिल की जाती है। फिल्म में राजेश खन्ना ने ‘आनंद’ की टाइटल भूमिका निभाई। फिल्म के एक दृश्य में राजेश खन्ना का बोला गया यह संवाद- ‘बाबूमोशाय, हम सब रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिसकी डोर ऊपर वाले की उंगलियों से बंधी हुई है। कौन, कब, किसकी डोर खिंच जाए, ये कोई नहीं बता सकता…’, उन दिनों सिने दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुआ था और आज भी दर्शक उसे नहीं भूल पाए हैं।

वर्ष 1973 में प्रदर्शित फिल्म ‘अभिमान’ और वर्ष 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘चुपके-चुपके’ ऋषिकेश मुखर्जी के करियर की महत्वपूर्ण फिल्मों में है। इस दौर में अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र को लेकर फिल्मकार केवल मारधाड़ और एक्शन से भरपूर फिल्म का निर्माण किया करते थे लेकिन उन्होंने उन दोनों को लेकर हास्य से भरपूर फिल्म ‘चुपके-चुपके’ का निर्माण करके सबको आश्चर्यचकित कर दिया। वर्ष 1979 में प्रदर्शित फिल्म ‘गोलमाल’। जब कभी हास्य फिल्मों की चर्चा की जाएगी तब फिल्म ‘गोलमाल’ का नाम अवश्य लिया जाएगा। अमोल पालेकर और उत्पल दत्त अभिनीत इस फिल्म के जरिए ऋषिकेश मुखर्जी ने दर्शकों को हंसा-हंसाकर लोटपोट कर दिया था।

वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनुराधा’ के लिए ऋषिकेश मुखर्जी बतौर फिल्म निर्माता राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किए गए। 1972 में उनकी फिल्म “आनंद” को सर्वश्रेष्ट कहानी के फिल्म्फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अलावा उन्हें और उनकी फिल्म को तीन बार फिल्मफेयर बेस्ट एडिटिंग अवार्ड से सम्मानित किया गया, जिसमें 1956 की फिल्म “नौकरी”, 1959 की “मधुमती” और “1972” की आनंद शामिल है। उन्हें 1999 में भारतीय फिल्म जगत के शीर्ष सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया। वहीं, साल 2001 में उन्हें “पद्म विभूषण” से नवाजा गया। मुंबई में 27 अगस्त, 2006 को हिन्दी के इस लोकप्रिय फिल्मकार का देहांत हो गया।

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