Birth Anniversary: ‘बिहार विभूति’ डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह, आधुनिक बिहार के निर्माता

उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि चम्पारण में नील आंदोलन उठ ख़डा हुआ। इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी।

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'बिहार विभूति' डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह की जयंती

बिहार के प्रसिद्ध राजनेता और प्रथम उप मुख्यमंत्री और साथ ही वित्त मंत्री रहे डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह की आज जयंती है। डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक एवं राजनीतिज्ञ रहे हैं। उन्होंने महात्मा गांधी तथा डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ मिलकर चम्पारण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। आधुनिक बिहार के निर्माता के रूप में उनकी ख्याति है। उन्होंने आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जो कार्य किया, उसके कारण उन्हें ‘बिहार विभूति’ का नाम दिया गया। अनुग्रह बाबू देश के उन गिने-चुने सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थे जिन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर अंतिम दिनों तक राष्ट्र और समाज की सेवा की।

डॉ. अनुग्रह नारायण सिंह का जन्म बिहार के औरंगाबाद जिले के पोईअवा नामक गांव में 18 जून, 1887 को हुआ। उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह जिले के प्रसिद्ध व्यक्ति थे। पटना कॉलेज में पढ़ाई करते हुए उन्हें गुलाम भारत की चीत्कार सुनाई पड़ी। हृदय में स्वतन्त्रता की लड़ाई में शामिल होने की ज्वाला धधक उठी। वे सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद के सानिध्य में आये और भारतमाता को गुलामी की जंजीर के मुक्ति दिलाने के पावन मार्ग पर बढ़ चले। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध चम्पारण में हुए सत्याग्रह आंदोलन से देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में प्रवेश किया था। सन् 1910 में आईए की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की और पटना यूनिवर्सिटी में बीए में प्रवेश लिया।

उसी वर्ष महामना पोलक साहब जो महात्मा गांधी के सहकर्मी थे, पटना आये थे।अफ़्रीका के प्रवासी भारतीयों के बारे में जो उनका व्याख्यान हुआ, उससे अनुग्रह बाबू बहुत प्रभावित हुए। उसी वर्ष प्रयाग में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन हुआ, जिसमें वे अपनी सहपाठियों के साथ गये। उस अधिवेशन में महामना गोखले आदि विद्वान राष्ट्रभक्तों के भाषणों को सुनने के बाद उनका मन पूरी तरह देश सेवा में रम गया। अनुग्रह बाबू ने विद्यार्थी जीवन में ही संगठन शक्ति तथा कार्य संचालन की काबिलियत हासिल कर ली थी। सन् 1914 में इतिहास से एम.ए. करने के बाद 1915 में लॉ की परीक्षा पास की।

भागलपुर के तेजनारायण जुविल कॉलेज में इतिहास के एक प्रोफेसर की आवश्यकता हुई तो अपने साथियों से परामर्श करने के बाद तुरंत उन्होंने अपना आवेदन पत्र भेज दिया और उस पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। वर्ष 1916 में उन्होंने कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पटना हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ कर दी। उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि चम्पारण में नील आंदोलन उठ खड़ा हुआ। इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। चम्पारण के किसानों की तबाही का समाचार जब सुने तो वे करुणा से विचलित हो उठे। मुजफ़्फ़रपुर के कमिश्नर की राय के विरुद्ध गांधीजी चम्पारण गये और जांच कार्य प्रारंभ कर दिया।

अत्याचारों की जांच प्रारंभ हुई। इसमें कुछ ऐसे वकीलों की आवश्यकता थी, जो निर्भीकता पूर्वक कार्य कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें। इस विकट कार्य के लिए वृज किशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेन्द्र बाबू के साथ ही अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये। उन्होंने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की कि उनका पेशा नया है और उन्हें भारी क्षति उठानी पड़ सकती है। एक बार जो त्याग के मार्ग पर आगे ब़ढ चुका है, उसे भला इन तुच्छ चीज़ों का क्या भय हो सकता है। चम्पारण का किसान आंदोलन 45 महीनों तक ज़ोर शोर से चलता रहा। अनुग्रह बाबू बराबर उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे। आजादी की लड़ाई के दौरान वो कई बार जेल भी गए।

स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें गांधीजी के आश्रम में ही रहकर पढ़ने का सुअवसर प्राप्त हुआ था। अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार 1917 में पटना आये। बापू के साथ रहने से उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल बना। 1937 में अनुग्रह बाबू बिहार प्रान्त के वित्त मंत्री बने। अनुग्रह बाबू बिहार विधानसभा में 1937 से लेकर 1957 तक कांग्रेस विधायक दल के उप नेता रहे। 1946 में जब दूसरा मंत्रिमंडल बना तब वित्त और श्रम दोनों विभागों के पहले मंत्री बने। उन्होंने अपने मंत्रित्व काल में विशेषकर श्रम विभाग में अपनी न्यायप्रियता लोकतांत्रिक विचारधारा एवं श्रमिकों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का जो परिचय दिया वह सराहनीय ही नहीं अनुकरणीय भी है।

श्रम मंत्री के रूप में अनुग्रह बाबू ने ‘बिहार केन्द्रीय श्रम परामर्श समिति’ के माध्यम से श्रम प्रशासन तथा श्रमिक समस्याओं के समाधान के लिए जो नियम एवं प्रावधान बनाए वे आज पूरे देश के लिये मापदंड के रूप में काम करते हैं। तृतीय मंत्रिमंडल में उन्हें खाद, बीज, मिट्टी, मवेशी में सुधार लाने के लिए शोध कार्य करवाए और पहली बार जापानी ढंग से धान उपजाने की पद्धति का प्रचार कराया। पूसा का कृषि अनुसंधान फार्म उनकी ही देन है। इस तेजस्वी महापुरुष का निधन 5 जुलाई, 1957 को उनके निवास स्थान पटना में बीमारी के कारण हुआ। उनके सम्मान में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया। उनके अन्तिम संस्कार में विशाल जनसमूह उपस्थित था। अनुग्रह बाबू 2 जनवरी, 1946 से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रहे।

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