मंगल पांडे से पहले इस गुमनाम नायक की अगुवाई में 1400 सैनिकों ने किया था अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह, आज भी आर्मी मेस से जाता है तीन वक्त का खाना

बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की मौत के बाद सिपाहियों ने उसी पीपल के पेड़ के पास एक छोटा सा मंदिर बिंदी तिवारी की याद में बना दिया। वो मंदिर आज भी है, उसे बिंदा बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है।

Bindi Tiwari

Bindi Tiwari II Independence Day 2020

बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) जैसे गुमनाम नायक की कहानी भी जरूर पता होनी चाहिए, जब देश का बच्चा-बच्चा मंगल पांडे को जानता है।

पश्चिम बंगाल के बैरकपुर को आज बच्चा-बच्चा जानता है तो उसकी बड़ी वजह मंगल पांडे हैं। 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे ने जो विद्रोह का बिगुल बैरकपुर छावनी से शुरू किया, उसने अंग्रेजों की चूलें अगले दो साल तक हिलाए रखीं। लेकिन उसी बैरकपुर में आर्मी कैंटोनमेंट से रोज तीन वक्त, यानी ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर खाने का टिफिन बॉक्स एक खास व्यक्ति के लिए बनकर आता है। बैरकपुर के एक ऐसे सिपाही के लिए, जिसके बारे में कहा जाता है, उसकी वीरता की कहानियां सुनकर मंगल पांडे अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का जज्बा जुटा पाए। नाम था—बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari)।

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आज भी उन्हें बिंदा बाबा के नाम से जाना जाता है। सिपाहियों ने उनकी मौत के बाद उनका एक मंदिर उसी जगह बनवाया, जहां अंग्रेजों ने उन्हें दर्दनाक मौत दी थी। उसी बिंदा बाबा के मंदिर में रोज आर्मी कैंट से सिपाहियों की एक टीम तीन वक्त का खाना लेकर बाबा का भोग लगाती है।

ज्यादातर देशवासी बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) को नहीं जानते, लेकिन उनकी कहानी किसी भी मायने में मंगल पांडे से कम बहादुरी की नहीं है, हो सकता है आपको उससे भी ज्यादा लगे। भले ही आधिकारिक इतिहास में मंगल पांडे को 1857 की क्रांति का अग्रदूत माना जाता है, अगर उनके बाद पूरे देश के ज्यादातर इलाकों में इस क्रांति की ज्वाला न धधकी होती, तो मंगल पांडे भी बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की तरह गुमनामी के शिकार हो जाते। मंगल पांडे के विद्रोह से 33 साल पहले बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की अगुवाई में अंग्रेजों की उसी बैरकपुर छावनी में 1400 सैनिकों ने विद्रोह का ऐलान कर, दो दिन तक छावनी पर कब्जा जमा लिया था। आप यकीन नहीं करेंगे, उसके बाद अंग्रेजों ने इसी बेरहमी से इस विद्रोह को कुचला कि इंग्लैंड की संसद् में एक सरकार विरोधी पार्टी के ब्रिटिश एम.पी. जोसेम ह्यूम ने आरोप लगाया कि 400 से 600 भारतीय सिपाहियों को बैरकपुर में अंग्रेजी फौज ने मार डाला है। हालांकि टोरी एम.पी. चार्ल्स विलियम्स ने सरकार की तरफ से जवाब देते हुए कहा था कि 180 से ज्यादा मौतें नहीं हुई हैं। कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी में सारे अधिकारियों को क्लीन चिट मिल गई। घटना के तीन साल बाद भी ये मुद्दा इतना गरम था कि 22 मार्च, 1837 को लंदन की संसद् में इस मुद्दे पर बहस हुई, जिसमें विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने नए सिरे से जांच की मांग की, जिस पर संसद में वोटिंग भी हुई। इस प्रस्ताव को 44 वोट के मुकाबले 176 वोट्स से खारिज कर दिया गया।

आखिर क्यों किया गया इतना बड़ा नरसंहार? आखिर क्यों किया बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की अगुवाई में 1400 सैनिकों ने विद्रोह? दरअसल अक्तूबर 1824 में 26वीं, 47वीं और 62वीं रेजीमेंट्स को बैरकपुर में बोला गया कि आपको फौरन चटगांव के लिए निकलना है, दूरी करीब 800 किलोमीटर थी। वहां से बर्मा (म्यांमार) के रंगून (यंगून) जाना है। जबकि फौरन ही ये रेजीमेंट्स यू.पी. के मथुरा से बैरकपुर पहुँची थीं, यानी करीब 1600 किलोमीटर की यात्रा करने के बाद, उनको बिल्कुल भी फुरसत नहीं मिल पाई थी। दूसरी एक बड़ी समस्या थी, उनको ऑर्डर मिले थे कि अपना सामान खुद ले जाओ। उस वक्त बैलगाड़ियों पर सामान ले जाया जाता था, और अच्छे बैल वहां मिल नहीं रहे थे तो सिपाहियों ने बोला कि बैलों का इंतजाम किया जाए, या भत्ता दोगुना दिया जाए; क्योंकि सामान ले जाने के लिए ज्यादा पैसा वे अपनी जेब से नहीं दे सकते थे।

बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बजाया विद्रोह का बिगुल 

ये तो थीं व्यावहारिक परेशानियां, कुछ ऐसी परेशानियां भी अंग्रेजों ने अपनी किताबों में लिखी हैं, जो शायद उस वक्त के कम पढ़े-लिखे समाज के सिपाहियों में हो भी सकती थीं। किसी ने लिखा है कि वे सिपाही ज्यादातर उत्तर भारत के थे, सो काले पानी (समुद्र) में यात्रा करने को गलत मानते थे, वरना वहां से समुद्री रास्ता भी था। दूसरे उनके मन में ये भी भय था कि बर्मा के लोगों के पास काला जादू होता है, उनसे कैसे लड़ेंगे। हालांकि व्यावहारिक समस्याएं कम बड़ी नहीं थीं। 800 किलोमीटर थोड़ी दूरी नहीं थी, जबकि 1600 किमी. वे चलकर आए थे, अंग्रेजी सरकार हथियारों और बाकी सामानों को ले जाने का भी कोई इंतजाम नहीं कर रही थी। वैसे भी 47वीं रेजीमेंट को बाद में जाना था, अचानक उसे सबसे पहले जाने को बोल दिया गया तो 47वीं रेजीमेंट के बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया।

1 नवंबर, 1824 का दिन था, 47वीं रेजीमेंट के सैनिकों ने सामान का किराया या भत्ता दोगुना करने की मांगें न माने जाने तक चटगांव मार्च करने से मना कर दिया। उस वक्त कोलकाता के फोर्ट विलियम से अंग्रेजी सरकार चलती थी। अंग्रेजी कमांडर इन चीफ एडवर्ड पेजेट वहीं रहता था, वे फौरन बैरकपुर आ गया। सिपाहियों ने उसके सामने अपनी मांगें रखीं, जब तक बाकी रेजीमेंट के सैनिक भी उनके साथ आ मिले थे। एडवर्ड ने मांगें सुनकर कहा कि पहले अपने हथियार डाल दो, तब मांगों पर विचार किया जाएगा लेकिन बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) और उसके साथियों ने ये बात मानने से साफ इनकार कर दिया। एडवर्ड ने इसे राजद्रोह माना और इसे अपनी बेइज्जती माना। उसने दो यूरोपीय रेजीमेंट को बैरकपुर में तलब कर लिया, यहां तक गर्वनर जनरल के बॉडीगार्ड की टुकड़ी के साथ-साथ दम-दम घुड़सवार तोपखाना भी मंगा लिया।

2 नवंबर को आखिरी चेतावनी देकर एडवर्ड ने तोपखाने का मुंह भारतीय सैनिकों पर खोल दिया, उनको उम्मीद नहीं थी कि एडवर्ड सीधे तोप चला देगा। एडवर्ड ने पूरी छावनी को चारों तरफ से घेर लिया था। भारतीय सैनिक इस हमले के लिए तैयार नहीं थे फिर भी बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) ने अपने साथियों का जोश आखिरी दम तक बनाए रखा। कितने ही सैनिक पीछे बह रही हुगली नदी में कूदकर जान गंवा बैठे। अंग्रेजी फौज ने बेरहमी से कत्ल-ए-आम शुरू कर दिया। जब भारतीय सैनिकों में भगदड़ मची तो बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) भी वहां से भाग निकले। ब्रिटिश भारत में सैनिकों के विद्रोह का ये पहला वाक्या था और एडवर्ड ऐसा सबक देना चाहता था कि कोई आगे ऐसा करने की हिम्मत तक न जुटा सके। हालांकि ऐसा हुआ भी कि अगले 33 साल ऐसी कोई घटना फौजी छावनियों में नजर नहीं आई, विद्रोह फिर हुआ भी तो उसी छावनी में हुआ, जब मंगल पांडे ने 29 मार्च, 1857 के विद्रोह का पहला झंडा उठाया।

सैकड़ों सिपाहियों, आस-पास की महिलाओं व बच्चों को मारने के बाद जब सारे सिपाहियों ने हथियार डाल दिए, तब एडवर्ड ने जांच की तो पाया कि कुल 11 ऐसे सिपाहियों के नेता थे, जो पूरे विद्रोह की कमान संभाल रहे थे। जिसका सबसे बड़ा नेता था- बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari), जिसे सब लोग बिंदा बाबा के नाम से जानते थे। उन सभी को उसी दिन परेड मैदान में सबके सामने फांसी दे दी गई।

एडवर्ड ब्रिटिश सरकार का क्रूरतम चेहरा था, वो सबको दिखाना चाहता था कि अंग्रेजों के खिलाफ जाने का क्या मतलब हो सकता था। 52 सिपाहियों को 14 साल तक की सजा दे दी गई। अभी भी बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) अकेले मोर्चा लिये हुए था, वो पास के जंगलों से लगातार मोर्चा ले रहा था, लेकिन छावनी अंग्रेजों के कब्जे में आ गई थी। 47वीं रेजीमेंट को अंग्रेजों ने बिल्कुल खत्म कर दिया, सारे भारतीयों को सजा दे दी गई या फौज से निकाल दिया गया। उस रेजीमेंट के अंग्रेजी सैनिकों और अधिकारियों को 69वीं रेजीमेंट में शामिल कर लिया गया।

इधर 9 नवंबर को आखिरकार अंग्रेजी फौज ने बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) को गिरफ्त में ले ही लिया। बिंदी को बड़ी दर्दनाक मौत दी एडवर्ड ने। एक पीपल के पेड़ से जंजीरों से बांधकर उन्हें फांसी दे दी गई, उनकी लाश को ऐसे ही आम जनता के देखने के लिए छोड़ दिया गया, ताकि लोग उनका अंजाम देख सकें। उसके मरने के बाद उसकी लाश महीनों तक उसी पेड़ के नीचे सड़ने के लिए छोड़ दी गई। अंतिम संस्कार भी नहीं करने दिया गया। ये बैरकपुर छावनी के सिपाहियों और आम जनता के लिए संदेश था कि अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का खयाल भी दिमाग में अगर लाए तो अंजाम क्या हो सकता है।

बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की मौत के बाद सिपाहियों ने उसी पीपल के पेड़ के पास एक छोटा सा मंदिर बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) की याद में बना दिया। वो मंदिर आज भी है, उसे बिंदा बाबा के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जहां उनके साथ-साथ उनके आराध्य हनुमानजी की प्रतिमा भी है। बैरकपुर का हर सिपाही उनकी वीरता की कहानियों को वहां सुनता रहता है, लगभग हर सिपाही वहां मत्था टेकने जरूर जाता है।

आज भी इस मंदिर में बाबा के भोग के लिए तीन वक्त का खाना बैरकपुर आर्मी कैंटोनमेंट से भेजा जाता है। ऐसा माना जाता है कि मंगल पांडे के दिनों में वे भी जाते रहे होंगे और बिंदा बाबा ने उन्हें भी प्रेरित किया होगा। जो भी हो, लेकिन ये सच है कि अंग्रेजों के खिलाफ उस दौर में विद्रोह के बारे में सोचना, 1400 सिपाहियों को विद्रोह के लिए प्रेरित करना, उनकी अगुवाई करना, 9 दिन तक संघर्ष चलाए रखना, वो भी तब जब साफ पता था कि इसका अंजाम सिर्फ और सिर्फ मौत है, ये आसान काम तो बिल्कुल नहीं था। ऐसे में जब देश का बच्चा-बच्चा मंगल पांडे को जानता है, बिंदी तिवारी (Bindi Tiwari) जैसे गुमनाम नायक की कहानी भी उसको जरूर पता होनी चाहिए।

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