अगस्त क्रांति दिवस: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ निर्णायक लड़ाई का शंखनाद

जब दूसरे विश्वयुद्ध में भारत से सहायता लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने भारत को आजाद करने का अपना वादा नहीं निभाया तो गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की।

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आजादी की अंतिम लड़ाई के शंखनाद का दिन 9 अगस्त यानी आज। 9 अगस्त, 1942 के दिन अरुणा आसफ अली ने मुम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका था।

आजादी की अंतिम लड़ाई के शंखनाद का दिन 9 अगस्त। 9 अगस्त, 1942 के दिन अरुणा आसफ अली ने मुम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन का बिगुल फूंका था। मुम्बई के जिस पार्क से यह आंदोलन शुरू हुआ उसे अब अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है। ′अगस्त क्रांति′ या 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ को हम भारतीय स्वाधीनता का द्वितीय मुक्ति संग्राम कह सकते हैं। जिसके फलस्वरूप 5 वर्ष बाद 1947 में हमें आजादी मिली। पं. जवाहरलाल नेहरू के शब्दों में, ‘यह किसी पार्टी या व्यक्ति का आंदोलन न होकर आम जनता का आंदोलन था, जिसका नेतृत्व आम जनता द्वारा ले लिया गया था।’

दूसरे विश्वयुद्ध में भारत से सहायता लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने भारत को आजाद करने का अपना वादा नहीं निभाया तो गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की। 8 अगस्त को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समिति के बम्बई सत्र में इस आंदोलन का प्रस्ताव पारित किया गया। मगर तभी गांधी जी को पुणे की आगा खां पैलेस में कैद कर लिया गया और लगभग सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हर साल देश में इस दिन को अगस्त क्रान्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसमें स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहूति देने वाले क्रांतिकारियों को श्रद्धांजलि दी जाती है। 1 सितंबर, 1939 को दूसरे महायुद्ध की घोषणा हो गई थी। ब्रिटिश सरकार ने बिना भारतीयों से पूछे भारत को युद्ध में झोंक दिया। इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने प्रांतीय मंत्रिमंडलों से इस्तीफ़ा दे दिया। नारा दिया गया- न एक पाई, न एक भाई।

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ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों का समर्थन पाने के लिए 23 मार्च, 1942 सर स्टीफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा। क्रिप्स मिशन ने युद्ध के बाद भारत में औपनिवेशक स्वराज की स्थापना करने, संविधान सभा बनाने और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा आदि से जुड़ी योजनाएं पेश कीं। लेकिन प्रमुख दलों ने इसे मानने से इंकार कर दिया। युद्ध की स्थिति में अंग्रेज़ों पर चोट की जाए या नहीं, इसे लेकर कांग्रेस नेताओं में मतभेद था। लेकिन महात्मा गांधी इस अवसर पर निर्णायक चोट करने के पक्ष में थे। 8 अगस्त, 1942 को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन में प्रसिद्ध ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ। प्रस्ताव में अहिंसक रूप से जितना संभव हो, उतने बड़े स्तर पर जन संघर्ष का आह्वान किया गया था।

उसी दिन अपने भावपूर्ण ‘करो या मरो’ का आह्वान करने वाले भाषण में गांधी जी ने यह घोषणा की कि यदि आम हड़ताल करना आवश्यक हो तो मैं उससे पीछे नहीं हटूंगा। गांधी जी पहली बार राजनीतिक हड़तालों का समर्थन करने के लिए तैयार हुए थे। ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव में यह भी कहा गया था कि अगर कांग्रेस के सभी नेता गिरफ्तार हो जाएं तो स्वाधीनता की इच्छा एवं प्रयास करने वाला प्रत्येक भारतीय स्वयं अपना मार्गदर्शक बने। प्रत्येक भारतीय अपने आपको स्वाधीन समझे, केवल जेल जाने से ही काम नहीं चलेगा। 9 अगस्त को नेताओं की गिरफ्तारी के साथ ही आंदोलन देशव्यापी होने लगा।

शुरुआत में शहरों में श्रमिकों की हड़तालें हुईं, नौजवान और छात्रों ने उग्र प्रदर्शन किया और जल्दी ही यह ग्रामीण अंचलों में फैल गया। अहिंसा वाले आंदोलन ने अब हिंसा का रूप ले लिया था। उसने अपने आक्रोश से अंग्रेजी सरकार की कमर तोड़कर रख दी थी। लेकिन गांधी जी इन सबसे खुश नहीं थे क्योंकि वो अहिंसावादी थे। 6 मई, 1944 को गांधी जी को रिहा कर दिया गया। भले ही इसमें ब्रिटेन जीत गया हो लेकिन उसे फिर भी भारत को आजाद करना पड़ा और वापस जाना पड़ा। आज जिस भारत में हम खुलकर सांस ले रहे हैं उसे हमारे पूर्वजों ने अपने खून-पसीने से आजाद करवाया है।

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