CRPF के इस जवान की देशसेवा को सलाम, छुट्टी के दौरान खुद के पैसों से कर रहा जरूरतमंदों की हरसंभव मदद

सीआरपीएफ (CRPF) जवान के अनुसार, ‘मैं तीन मार्च को छुट्टियों पर गांव आया था और जब मैं वापस लौटने वाला था, तब तक लॉकडाउन (Lockdown) घोषित हो चुका था।

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इस समय दुनिया का हर देश और प्रत्येक नागरिक कोरोना (Coronavirus) के खिलाफ विश्व युद्ध लड़ रहा है। दुनिया के बड़े-बड़े देशों को घुटने पर ला देने वाली इस बीमारी का प्रकोप भारत में औसतन कम है। इसका प्रमुख कारण भारतीयों की एकजुटता और वचनबद्धता है, जो इन्होंने लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान  देश और प्राणीमात्र की रक्षा के लिए ली है। इसी कड़ी में हमारे देश को आंतरिक और बाहरी ताकतों के खिलाफ सुरक्षित रखने वाले भारत से सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ (CRPF) के जवान भी विपदा की इस मुश्किल घड़ी में अपना सर्वस्व मातृभूमि पर न्यौछावर करने को आतुर हैं, भले ही वो ड्यूटी पर हो या छुट्टी पर।

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दरअसल सीआरपीएफ (CRPF) के एएसआई पद्मेश्वर दास इन दिनों असम में अपने घर में हैं। लेकिन वह अपने पैसों से खाने के पैकेट तैयार कर गांव के गरीबों को उपलब्ध करा रहे हैं जो कोरोना वायरस (Coronavirus) की वजह से हुए लॉकडाउन (Lockdown)  के कारण सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।

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पद्मेश्वर दास (48) की यूनिट दक्षिण कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित शोपियां जिले में तैनात है। वह अपने छोटे से गांव चतनगुरी में लॉकडाउन (Lockdown) से प्रभावित लोगों की मदद कर रहे हैं। उनका गांव असम के जिला मुख्यालय मोरीगांव जिले से करीब 76 किलोमीटर दूर है।

लोगों की परेशानियों से व्यथित पद्मेश्वर दास ने संभावित मदद के संबंध में अपनी मां और पत्नी के साथ चर्चा की और दोनों उत्साहपूर्वक इस प्रयास में शामिल हो गए।

सीआरपीएफ (CRPF) जवान के अनुसार, ‘मैं तीन मार्च को छुट्टियों पर गांव आया था और जब मैं वापस लौटने वाला था, तब तक लॉकडाउन (Lockdown) घोषित हो चुका था। कश्मीर घाटी में तैनात मेरी यूनिट ने भी एक संदेश भेजा, जिसमें मुझे घर में ही रहने और वापस नहीं आने के लिए कहा गया था।

एएसआई पद्मेश्वर दास ने कहा, ‘अगर मैं अपने बल के साथ होता, तो मैं अपने सहयोगियों और अधिकारियों के साथ जरूरतमंदों की मदद कर रहा होता। फिर मैंने सोचा कि मैं अकेले ही कुछ कर सकता हूं।’  उन्होंने कहा, ‘मेरे बल का ध्येय वाक्य सेवा और निष्ठा’ है, चाहे जवान अकेला हो या समूह में हो।’

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