बीजी वर्गीज: वह पत्रकार जो आधी सैलरी पर करना चाहता था पूरा काम

उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री के खिलाफ कुछ ऐसा लिख दिया था कि वर्गीज को आपातकाल में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक के पद से हटना पड़ा था।

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बीजी वर्गीज की जयंती

मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित प्रख्यात लेखक और पत्रकार बी.जी. वर्गीज का आज जन्मदिन है। वर्गीज 1969 से 1975 तक हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक रहे। 1982 से 1986 तक इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रहे। 1966 से 1969 तक प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सूचना सलाहकार रहे। वर्गीज को आपातकाल में हिंदुस्तान टाइम्स के संपादक के पद से हटना पड़ा था क्योंकि उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के खिलाफ लिख दिया था। आपातकाल के बाद कुछ साल तक वे गांधी पीस फ़ाउंडेशन के फ़ेलो रहे और साल 2001 में अल्पकाल के लिए रक्षामंत्री के सूचना सलाहकार भी रहे। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण किताबें लिखीं, जिनमें ‘डिज़ाइन फ़ॉर टुमॉरो’, ‘वाटर्स ऑफ़ होप’, ‘हार्नेसिंग दि ईस्टर्न हिमालयन रिवर्स’, ‘विनिंग दि फ़्यूचर’, ‘इंडियाज़ नॉर्थ-ईस्ट रिसर्जेंट’, ‘रिओरिएंटिंग इंडिया एंड रेज’, ‘रिकंसिलेशन ऑफ़ इंडिया’ और ‘फर्स्ट ड्राफ्ट: विटनेस टू द मेकिंग ऑफ इंडिया’ प्रमुख हैं।

इसके अलावा उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के संपादक रामनाथ गोयनका की जीवनी भी लिखी। उनका आखिरी महत्त्वपूर्ण अकादमिक काम डाक सेवा और डाक टिकटों के इतिहास का अध्ययन था। पूर्वोत्तर पर गहरा अध्ययन करने और किताब लिखने के साथ ही उन्होंने देश के इस क्षेत्र के प्रति केंद्र की रूढ़ मानसिकता बदलने की भी कोशिश की। पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने प्रतिष्ठित करियर के दौरान वर्गीज ने सिविल स्वतंत्रता और मानवाधिकारों, विशेषत: समाज के कमजोर और अधिकारहीन वर्गों के मानवाधिकारों से लेकर ग्रामीण विकास, पर्यावरण और राष्ट्रीय सुरक्षा, गैर पारंपरिक सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर विशेष ध्यान केन्द्रित करते हुए, विभिन्न मुद्दों पर अपनी कलम चलाई। वर्गीज का जन्म 21 जून, 1927 को म्यांमार (बर्मा) में हुआ था। वह अपने पिता की तीसरी सन्तान थे।

उनके पिता इण्डियन मेडिकल सर्विस में ऑफिसर थे तथा अपनी सेवा में डायरेक्टर जनरल के पद से रिटायर हुए। वर्गीज का जन्म भले ही बर्मा में हुआ लेकिन उनका अधिकांश समय पूर्वी तथा उत्तरी भारत में बीता। उनकी पढ़ाई दून स्कूल, देहरादून से शुरू हुई। वह स्कूल के एक मेधावी छात्र थे। दून स्कूल से हाई स्कूल पास करने के बाद वर्गीज दिल्ली में सेन्ट स्टीफेंस कॉलेज में आए, जहां से उन्होंने इकॉनामिक्स में बी.ए. की डिग्री 1948 में प्राप्त की। इस डिग्री के साथ वर्गीज ने इकॉनामिक्स बी.ए. की डिग्री कैंब्रिज इंग्लैण्ड के ट्रिनटी कॉलेज से भी प्राप्त की।

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वह संयुक्त राष्ट्रसंघ में या इन्टरनेशनल लेबर आर्गनाइजेशन में काम करना चाहते थे। लेकिन वहां इंग्लैण्ड में टाइम्स ऑफ इण्डिया को एक सहायक सम्पादक की जरूरत थी। इसके लिए वर्गीज चुन लिए गए और टाइम्स ऑफ इण्डिया ने इन्हें ग्लासगो हेरल्ड तथा लन्दन टाइम्स क्रॉनिकल में प्रशिक्षण दिलवाया। प्रशिक्षण पूरा करके वर्गीज भारत लौटे और उन्होंने टाइम्स ऑफ इण्डिया में पद संभाल लिया। वर्गीज टाइम्स ऑफ इण्डिया में 17 वर्ष तक रहे। उन्होंने जब इंडियन एक्सप्रेस ज्वॉइन किया तो उन दिनों संपादक की तनख्वाह 20 हजार रुपए मासिक थी। वर्गीज ने मालिक रामनाथ गोयनका से कहा कि मेरा काम दस हजार से ही चल जाएगा। गोयनका जी ने उन्हें यह कह कर समझाने की कोशिश की कि इस पद के लिए इतनी ही तनख्वाह तय है, उससे कम हम कैसे दे सकते हैं? इस पर उन्होंने कहा कि पत्रकार के पास अधिक पैसे नहीं आने चाहिए। अधिक पैसे आने के बाद फिर वह पत्रकार नहीं रह जाता।

उन्हें 1975 में मैग्सैसे अवार्ड के साथ के अलावा वर्ष 2005 में असम का शंकरदेव अवार्ड, वर्ष 2013 में उपेंद्र नाथ ब्रह्म सोल्जर ऑफ़ ह्यूमेनिटी अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था। बी.जी. वर्गीज की पैनी दृष्टि ने भारत के समक्ष मुंह बाए खड़ी समस्याओं—उग्रवाद व नक्सलवाद, भाषा व संस्कृति से जुड़े मुद्दे, दलित एवं जातिवाद, कट्टरवाद व पुनर्जागरण, आदिवासी तथा अल्पसंख्यक; भूमि, वन, शहरीकरण, औद्योगिकीकरण व भूमंडलीकरण से जुड़े विवाद तथा ग्लोबल वार्मिंग आदि से हमारा परिचय कराया।

30 दिसम्बर, 2014 को सत्तासी साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कहने वाले वर्गीज ने आजादी के बाद के भारत की हर चीज पर निगाह रखी। आजादी से अब तक के भारत को उन्होंने अध्ययन और अनुभव, दोनों तरह से जाना और उस पर काफी लिखा भी। आखिरी कुछ दिनों की बीमारी को छोड़ कर, अंत तक सक्रिय रहे। पत्रकारों पर जब भी हमले हुए, उन्होंने विरोध में आवाज उठाई। दूसरी तरफ वे पत्रकारों को उनकी जिम्मेदारियों का अहसास कराने और पत्रकारिता के मूल्यों को याद दिलाने में भी सबसे आगे रहे।

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