सांकेतिक तस्वीर
नक्सलियों (Naxalites) के निशाने पर सुरक्षाबलों की जो टीम थी उसमें 450 जवान थे। हालांकि, ये जवान नक्सलियों के जाल में नहीं फंसे। इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन से नक्सलियों को निश्चित ही भनक लग जाएगी और वे पहले ही सतर्क हो जाएंगे।
भारत की आंतरिक सुरक्षा को बनाए रखना कोई आसान काम नहीं हैं। इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं। 3 अप्रैल को तेर्रम के जंगलों में हुई नक्सली (Naxalites) मुठभेड़ में CRPF, DRG और STF के 22 जवान शहीद हो गए। इस मुठभेड़ में नक्सलियों ने एके-47 और ग्रेनेड लॉन्चर जैसे हथियारों का इस्तेमाल किया था। हालांकि, हमारे जवानों ने भी नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया।
शहीदों और घायल जवानों को सुरक्षाबलों के जवान टेकुलगुडम गांव की झोपड़ियों में ले गए थे, लेकिन उन्हें यह पता नहीं था कि अपनी प्लानिंग के तहत नक्सलियों (Naxalites) ने टेकुलगुडम के साथ ही 2 और गांवों जीरा गांव और जोनागुडा को जबरदस्ती खाली करवा दिया है। यहां नक्सलियों के जाल में ट्रैप होने के बाद से सुरक्षाबलों को और ज्यादा नुकसान हुआ।
सुकमा और बीजापुर जिलों की ओर से 2 अप्रैल की देर रात नक्सलियों के खिलाफ लॉन्च किए गए इस ऑपरेशन में सुरक्षाबलों के 2 हजार जवान शामिल थे। दरअसल, सुरक्षाबलों को सूचना मिली थी कि कुख्यात नक्सली हिडमा इलाके में मौजूद है, जिसके बाद नक्सलियों के खिलाफ यह अभियान चलाया गया था। नक्सलियों (Naxalites) के निशाने पर सुरक्षाबलों की जो टीम थी उसमें 450 जवान थे। हालांकि, ये जवान नक्सलियों के जाल में नहीं फंसे।
इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों के ऑपरेशन से नक्सलियों को निश्चित ही भनक लग जाएगी और वे पहले ही सतर्क हो जाएंगे। इसलिए ऐसी परिस्थितियों के लिए सुरक्षाबलों को तैयार रहना होगा। इस मुठभेड़ में भी ऐसा ही कुछ हुआ, जिसकी वजह से दोनों ओर से बराबर जानें गईं। बहरहाल, इस घटना की जांच के बाद ही सच्चाई का पता चल सकेगा। साथ ही, हमारी ओर से रणनीति में कहां चूक हुई, यह बात भी सामने आ सकेगी। लेकिन इस पूरी मुठभेड़ के दौरान हमारे जवानों ने बहादुरी के साथ करीब 5 घंटे तक नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब दिया और आखिर में नक्सली पीछे हटने पर मजबूर हो गए।
वैसे, यह मुठभेड़ एक रिमाइंडर है कि नक्सलियों की स्थिति अभी भी मजबूत है और वे किस तरह लंबे वक्त तक खामोश रहते हैं, खुद को संगठित करते हैं और कुछ अंतराल पर इस तरह के हमले करते रहते हैं। पिछले महीने ही नक्सलियों ने सुरक्षाबलों को ले जा रही एक बस पर आईईडी हमला किया था, जिसमें 3 जवानों की जान गई थी। मार्च, 2020 में सुकमा में नक्सलियों ने घात लगाकर सुरक्षाबलों पर हमला किया था जिसमें 17 जवान शहीद हो गए थे।
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हालांकि, बीते कुछ सालों से नक्सल हिंसा में कमी को देखते हुए सरकार और सिक्योरिटी-एनालिसिस यह बताता है कि नक्सलवाद (Naxalism) पर लड़ाई लगभग जीत ली गई है। गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2013 में 10 राज्यों के 76 जिलों के 330 थाने नक्सल प्रभावित थे। वहीं, साल 2018 में 8 राज्यों के 60 जिलों के 251 थाने नक्सल प्रभावित थे। मतलब, इन 5 सालों में नक्सल प्रभावित इलाकों की संख्या घट गई। वहीं, साल 2020 की पहली छमाही में यह संख्या घटकर 46 जिलों पर आ गई। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, 2019 में सुरक्षाबलों के मारे जाने का सबसे कम रहा, जो कि 670 था।
आंकड़ों के अनुसार, नक्सल हिंसा में आ रही कमी के बावजूद नक्सलियों द्वारा किए जा रहे घातक हमले यह बता रहे हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कहने के 11 साल बाद भी नक्सलवाद देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। छत्तीसगढ़ और झारखंड इससे सबसे अधिक प्रभावित है। साल 2019 में देशभर में हुई नक्सल हिंसा की 670 घटनाओं में से 463 यानी 69 फीसदी घटनाएं इन दो राज्यों में ही हुईं। नक्सली इन दो राज्यों के जंगलों में अपना डेरा जमाए हुए हैं।
खुफिया एजेंसियां बड़ी ही मुश्किल से खुद को जोखिम में डालकर अपनी रणनीति बनाती हैं और नक्सलियों की सेंट्रल कमिटी की मीटिंग सहित अन्य जानकारियों और केंद्रीय सुरक्षाबलों और राज्य पुलिस के साथ साझा करती हैं। अब सवाल यह उठता है कि नक्सलवाद की समस्या को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए सरकार की ओर से बनाई जा रही रणनीतियों में कहां कमी रह जाती है? क्या नक्सलियों से मुकाबला करने की रणनीति में सुधार की जरूरत है?
सबसे पहले तो, आला पुलिस अधिकारियों को बड़े पैमाने पर चलाए जाने वाले ऑपरेशनों पर पुनर्विचार करना होगा। इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षाबलों की जान जाना बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे में परिस्थितियों के अनुसार रणनीति में बदलाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। आंध्र प्रदेश पुलिस की ग्रेहाउंड्स फोर्स ने माओवादियों को कमजोर करने में बड़ी सफलता हासिल की है, इसकी वजह है कि इसमें छोटी टीमों के साथ ऑपरेशन किया गया और सटीक खुफिया जानकारियों के आधार पर एक्शन लिया।
दूसरा, इन इलाकों में नक्सलियों की जनताना सरकार को काउंटर करने के लिए प्रशासनिक और सुरक्षाबलों की पकड़ कमजोर है। नक्सली इलाकों में गांव वालों द्वारा नक्सलियों की मदद किए जाने से राज्यों की कमी भी जाहिर होती है। हालांकि, इन इलाकों में सड़कें बन जाने और मोबाईल टावर लग जाने से स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है। अब, CRPF को बीहड़ों में भी कैंप लगाना होगा। इसके अलावा, Rural Roads Programme (RRP) के तहत हो रहे सड़कों के निर्माण में भी तेजी लानी होगी। इस योजना का लक्ष्य 5,411 किलोमीटर सड़कों का निर्माण कर 44 नक्सल प्रभावित जिलों को जोड़ना है। इनमें से अधिकांश जिले छत्तीसगढ़ में आते हैं। यानी, इन इलाकों में विकास को गति देना अहम है।
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