बिहार: राज्य में लगातार कमजोर हो रहा लाल आतंक, बीते 5 सालों में नक्सली हिंसा में आई 14 गुनी कमी

बिहार (Bihar) में पिछले पांच सालों में नक्सली हिंसा (Naxal Violence) में 14 गुनी कमी आई है। साल 2016 के दौरान 100 नक्सली वारदातें हुईं थीं, जबकि साल 2021 में नक्सली वारदातों की संख्या सिर्फ सात रह गई है।

Naxal Violence

सांकेतिक तस्वीर।

आंकड़े यह बताते हैं कि बीते 2 सालों में राज्य में नक्सल हिंसा (Naxal Violence) में किसी जवान की मौत नहीं हुई है। वहीं, साल 2016 में 13 जवान नक्सली हमले में शहीद हुए थे।

बिहार (Bihar) में पिछले पांच सालों में नक्सली हिंसा (Naxal Violence) में 14 गुनी कमी आई है। साल 2016 के दौरान 100 नक्सली वारदातें हुईं थीं, जबकि साल 2021 में नक्सली वारदातों की संख्या घट कर सिर्फ सात रह गई है। साल 2020 में भी सिर्फ 26 वारदातें हुई थीं।

नक्सली हिंसा से संबंधित जारी रिपोर्ट के अनुसार, राज्य के सिर्फ चार जिलों में अब इनकी थोड़ी-बहुत नक्सली गतिविधियां (Naxal Activities) देखी जा रही हैं। इनमें गया, औरंगाबाद, जमुई और लखीसराय शामिल हैं। इन जिलों की सीमा झारखंड से लगी हुई है, जिससे इन इलाकों के पहाड़ी और जंगली इलाकों में नक्सलियों को छिपने या भागने में आसानी होती है।

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पिछले साल तक उत्तर बिहार के वैशाली और मुजफ्फरपुर जिलों में नक्सली घटनाएं हुई थीं, लेकिन एसटीएफ और सीआरपीएफ की संयुक्त कार्रवाई के कारण ही इन इलाकों से नक्सलियों (Naxalites)  का लगभग सफाया हो गया है। अब नक्सली मुख्य रूप से इन सिर्फ चार जिलों में ही सिमट गए हैं।

नक्सलियों के कमजोर होने की सबसे बड़ी वजह नक्सली नेताओं का मारा जाना या गिरफ्तार होना है। साल 2016 में 468 नक्सली गिरफ्तार हुए और 33 ने सरेंडर किया। साल 2017 में 383 गिरफ्तार और छह सरेंडर, 2018 में 388 गिरफ्तारी और नौ सरेंडर, 2019 में 381 गिरफ्तारी और 13 सरेंडर, 2020 में 265 गिरफ्तारी और 14 सरेंडर और साल 2021 में 153 नक्सली गिरफ्तार और तीन ने सरेंडर किया।

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नक्सलियों के कमजोर पड़ने के कारण इनकी लेवी वसूली में भी काफी कमी आई है। आंकड़ों के मुताबिक, साल 2016 में नक्सलियों ने 43 लाख 56 हजार रुपए की वसूली की थी, जो साल 2020 में घटकर 17 लाख 58 हजार थी और 2021 में 19 हजार 820 रुपये रह गई है।

आंकड़े यह भी बताते हैं कि बीते 2 सालों में राज्य में नक्सल हिंसा (Naxal Violence) में किसी जवान की मौत नहीं हुई है। वहीं, साल 2016 में 13 जवान नक्सली हमले में शहीद हुए थे। इसके बाद 2017, 2018, 2020 और 2021 में एक भी जवान शहीद नहीं हुए। जबकि, साल 2018 और 2019 में एक-एक जवान शहीद हुए थे।

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इसके साथ ही पुलिस के साथ मुठभेड़ में भी कमी आई है। साल 2016 में 13 मुठभेड़ें हुई थीं। वहीं, साल 2020 में 10, 2019 में 12, 2018 में 13 और साल 2017 में 10 मुठभेड़ हुई थीं। जबकि 2021 में सिर्फ दो नक्सली मुठभेड़ हुई।

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