उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री ने आखिर क्यों की थी तीन शादी?

आज के आधुनिक उत्तर प्रदेश के जनक और देश के दूसरे गृहमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) जी का जन्मदिवस है। पंत जी की गिनती भारत के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में होती है। वो एक कुशल अधिवक्ता, मंझे हुए राजनीतिज्ञ, सुलझे हुए इंसान और देश के हितों को सर्वोपरी रखने वाले व्यक्ति थे।

Govind Ballabh Pant

आज के आधुनिक उत्तर प्रदेश के जनक और देश के दूसरे गृहमंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) जी का जन्मदिवस है। पंत जी की गिनती भारत के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में होती है। वो एक कुशल अधिवक्ता, मंझे हुए राजनीतिज्ञ, सुलझे हुए इंसान और देश के हितों को सर्वोपरी रखने वाले व्यक्ति थे।

Govind Ballabh Pant

जन्म

भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) जी का जन्म 10 सितंबर 1887 को उत्तराखंड के अल्मोरा जिले के एक छोटे से गांव खूंट में हुआ था। पंत जी के पिता मनोरथ पंत मूल रूप से मराठी ब्राह्मण थे और इनके पूर्वज सदियों पहले महाराष्ट्र से अल्मोरा जिले में आकर बस गए। पंत जी के पिता सरकारी कर्मचारी थे और काम के चलते उन्हें लगातार अपना कार्यक्षेत्र बदलना पड़ता था। इनके माता का नाम गोविंदी बाई था। पंत जी जब 3 साल के थे तभी इनके पिता और माता जी पौढ़ी चले गए और पंत जी का लालन-पालन उनके नाना जी बद्री दत्त जोशी और मौसी धनीदेवी ने की।

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शिक्षा

पंडित गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) 10 साल की उम्र तक स्कूल नहीं गए और घर पर ही रह कर इनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई। पंत जी पहली बार 1897 में रामजे कॉलेज में प्रारंभिक शिक्षा के लिए प्रवेश लिया। इन्होंने लोअर मिडिल की परीक्षा अंग्रेजी, गणित और संस्कृति विषयों में प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण किया। पंत जी इंटर ने इंटर तक की अपनी पढ़ाई अल्मोरा में रह कर ही पूरी की। इसके बाद वो छात्रवृति लेकर वकालत की पढ़ाई के लिए प्रयाग चले गए।

Govind Ballabh Pant

परिवार

गोविंद बल्लभ पंत जी (Govind Ballabh Pant) का विवाह महज 12 साल की उम्र में सन 1899 में बालादत्त जोशी की बेटी गंगा देवी से हुआ। उस समय पंत जी 7वीं क्लास में पढ़ते थे। गंगा देवी से पंत जी को एक बेटा हुआ था जिसकी 1909 में ही अल्प आयु में मृत्यु हो गई और उसके थोड़े दिन बाद उनकी पत्नी का भी देहान्त हो गया। पत्नी और बेटे की असमय मृत्यु के कारण पंत जी बड़े मायूस रहने लगे। उनकी इस स्थिति को देखकर उनके परिवार वालों ने उनकी दूसरी शादी करवा दी। पंत जी को दूसरी शादी से भी एक बच्चा हुआ और कुछ दिन बाद उसकी भी मृत्यु हो गई। बच्चे की मौत के बाद पंत जी की पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गईं। साल 1916 में पंत जी ने अपने मित्र राजकुमार चौबे जी के दबाव के कारण तीसरी शादी के लिए राजी हो गए। काशीपुर के तारादत्त पांडे की बेटी कलादेवी से 30 साल की उम्र में पंत जी की तीसरी शादी हुई। इस शादी से पंत जी को एक पुत्र और 2 पुत्रियों की प्राप्ति हुई। पंत जी के बाद उनके बेटे भी राजनीति में काफी सक्रिय रहे और देश के प्रतिष्ठित योजना आयोग के पदाधिकारी भी रहे।

पेशा

साल 1909 में गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) वकालत की परीक्षा में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के टॉपर थे और इसी कारण उन्हें विश्वविद्यालय का सम्मानित पुरस्कार ‘लम्सडैन’ गोल्ड मेडल दिया गया। प्रयाग से वकालत करने के बाद पंत अपनी वकालत की प्रारंभिक प्रैक्टिस के लिए वापस अल्मोरा आ गए। यहां पर कुछ समय वकालत करने के बाद वो अपनी प्रैक्टिस के विस्तार के लिए रानीखेत आ गए। लेकिन यहां भी पंत जी को वकालत में कुछ खास मजा नहीं आया और फिर वो काशीपुर चले गए। काशीपुर का एसडीएम कोर्ट 6 महीने नैनीताल और 6 महीने काशीपुर में लगता था, जिसके कारण पंत जी को भी वकालत के लिए 6 महीने काशीपुर तो 6 महीने नैनीताल रहना पड़ता था और यहीं से ही उनको नैनीताल से लगाव हो गया।

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गोविंद बल्लभ पंत जी (Govind Ballabh Pant) का वकालत करने का अपना एक अलग ही अंदाज था। जो पेशकार अपने मुकदमे के बारे में सही जानकारी नहीं देता था, पंत जी उसका मुकदमा नहीं लेते थे। एक बार तो पंत जी कुर्ता, धोती के साथ गांधी टोपी लगाकर मुकदमे की पैरवी करने पहुंच गए और उन्हें इस रवैये के कारण ही तत्कालिन जज ने उन्हें डांट लगाई थी।

Govind Ballabh Pant

राजनीति

प्रयाग में पढ़ाई के दौरान ही पंत जी की मुलाकात जवाहर लाल नेहरू, तेजबहादुर सप्रु, सतीशचंद्र बेनर्जी और सुन्दरलाल जैसे तत्कालिन युवा राजनीतिज्ञों से हुई। इन लोगों के संपर्क में रहने के कारण ही पंत जी का रूझान तत्कालिन राजनीति की तरफ झुका। 1920 में पंत जी अंग्रेजो के ‘रोलेट एक्ट’ के खिलाफ गांधी जी के चलाए गए असयोग आंदोलन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होने वकालत के अपने पेशे को छोड़ कर स्वतंत्रा संग्राम आंदोलन में कूद पड़े। पंत जी को नैनिताल जिला बोर्ड और काशीपुर नगरपालिका का अध्यक्ष बना दिया गया। 1928 में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे नेहरु जी के साथ पंत जी को भी पुलिस की लाठियां खानी पड़ी। जिसके कारण पंत जी को आजीवन कमर दर्द की शिकायत बनी रही। इसके बाद पंत गांधी जी के हर आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे और कई बार जेल में भी बंद रहे।  राजनीति में पंत जी के वर्चस्व का ही नतीजा था कि उन्हें साल 1937 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के प्रथम मुख्यमंत्री बनें। इसके बाद वो दोबारा से 1946 में संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। शायद यही कारण रहा कि 1950 में संविधान गठन के बाद गोविंद बल्लभ पंत (Govind Ballabh Pant) को ही उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया। 1955 में केंद्र सरकार के गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल जी की मृत्यु के बाद नेहरु जी ने पंत को देश का गृहमंत्री बनाया। गृहमंत्री रहने के दौरान ही पटेल जी ने हिंदी भाषा को संविधान में राष्ट्र भाषा के रूप में दर्ज करवाया और भारत के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ देने की प्रथा की शुरुआत की। साल 1957 में पंडित गोंविद बल्लभ पंत जी को देश की आजादी और भारत के आधुनिक विकास में उनके योगदान के लिए भारत रत्न की उपाधि से नवाजा गया।

मृत्यु

7 मार्च 1961 को भारत रत्न पंडित गोविंद बल्लभ पंत जी का देहावसान हो गया और इसी के साथ स्वतंत्रता सेनानी और भारत के अनमोल रत्न मानवता के आकाशमंडल में ध्रुव तारा बनकर स्थापित हो गए।

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