गिरफ्तार लेखिका शिखा।
छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बीजापुर में हुए नक्सली हमले (Naxal Attack) में शहीद जवानों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में असम पुलिस ने 48 वर्षीय लेखिका को गिरफ्तार किया है। लेखिका के खिलाफ राजद्रोह समेत विभिन्न धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं। इस लेखिका का नाम शिखा सरमा है।
शिखा सरमा ने छत्तीसगढ़ के बीजापुर में नक्सली हमले (Naxal Attack) में शहीद 22 जवानों को लेकर सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया था। लेखिका ने अपने इस पोस्ट में जवानों को शहीद का दर्जा देने पर सवाल खड़े किए थे।
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लेखिका ने कहा था कि नक्सली हमले में अपनी जान गंवाने वाले जवानों को शहीद का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए, क्योंकि वे वेतन लेकर काम करते हैं। इसके बाद असम पुलिस ने लेखिका के खिलाफ कार्रवाई करते हुए गिरफ्तार कर लिया।
The Assam police (@assampolice) have arrested #Guwahati based writer #SikhaSarma for allegedly making controversial comments against Martyrs on social media, police said on Wednesday. pic.twitter.com/vbyTsawLni
— IANS Tweets (@ians_india) April 7, 2021
लेखिका की इस टिप्पणी के बाद बीजापुर में तैनात छत्तीसगढ़ पुलिस के डीएसपी अभिषेक सिंह ने सवाल करते हुए फेसबुक पर लिखा है, “उनसे मैं पूछना चाहता हूं कि फिर तो सीमा पर शहीद होने वाले सैनिक को भी शहीद का दर्जा नहीं देना चाहिए क्योंकि वो भी सैलरी लेता है? सिर्फ आपके जैसे key-board वारियर्स जो कमरे में बैठ कर वैचारिक उल्टियां करते हैं उनकी गिरफ्तारी पर ही आपको क्रांतिकारी का दर्जा मिलना चाहिए।”
वो आगे लिखते हैं कि एक बहुत ही “उच्च कोटि” के सामाजिक कार्यकर्ता ने लिखा कि सिपाही बंदूकधारी मजदूर होता है। अपने बच्चों को पालने के लिए बंदूक उठाता है और जंगल में जाकर आम जनता को मारता है। बिलकुल सही कहा आपने कि अपने परिवार का पेट पालने के लिए ही हम पुलिस में आते हैं, सैलरी के लिए ही लेकिन जब वर्दी पहनते हैं तो उसके अंदर से कैसी फीलिंग आती है वो आप कभी समझ नहीं सकते।
अभिषेक सिंह लिखते हैं कि देश के लिए कुछ करने का जज़्बा उस सैलरी पर भारी पड़ जाता है। मालूम नहीं होता कि किस गोली पर हमारा नाम लिखा है लेकिन फिर भी जाते हैं ऑपरेशन में इसलिए कि कल को हमारे बच्चे ये ना कहें कि पापा तो पुलिस में थे मम्मा लेकिन कुछ कर नहीं पाए, नक्सली तो अब शहरों में भी पहुंच गए हैं। इन “उच्च कोटि/इलीट क्लास” के सामाजिक कार्यकर्ताओं को लगता है कि पुलिस अशांति फैला रही, तो बता दीजिए कि नक्सलियों ने पिछले तीन दशकों में कहां-कहां शांति लायी है?
वे लिखते हैं कि आपकी सोच से अच्छी तो हमारे प्रधान आरक्षक शहीद रमेश जुर्री की सोच थी- “साब जी, ये नक्सली लोग बस अपना अस्तित्व बचाने में लगा है, भोला-भाला गांव वालों को पहले बहकाता है जल, जंगल, जमीन के नाम पर और जब कोई नहीं मानता या विरोध करता है तो उसको मुखबिर बोल कर जनताना अदालत में मार देता है। जनता डरके आगे विरोध नहीं करता… हम लोगों का पहुंच नहीं है वहां तक इसलिए हमारे ऊपर भरोसा नहीं जनता को… जहां-जहां कैम्प खुलता है साब जी वहां का जनता क्यों हमारे साथ हो जाता जरा बताइए?”
डीएसपी लिखते हैं कि एक महोदया ने लिखा कि इस लड़ाई में दोनों तरफ सिर्फ आदिवासी ही मारे जाते हैं। महोदया के ज्ञान के लिए बता दूं कि हालांकि ये आदिवासी बहुल इलाका है लेकिन जो फ़ोर्स यहां लड़ती है वो सम्पूर्ण भारतवर्ष से आती है। CRPF में यूपी, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु, केरल, राजस्थान, नागालैंड, जम्मू हर जगह से लड़के नक्सलियों से लोहा लेने के लिए आते हैं। अभी जो जवान नक्सलियों की कैद में बैठा हुआ है फिर भी शेर सी बेफिक्री के साथ दिख रहा है, वो भी जम्मू का ही रहने वाला है। शहीद दीपक भारद्वाज भी आदिवासी नहीं था, बल्कि उसकी तो जाति भी मुझे पता नहीं, आप खोजियेगा, हमारा काम बस नक्सली खोजना है।
वे आगे लिखते हैं कि यहां फ़ोर्स का हर जवान बस्तरिया बन जाता है, वो किसी जाति का नहीं रहता, किसी धर्म का नहीं रहता, वो आदिवासी नहीं, भारतवासी बन जाता है। फेसबुक पर लिखना बहुत आसान है। ज़मीन पर उतरना बहुत मुश्किल। ऐसी सोच से नक्सलियों और उनके समर्थकों के हौसले बुलंद होते हैं। शहीदों की शान में गुस्ताखी होती है। गुस्ताखी होती है उस मां की कोख पर जिसने इन शहीदों को जन्म दिया, उस विधवा बीवी पर जिसका सुहाग देश के लिए मिट गया, उस बहन पर जो कभी अपने भाई की कलाई पर राखी नहीं बांध पाएगी। “बुद्धिजीवी” बनने के चक्कर में “बुद्धूजीवी” न बनें।
“…थोड़ी गैरत भी जरूरी है,
तवायफ भी किसी-किसी मौके पर घुँघरू तोड़ देती है”- तुफैल चतुर्वेदी
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बता दें कि छत्तीसगढ़ के बीजापुर में 3 अप्रैल को हुए नक्सली हमले (Naxal Attack) के विरोध में जवानों ने सोशल मीडिया पर एक कैंपेन शुरू की है। प्रदेश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि जवान अब इंटरनेट मीडिया पर जनता से समर्थन की मांग कर रहे हैं। इसके लिए जवानों ने ‘आखिर कब तक’ (#AkhirKabTak) कैंपेन शुरू किया है।
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