प्रखर राष्ट्रवादी कवि और जन-जन के नेता थे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई

Atal Bihari Vajpayee

Atal Bihari Vajpayee Birth Anniversary Special:

क्या खोया, पाया जम में मिलते और बिछड़ते मग में,

मुझे किसी से नहीं शिकायत, यद्यपि छला गया पग-पग में,

एक दृष्टि बीती पर डालें, यादों की पोटली टटोलें,

पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी, जीवन एक अनन्त कहानी,

पर तन की अपनी सीमाएं, यद्यपि सौ शरदों की वाणी,

इतना काफी है, अंतिम दस्तक पर खुद दरवाजा खोलें।

जन्म-मरण का अविरत फेरा, जीवन बजारों का डेरा,

आज यहां, कल कहां कूच है, कौन जानता किधर सवेरा।

Atal Bihari Vajpayee

भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री और कवि हृदय राजनेता अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में शिंदे की छावनी में हुआ था। यह बड़े सौभाग्य की बात है कि जिस दिन उनका जन्म हुआ था उसी दिन ईसा मसीह का भी जन्म दिवस था। निकट के ही गिरजा घरों में घंटियों के टन टन और घर में बज रहे ढोल नगाड़ों की गड़गड़ाहट ने दृश्य को और भी मनोरम बना दिया था। घर में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था। चारों तरफ खुशियों का वातावरण था। अटल बिहारी वाजपेई के पिता का नाम पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई और माता का नाम उमा देवी था जिसे बाद में बदलकर कृष्णा देवी कर दिया गया। उनके पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई ग्वालियर के ही विद्यालय में अध्यापक थे। जब उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की थी तो उसके बाद से ही अध्यापन कार्य आरंभ कर दिया था। अपने अध्यापन काल के दौरान ही उन्होंने बीए और एमए परीक्षाएं उत्तीर्ण की और फिर अध्यापक से  प्राध्यापक पद को सुशोभित किया।

पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेई का काफी बड़ा परिवार था जिसमें अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) के अलावा उनके बड़े भाई अवध बिहारी बाजपाई, सदा बिहारी वाजपेई और प्रेम बिहारी वाजपेई तथा बहने विमला कमला एवं उर्मिला थी। सभी से अटल जी को अपार स्नेह मिलता था।

अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) की माता बड़े ही धार्मिक स्वभाव वाली महिला थी। वह पारिवारिक परंपरा के अनुसार व्रत और त्योहारों पर घर में विशेष पूजा अर्चना किया करती थी।  क्रोध से कोसों दूर नरम स्वभाव स्वभाव की महिला थी। हालांकि जब भी वे नाराज हो जाती थी तो बस मौन धारण कर लेती थी लेकिन किसी से कुछ नहीं कहती थी। बाद में जिससे वह नाराज होती थी वही उनसे क्षमा याचना करके उन्हें मनाता था। माता-पिता के संस्कारों का अटल जी के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा था।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) भारत की उदारवादी सोच के सच्चे प्रतीक माने जाते हैं। जब भी भारतीय राजनीति की संसदीय प्रणाली में उनके योगदान को देखा परखा जाएगा तो इस बात की चर्चा अवश्य होगी कि वह विपक्ष में जितने ही काबिल और कामयाब नेता थे, आगे चलकर उतने ही काबिल और कामयाब प्रधानमंत्री बने। अगर देश के राजनीतिक इतिहास को पलटें तो यह अपने आप में एक दुर्लभ दृष्टिगोचर होता है। जब वह पहली बार जनप्रतिनिधि बनकर लोकसभा में पहुंचे तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हें विदेश नीति पर बोलने का अवसर प्रदान किया। विदेश नीति विशेष रूप से कश्मीर मसले पर वाजपेई जी ने जो ओजस्वी भाषण दिया उसे सुनकर पंडित नेहरू मंत्रमुग्ध होकर क्या उठे और भरी संसद में कहा कि वाजपेई जी के अंदर देश का नेतृत्व करने के सारे गुण मौजूद हैं। कई सालों बाद 1996 में पंडित नेहरू का या कथन सच साबित हुआ। साफ है वह प्रखर वक्ता भी थे जो संसद के बाहर सरकारी नीतियों पर तंज कसने की बजाय संसद के अंदर अपने तर्को-तकरीरों उसे सत्ता पक्ष को नीतिगत के लिए मजबूर कर देते थे।

साल 1971 में अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) नेता विपक्ष थे और इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री। युद्ध के मैदान में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की ऐतिहासिक विजय पर अटल जी ने इंदिरा को दुर्गा के संज्ञा दी थी। सदन के अंदर युद्ध पर बहस चल रही थी और वाजपेई जी के अनुसार हमें बहस छोड़कर इंदिरा जी की भूमिका पर बात करनी चाहिए जो किसी दुर्गा से कम नहीं थी। आधुनिक राजनीति किस तरह से संकुचित और दलगत व्यवस्था में सिकुड़ चुकी है कि अब शायद ही विपक्ष सत्तारूढ़ नेतृत्व के महत्व को पहचानता है किंतु वाजपेई जी ने भरी सदन में तब यह बात कह कर एक स्वस्थ राजनीतिक मिसाल पेश की जो अनुकरणीय है।

स्वतंत्र भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के अलावा अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) ही एक ऐसे नेता हैं, जिनकी स्वीकार्यता दल, धर्म, जाति, विचारधारा से हटकर पार्टी, हर वर्ग, और  हर उम्र के लोगों में है। लंबे समय तक, तकरीबन चार दशक तक विपक्ष में रहकर भी उन्होंने कभी अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए भेदभाव या वैमनस्यता नहीं रखी। वह चाहते तो राजनीति में शॉर्ट-कट रास्ता अख्तियार कर शिखर तक जल्दी पहुंच सकते थे, खासकर इस स्वीकार सोच के साथ, सियासत में कोई किसी का हमेशा का दोस्त-दुश्मन नहीं होता, लेकिन अटल बिहारी वाजपेई ने इस तरह बढ़ने के बजाय व्यापक स्वीकार्यता को अपना लक्ष्य बनाया , अपनी व्यापक स्वीकार्यता नहीं।  उनका यह ध्येय बहुत कठिन था, क्योंकि तब भारतीय जनता पार्टी को ज्यादातर राजनीतिक दल हिंदुत्व विचारधारा वाली पार्टी बताते थे। देश की राजनीति में इसकी स्थिति एक अछूत पार्टी जैसी थी। लेकिन अटल जी के ही शब्दों में ‘हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल यह लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं, और वह हार नहीं माने। 1996 में पहली बार 13 दिन, दूसरी बार 1998 में 13 महीने और फिर 1999 में करीब 5 साल तक बीजेपी को सत्ता में पहुंचाया। उनके प्रयासों का ही फल रहा कि आज भारतीय जनता पार्टी सबकी पसंद की पार्टी बन चुकी है।

वैसे राजनीतिक पंडित यह तर्क दे सकते हैं कि 1984 में लोकसभा में महज 2 सीटें लाने वाली भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक बियाबान  से उबर कर के राजनीतिक पार्टी बनी, तो इसका श्रेय लालकृष्ण आडवाणी को दिया जाना चाहिए। उन्होंने राम जन्मभूमि मसले पर रथयात्रा निकाली थी जो काफी कामयाब रही। वे बेशक अपनी जगह सही हैं लेकिन भारतीय जनता पार्टी को यह मालूम था कि अगर दिल्ली के तख्त पर काबिज होना है तो गठबंधन दौर में अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) का नेतृत्व ही सर्वसम्मति हासिल कर पाएगा।

बतौर प्रधानमंत्री अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) ने हर मोर्चे पर चाहे वह सियासी हो या राजनीतिक, साहस और मौलिकता का अभूतपूर्व संगम दिखाया। 13 पार्टियों की गठबंधन सरकार को उन्होंने जिस सूझबूझ और प्रशासनिक नेतृत्व का परिचय दिया उससे ही भारतीय राजनीति में गठबंधन धर्म निभाने परंपरा चल निकली। यह काबिल-ए-गौर है कि वह पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। गठबंधन धर्म को लेकर वह इतने सजग थे कि पार्टी के विवादित मुद्दों जैसे राम मंदिर निर्माण, अनुच्छेद 370 भी किनारे रखा। 1999 में जब प्रधानमंत्री थे तब उन्होंने गठबंधन धर्म पर अपने विचार कुछ इस तरह रखे थे- “गठबंधन सरकार बनाना आसान है, चलाना आसान नहीं। देश ने अब गठबंधन युग में प्रवेश किया है। बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों के अलावा क्षेत्रीय पार्टियां भी भारतीय राजनीति की हिस्सा बन चुकी हैं। किंतु जब तक यह राजनीतिक पार्टी या गठबंधन के व्यापक हितों के अनुरूप अपनी सीमाएं नहीं पहचानेंगे तब तक गठबंधन का युग अस्थिरता से भरा रहेगा।” उनके यह विचार आने वाले गठबंधन सरकारों के लिए रामबाण साबित हुए और खुद उन्होंने 6 वर्षों से अधिक तक यह साबित किया कि गठबंधन और स्थिरता दोनों एक दूसरे के पूरक शब्द हैं।

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पहले जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी को लोकप्रियता की चोटी पर पहुंचाने वाले अटल जी (Atal Bihari Vajpayee) का प्रधानमंत्री कार्यकाल भी बेहद रचनात्मक, सार्थक और लोकप्रिय रहा। एक तरफ उन्होंने पोखरण-2 परीक्षण कर भारत को परमाणु संपन्न राष्ट्र की कतार में खड़ा किया तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ अरसे से बंद वार्ता को खत्म करने के लिए दोस्ती का पैगाम लेकर बस से लाहौर गए। वह अकसर कहा करते थे कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते। उनके कार्यकाल को जनता ने जनता पार्टी के दौरान बतौर विदेश मंत्री उनकी उपलब्धियों का विस्तार माना। तब उनकी तीन बड़ी ऐतिहासिक उपलब्धियां रहे- देशभर में पासपोर्ट की सुविधा प्रदान करने की पहल, पाकिस्तान समेत सभी पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और संयुक्त राष्ट्र में पहली बार हिंदी में भाषण। अपने प्रधानमंत्री काल में उन्होंने ना केवल पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर जोर दिया बल्कि पड़ोस के विश्वासघात का जवाब पुरजोर तरीके से दिया। पाकिस्तान के लिए यह स्थिति बन गई थी वह न केवल कारगिल युद्ध हारा बल्कि अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भारी किरकिरी का भी सामना किया। यहां तक कि जनरल परवेज मुशर्रफ को अटल जी ने आगरा शिखर वार्ता से खाली हाथ लौटा दिया । दुनिया की अर्थव्यवस्था जब नाजुक मोड़ पर थी तब एनडीए सरकार की बेजोड़ अर्थ नीति के कारण मुद्रास्फीति संतुलित रही और देश को राजनीतिक चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ा।  उनका ही यह नारा था- जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान।

राजनेता कवि और पत्रकार अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) को देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न दिए जाने की मांग काफी समय से हो रही थी, लेकिन पुरानी यूपीए सरकार इस मांग को अनसुनी करती रही। बीजेपी नेतृत्व वाली नई सरकार ने अटल जी को 90वें दिन के अवसर पर उन्हें और मरणोपरांत मदन मोहन मालवीय को यह सम्मान देकर वास्तव में भूल सुधार की पहल की है। सर्वोच्च सम्मान के लिए उनके नाम पर इस हद तक मौन सहमति बन चुकी थी कि सरकार ने जब उनके नाम की घोषणा की तो किसी ने शायद ही आपत्ति दर्ज कराई हो। यहां तक कि उनके राजनीतिक विरोधी ने भी नहीं। बेशक कुछ लोग इस फैसले को अलग राजनीतिक चश्मे से देखने के लिए विवश हो सकते हैं। लेकिन इससे किसी को इनकार नहीं की 16वीं लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली निर्णायक विजय से देश की राजनीतिक दशा, दिशा और विमर्श तीनों बदले हैं। 

भारतीय राजनीति को अटल जी जैसे उदाहरण महान शख्सियतों की जरूरत हमेशा है। इसलिए उनकी इस विरासत को सहेजने संवारने और आगे बढ़ाने की सबसे अधिक आवश्यकता है। नरेंद्र मोदी सरकार से अपेक्षा रहेगी क्योंकि वह उसी राजनीतिक पार्टी की अगली पीढ़ी के नेता हैं और उन्होंने हमेशा अटल बिहारी वाजपेई को अपना राजनीतिक गुरु माना है।

अंत में अटल बिहारी वाजपेई (Atal Bihari Vajpayee) की कविता के अंश जो उनके अटल विचार को प्रस्तुत करते हैं-

‘सूर्य एक सत्य है, जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। मगर ओस भी तो एक सच्चाई है। यह बात अलग है कि ओस क्षणिक है क्यों न मैं क्षण-क्षण को जियूं? कण-कण में बिखरे सौंदर्य को पियूं?

 

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