टॉम ऑल्टर: बॉलीवुड का वो ‘फिरंगी’, जिसने सबका दिल जीता

कला और सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2008 में ऑल्टर को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘जुनून’ शामिल हैं।

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टॉम ऑल्टर का जन्मदिन

भारतीय सिनेमा के जाने-माने एक्टर टॉम ऑल्टर। इनकी पहचान हिंदी फिल्मों के अंग्रेज अफसर के रूप में है। 80 और 90 के दशक के लगभग सभी देशभक्ति फिल्मों में नजर आए टॉम ऑल्टर के बारे में ज्यादातर लोग यही सोचते हैं कि वह एक विदेशी कलाकार है जो हिंदी बोलता है। लेकिन टॉम आल्टर भारतीय थे। उनकी जुबान हिंदी और उर्दू दोनों में जबरदस्त थी। उनका पूरा नाम टॉम बीच ऑल्टर था। टॉम ने 300 से ज़्यादा फ़िल्मों और टीवी सीरियल्स में काम किया। इसके साथ ही टॉम को क्रिकेट देखने, खेलने और इसके बारे में लिखने का बहुत शौक था। अस्सी और नब्बे के दशक में उन्होंने खेल पत्रकारिता भी की। सचिन तेंदुलकर का सबसे पहला वीडियो इंटरव्यू इन्होंने ही लिया था। तारीख थी 19 जनवरी, 1989। सचिन तब 15 साल के थे।

कला और सिनेमा के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2008 में ऑल्टर को पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। उनकी प्रसिद्ध फिल्मों में सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ और ‘जुनून’ शामिल हैं। 22 जून, 1950 को टॉम ऑल्टर का जन्म एक अमेरिकी क्रिश्चियन मिशनरी परिवार में हुआ। इनका परिवार उत्तराखंड के मसूरी का रहने वाला था। इनके दादा जी पहली बार भारत साल 1916 में अमेरिका के ऑहियो से आये और यहीं बस गए थे। उनके पिता का जन्म सियालकोट में हुआ, जो अब पाकिस्तान में है। भारत के विभाजन के बाद, उनके दादा दादी पाकिस्तान में रहते थे, जबकि उनके माता-पिता भारत आ गए। इलाहाबाद, जबलपुर, सहारनपुर में रहने के बाद इनका परिवार आखिर में साल 1954 में मसूरी में बस गया।

टॉम तीन भाई-बहन थे। उनकी बड़ी बहन मार्था चेन हैं और उनके भाई जॉन एक कवि और शिक्षक हैं। टॉम की स्कूलिंग मसूरी के वुड्सटॉक स्कूल से हुई। टॉम कॉलेज की तरफ से अमेरिका की येल यूनिवर्सिटी गए। वहां से पढ़ाई छोड़ वे एक साल में वापस इंडिया आ गए। वापस आने के बाद चण्डीगढ़ के एक स्कूल में 19 साल की उम्र में टीचर बन गए। चाचा वुडस्टॉक स्कूल में प्रिंसिपल थे। कुछ दिन वहां भी काम किया। फिर वापस अमेरिका गए। वहां के अस्पताल में काम किया। ढाई साल तक उन्होंने ऐसे ही कई नौकरियां की। फिल्मों की तरफ उनका झुकाव तब हुआ जब उन्होंने राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर की फिल्म ‘आराधना’ देखी। फिर मन में अभिनेता बनने का संकल्प कर बैठे। 1972 में टॉम ने भारतीय फिल्म और टेलिविजन संस्थान (FTII), पुणे ज्वॉइन किया। साल 1972 से लेकर 1974 तक वहीं रहे।

FTII में रोशन तनेजा इनके गुरु थे। नसीरुद्दीन शाह और ओम पुरी इनके जूनियर थे और शबाना आज़मी इनकी सीनियर। टॉम ने 1974 में फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ पुणे से एक्टिंग में ग्रेजुएशन के दौरान गोल्ड मेडल हासिल किया था। एक बार अपने एक लेख में टॉम ने बताया था, ‘सन 1974 में जब मैं इंस्टीट्यूट से पास आउट हुआ, तो इत्तेफाक से मुझे गोल्ड मेडल मिला था। अक्टूबर में हमारा कन्वोकेशन था और सत्यजीत रे मुख्य अतिथि थे। तो मैं दो बार स्टेज पर आया। एक बार डिप्लोमा और दूसरी बार गोल्ड मेडल लेने। कन्वोकेशन खत्म हुआ तो वह निकले। जैसे ही रे साहब मेरे पास से निकले, वैसे ही झुककर अंग्रेजी में कहा- ‘वी शैल बी वर्किंग टुगैदर वेरी सून’। मुझे लगा कि रे साहब ने वास्तव में कुछ कहा या मेरी तमन्ना बोल रही थी। डेढ़ साल बाद मुझे प्रेसिडेंट होटल मुंबई बुलाया गया। एक कमरे में रे साहब बैठे थे। उन्होंने कहा- ‘टॉम यू रिमेम्बर, व्हाट आई टोल्ड यू दैट डे’।’

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खेल खासकर क्रिकेट के प्रति लगाव ही था कि FTII में क्रिकेट के कैप्टन रहे। नसीर इनके साथ खूब क्रिकेट खेलते थे। साल 1979 में नसीर के साथ मिलकर टॉम ने मोटली थियेटर ग्रुप भी खोला था। उन्होंने 1976 में धर्मेंद्र की फ़िल्म ‘चरस’ से बॉलीवुड में डेब्यू किया। शुरूआत में उनके गोरे रंग की वजह से अंग्रेज का रोल मिलता था। उनकी अगली और सबसे मशहूर फिल्मों में सत्यजीत रे की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ (1977) थी, जो मुंशी प्रेमचंद की इसी नाम की छोटी कहानी पर आधारित थी। इसमें वह एक अंग्रेज अधिकारी बने थे। इसके बाद उन्होंने श्याम बेनेगल की ‘जुनून’ (1979), मनोज कुमार की ‘क्रांति’ (1981) और राज कपूर की ‘राम तेरी गंगा मैली’ (1985) में काम किया।

मनोज कुमार की फिल्म क्रांति के ब्रिटिश अफसर के किरदार के लिए उन्हें जाना जाता है। छोटे पर्दे पर उन्होंने ‘बेताल पच्चीसी’, ‘जुनून’, ‘जबान संभाल के’, ‘भारत एक खोज’, ‘शक्तिमान’, ‘कैप्टन व्योम’ और ‘यहां के हम सिकंदर’ जैसे लोकप्रिय टेलीविजन धारावाहिकों में काम किया था। पंकज कपूर के साथ डीडी मेट्रो पर आने वाले धारावाहिक ‘जबान संभाल के’ से उनकी पहचान घर-घर में बन गई थी। 1993 में उन्होंने सरदार पटेल की बॉयोपिक फिल्म ‘सरदार’ में लॉर्ड माउंटबेटन का किरदार निभाया था। इसके अलावा उन्होंने हॉलीवुड की फिल्म ‘वन नाइट विद द किंग’ में भी काम किया। उनकी बेहतरीन अभिनय वाली फिल्मों में ‘आशिकी’, ‘परिंदा’, ‘सरदार पटेल’ और ‘गांधी’ शामिल हैं। उन्हेंने ‘हम किसी से कम नहीं’, ‘कर्मा’, ‘सलीम लंगड़े पर मत रो’, ‘दिल विल प्यार व्यार’, ‘वीर-ज़ारा’, ‘बोस: द फॉरगॉटन हीरो’, ‘भेजा फ्राई’ जैसी फिल्मों में काम किया।

उनकी आख़िरी फिल्म ‘सरगोशियां’ थी, जिसमें उनके साथ आलोकनाथ और फरीदा जलाल ने काम किया था। अभिनय के अलावा टॉम ऑल्टर लेखन के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। उन्होंने ‘द लॉन्गेस्ट रेस’, ‘रेरन ऐट रिआल्टो’ और ‘द बेस्ट इन द वर्ल्ड’ जैसी किताबें लिखीं। टॉम एक उम्दा आभिनेता और लेखक होने के साथ-साथ एक बेहतरीन इंसान भी थे। अमेरिकन माता पिता की संतान होने के बावजूद उनमें अपने रंग के प्रति कोई अहम नहीं था। वह मसूरी के अपने दोस्तों के साथ बेहद साधारण अंदाज में रहते थे। कीचड़ में फुटबॉल खेलना हो या फिर बारिश में धनोल्टी रोड पर टहलना हो। यह उनके लिए सामान्य बात थी।

टॉम ने एक किताब में लिखा है, ‘हमें याद रखना होगा कि हम सब एक हैं, चाहे वह गढ़वाली हों, कुमाऊंनी हों, उत्तराखंडी हों, उत्तर प्रदेश के हों, भारतीय हों या फिर अमेरिका या दुनिया के किसी कोने के। जब हम इस बात को अंदर से महसूस कर लेंगे तब न सिर्फ हमारा उत्तराखंड बल्कि सारा विश्व फलेगा-फुलेगा। एक चुनौती हम सबके सामने है, हम सब अपना-अपना एक घर चाहते हैं। अब हम एक ऐसा घर बनाएं, जिसमें सब का स्वागत हो, जहां सब बराबर हों।’ एक्टर, लेखक, पत्रकार और पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित टॉम ऑल्टर का 29 सितंबर, 2017 को 67 साल की उम्र में स्किन कैंसर से देहांत हो गया।

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